भारत की रिटेल महंगाई तीन महीने की गिरावट के बाद नवंबर में बढ़कर 5.8% होने की संभावना है। इसका कारण सब्जियों और अनाजों की ऊंची कीमतें है। आधिकारिक डेटा मंगलवार शाम 5.30 बजे जारी होने वाला है। अक्टूबर में रिटेल महंगाई 4.87% रही थी।
डिपार्टमेंट ऑफ कंज्यूमर अफेयर्स के आंकड़ों के अनुसार, नवंबर में प्याज की कीमतें महीने दर महीने (MoM) 58% बढ़ीं, जबकि टमाटर की कीमतें 35% बढ़ीं। इसके अलावा आलू की कीमतों में भी नवंबर में 2% की बढ़ोतरी देखी गई।
RBI की महंगाई को लेकर रेंज 2%-6% है। आदर्श स्थिति में RBI चाहेगा कि रिटेल महंगाई 4% पर रहे। बीते दिनों हुई मॉनेटरी पॉलिसी की मीटिंग में RBI ने FY24 के लिए रिटेल महंगाई के अनुमान को 5.40% पर बरकरार रखा था।
महंगाई कैसे प्रभावित करती है?
महंगाई का सीधा संबंध पर्चेजिंग पावर से है। उदाहरण के लिए यदि महंगाई दर 6% है, तो अर्जित किए गए 100 रुपए का मूल्य सिर्फ 94 रुपए होगा। इसलिए महंगाई को देखते हुए ही निवेश करना चाहिए। नहीं तो आपके पैसे की वैल्यू कम हो जाएगी।
महंगाई कैसे बढ़ती-घटती है?
महंगाई का बढ़ना और घटना प्रोडक्ट की डिमांड और सप्लाई पर निर्भर करता है। अगर लोगों के पास पैसे ज्यादा होंगे तो वह ज्यादा चीजें खरीदेंगे। ज्यादा चीजें खरीदने से चीजों की डिमांड बढ़ेगी और डिमांड के मुताबिक सप्लाई नहीं होने पर इन चीजों की कीमत बढ़ेगी।
इस तरह बाजार महंगाई की चपेट में आ जाता है। सीधे शब्दों में कहें तो बाजार में पैसों का अत्यधिक बहाव या चीजों की शॉर्टेज महंगाई का कारण बनता है। वहीं अगर डिमांड कम होगी और सप्लाई ज्यादा तो महंगाई कम होगी।
CPI से तय होती है महंगाई
एक ग्राहक के तौर पर आप और हम रिटेल मार्केट से सामान खरीदते हैं। इससे जुड़ी कीमतों में हुए बदलाव को दिखाने का काम कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स यानी CPI करता है। हम सामान और सर्विसेज के लिए जो औसत मूल्य चुकाते हैं, CPI उसी को मापता है।
कच्चे तेल, कमोडिटी की कीमतों, मेन्युफैक्चर्ड कॉस्ट के अलावा कई अन्य चीजें भी होती हैं, जिनकी रिटेल महंगाई दर तय करने में अहम भूमिका होती है। करीब 300 सामान ऐसे हैं, जिनकी कीमतों के आधार पर रिटेल महंगाई का रेट तय होता है।