विष्णु देव साय के कंधे पर रहा जूदेव का हाथ, 26 की उम्र से विधायक बन कर शुरू हुआ सियासत का रोचक सफर…!

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छत्तीसगढ़ के चौथे मुख्यमंत्री ​​विष्णुदेव का छात्र जीवन संघर्षों से भरा रहा। पिता राम प्रसाद साय के निधन के बाद संघर्षों, चुनौतियों से लड़ते हुए वे आगे बढ़े। परिवार जिम्मेदारी के कारण उन्होंने कॉलेज की पढ़ाई छोड़ खेती का काम संभाला। पहली बार पंच और निर्विरोध सरपंच बने तो दिलीप सिंह जूदेव ने उनका हाथ थामा। साय को जूदेव छोटा भाई मानते थे। 26 की उम्र में वे पहली बार विधायक चुने गए।

वहां से पढ़ाई के लिए वे लोयला स्कूल कुनकुरी चले गए थे। लोयला स्कूल के प्राचार्य मर्यानुस केरकेट्टा ने बताया कि विष्णुदेव साय ने 1975 से 1981 तक पढ़ाई की। वे हॉस्टल में नहीं थे। वे कुजुर सर के घर किराए के कमरे में रहते थे और पढ़ाई की। वे 11वीं में विज्ञान ग्रुप में थे।

पिता की मौत के बाद संभाला घर, भाइयों को पढ़़ाया

विष्णुदेव साय ने 11वीं के बाद आगे की पढ़ाई के लिए अंबिकापुर पीजी कॉलेज में प्रवेश लिया, लेकिन कुछ दिनों बाद पिता की मौत के कारण वे आगे की पढ़ाई नहीं कर पाए। घर की देखरेख के लिए दादी और मां ही थीं।

इसलिए उन्होंने अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ दी और वापस बगिया गांव आ गए। उनके छोटे भाई जय प्रकाश साय बताते हैं कि जब पिता का निधन हुआ तो अन्य तीन भाई उम्र में काफी छोटे थे तो विष्णुदेव साय ने घर की जिम्मेदारी संभाली। उन्होंने तीन भाइयों को पढ़ाया। एक पिता की तरह सभी फर्ज पूरे किए।

किसानी की, पंचायत का चुनाव लड़ा

गांव लौटकर विष्णुदेव साय ने खेती का काम संभाला। वे खेती में लगने वाले खर्च का पूरा ब्यौरा रखते थे। इसमें मजदूरों का हिसाब, खाद, बीज का खर्च भी शामिल होता था। धान की कटाई, मिंजाई का काम देखते थे। 1989 में हुए पंचायत चुनाव में उन्होंने पंच का चुनाव लड़ा और निर्विरोध सरपंच निर्वाचित हुए।

दिलीप सिंह जूदेव ने थामा हाथ, बनाया विधायक

विष्णु देव साय के छोटे भाई जय प्रकाश साय बताते हैं कि जब विष्णुदेव साय बगिया के निर्विरोध सरपंच बने तो दिलीप सिंह जूदेव उनके घर आए। हमारे दादा दिवंगत बुद्धनाथ साय 1952 में मनोनीत विधायक थे। दादा का जशपुर राजपरिवार से करीबी संबंध था।

दिलीप सिंह जूदेव ने विष्णुदेव साय का हाथ थामा। उन्हें तपकरा सीट से भाजपा का प्रत्याशी बनवाया। वे पहला चुनाव जीतकर उस समय अविभाजित मध्यप्रदेश की विधानसभा में पहुंचे। तब उनकी उम्र महज 26 साल थी।

विष्णुदेव साय को छोटा भाई मानते थे जूदेव

जशपुर राजपरिवार के मुखिया और घर वापसी अभियान के प्रणेता दिलीप सिंह जूदेव की छवि एक ऐसे जननेता के रूप में थी जो लोगों के दिलों में राज करते थे। उनके सानिध्य में ही विष्णुदेव साय ने 1998 से दूसरी बार तपकरा से विधानसभा चुनाव जीता।

1999 में दिलीप सिंह जूदेव ने उन्हें लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए तैयार किया और रायगढ़ लोकसभा सीट से सांसद बनें। वे 2006, 2009 एवं 2014 में लगतार चार बार लोकसभा का चुनाव जीता। वे मोदी मंत्रिमंडल में केंद्रीय राज्यमंत्री बने। विष्णुदेव साय की मां जसमनी देवी बताती हैं कि विष्णुदेव साय को दिलीप सिंह जूदेव अपना छोटा भाई मानते थे और सबसे भरोसेमंद साथी भी।

बस में चढ़कर पहुंचे थे नामांकन करने

जशपुर के वरिष्ठ भाजपा नेता कृष्ण कुमार राय ने बताया कि दिलीप सिंह जूदेव ने अपनी ओडिशा की फैक्ट्री बेचकर तीनों विधानसभा से भाजपा प्रत्याशियों को चुनाव लड़वाया था। तपकरा से विष्णुदेव साय, जशपुर से गणेश राम भगत और बगीचा से विक्रम भगत भाजपा के प्रत्याशी थे।

तीनों प्रत्याशी नामांकन फॉर्म भरने के लिए राज्य परिवहन की बस से रायगढ़ पहुंचे थे। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के सहपाठी प्रकाश तिवारी ने बताया कि जब साय चुनाव जीत कर मध्यप्रदेश विधान सभा भवन पहुंचे तो उनके कम उम्र और सादगी को देखकर, विधायक होने पर वरिष्ठजन विश्वास नहीं करते थे।

दो भाई अधिकारी, बच्चे कर रहे हैं पढ़ाई

विष्णुदेव साय खुद कॉलेज की पढ़ाई पूरी नहीं कर सके, लेकिन शिक्षा के प्रति संजीदा थे। उन्होंने भाइयों को बेहतर शिक्षा दिलाई। उनके छोटे भाई विनोद कुमार साय सीएसईबी में ईडी एचआर हैं। सबसे छोटे भाई जय प्रकाश साय बीएचईएल में डिप्टी मैनेजर फाइनेंस के पद पर मुंबई में पदस्थ हैं। विष्णुदेव साय की बड़ी बेटी निवृति साय का विवाह हो चुका है। दूसरी पुत्री स्मृति साय पीएससी की तैयारी कर रही हैं। बेटा थोसेंद्र देव पढ़ाई कर रहे हैं।

बगिया में पहले भाई अब भाई-बहु सरपंच

जिस बगिया पंचायत में सरपंच से शुरुआत कर विष्णुदेव साय छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री बने हैं, उस पंचायत की बागडोर अब भी उनके परिवार के हाथों में है। गांववालों का भरोसा हमेशा उनके परिवार पर रहा। विष्णुदेव साय के भाई ओम प्रकाश साय 20 सालों तक बगिया के सरपंच रहे। ओमप्रकाश साय के निधन के बाद उनकी धर्मपत्नी राजकुमारी साय पंचायत के सरपंच का दायित्व संभाल रही हैं।

लंबे राजनैतिक जीवन में देखे कई उतार-चढ़ाव

मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के लंबे राजनीतिक जीवन में उतार- चढ़ाव वाले क्षण भी आए लेकिन उन्होंने सभी परिस्थितियों को अनुशासित कार्यकर्ता के रूप में स्वीकार किया। विश्व आदिवासी दिवस के दिन जब उन्हें भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के पद से मुक्त किया गया था, तब वे विपक्षी पार्टियों के निशाने पर थे।

उस दौरान भी विष्णुदेव साय समर्पित और अनुशासित कार्यकर्ता के रूप में संगठन हित में भविष्य में भी कार्य करते रहने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराते रहे। उन्होंने अपने बयानों में पार्टी को अपनी मां बताया और कहा कि मां से कोई नाराजगी नहीं हो सकती। शायद उनका यही धैर्य और सरल स्वभाव भाजपा के वरिष्ठ नेताओं को पसंद आया। वे हर आम कार्यकर्ताओं के बीच हमेशा सहजता से उपलब्ध रहे।

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