शाला प्रवेश उत्सव: पहले दिन शिक्षिका ने बच्चों को पर्यावरण से जोड़ा, कई बीजों का किया वितरण

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धमतरी। छत्तीसगढ़ में सोमवार 16 जून को शाला प्रवेश उत्सव मनाया जा रहा है। यह उत्सव स्कूल में बच्चों का पहला कदम सिर्फ उनके स्कूली जीवन की शुरुआत का उत्सव नहीं है। बल्कि यह उन्हें जिम्मेदार नागरिक बनाने की दिशा में पहला कदम भी है। शिक्षा का उद्देश्य किताबों तक सीमित नहीं है बल्कि बच्चों को व्यावहारिक ज्ञान और जीवन कौशल सिखाना भी है।

इसी उद्देश्य को साकार करती हैं शिक्षिका रंजीता साहू। इस अवसर पर शिक्षा के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण, स्वावलंबन और पोषण बागवानी के महत्व को समझाने के लिए एक अनूठी पहल की गई। बच्चों को बीजों से भरी किट प्रदान की गई, जिसमें उच्च गुणवत्ता वाले मुनगा, खीरा, लौकी, कद्दू और अन्य पौष्टिक फसलों के बीज शामिल थे।

पिछले साल बच्चों ने ताजी सब्जियों का खूब लुफ्त उठाया
पिछले साल बच्चों ने न केवल इन बीजों की देखभाल में सक्रिय भाग लिया बल्कि फसल के उत्पादन से अपने परिवारों को पोषण और आर्थिक सहायता भी प्रदान की। ताजी और पौष्टिक सब्जियों की उपलब्धता ने उनके परिवारों को खाद्य सुरक्षा दी और बच्चों ने खूब खीरा, पपीता, खाया। पिछले साल मिली सफलता ने इस पहल को पूरे क्षेत्र में लोकप्रिय बना दिया है।

पिछले साल बच्चों ने ताजी सब्जियों का खूब लुफ्त उठाया
पिछले साल बच्चों ने न केवल इन बीजों की देखभाल में सक्रिय भाग लिया बल्कि फसल के उत्पादन से अपने परिवारों को पोषण और आर्थिक सहायता भी प्रदान की। ताजी और पौष्टिक सब्जियों की उपलब्धता ने उनके परिवारों को खाद्य सुरक्षा दी और बच्चों ने खूब खीरा, पपीता, खाया। पिछले साल मिली सफलता ने इस पहल को पूरे क्षेत्र में लोकप्रिय बना दिया है।

शिक्षिका ने वितरित किया बीज

बच्चों की भूमिका
बच्चे इन बीजों को अपने घरों में रोपित करते हैं और नियमित रूप से उनकी देखभाल करते हैं। बीज लगाने, पानी देने और पौधों को बढ़ता देखने की प्रक्रिया न केवल उनके आत्मविश्वास को बढ़ाती है बल्कि उन्हें धैर्य और प्रकृति के प्रति जिम्मेदारी का अहसास भी कराती है। इस गतिविधि के माध्यम से बच्चे यह सीखते हैं कि, थोड़े से प्रयास से वे अपनी और अपने परिवार की मदद कर सकते हैं।

बरसात का मौसम, सही समय और फसल का लाभ
अक्सर गांवों में उच्च गुणवत्ता के बीजों की अनुपलब्धता के कारण किसान सही समय पर बीज रोपण नहीं कर पाते, जिससे उनका फसल उत्पादन प्रभावित होता है। बरसात के सही समय में बीज रोपाई कर देते हैं, जब पौधे फसल देने लगते हैं तो बच्चों के घरों में ताजी सब्जियों की उपलब्धता सुनिश्चित होती है। पौष्टिक फसलें न केवल उनके परिवार के पोषण में सहायक होती हैं बल्कि अतिरिक्त फसल को बेचकर वे अपनी छोटी-मोटी आवश्यकताओं को भी पूरा कर सकते हैं। यह पहल बच्चों को बचपन से ही आत्मनिर्भरता की दिशा में प्रेरित करती है।

शिक्षा और पर्यावरण संरक्षण का मेल
रंजीता साहू का यह प्रयास बच्चों में पर्यावरण संरक्षण की भावना भी विकसित करता है। पौधों की देखभाल करते हुए बच्चे यह समझते हैं कि पेड़-पौधे हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं और उन्हें बचाना हमारी जिम्मेदारी है। इस कार्यक्रम से बच्चे जल, मिट्टी और प्राकृतिक संसाधनों के महत्व को भी बेहतर तरीके से समझ पाते हैं। एक बार बचपन में बच्चे प्रकृति प्रेम से जुड़ जाते हैं यह झुकाव जीवन पर्यन्त रहता है।

स्वावलंबन की दिशा में पहल
यह बीज किट बच्चों को स्वावलंबन की ओर प्रेरित करती है। वे इन बीजों को अपने घरों के बगीचों या खेतों में लगाकर खेती का अनुभव प्राप्त करते हैं। पौधों की देखभाल के माध्यम से वे धैर्य, मेहनत और जिम्मेदारी के गुण सीखते हैं।

पोषण का महत्व
इन बीजों से उगाई गई फसलें जैसे कि, ताजी सब्जियां और फल, परिवारों के पोषण स्तर को सुधारने में सहायक होती हैं। यह पहल बच्चों और उनके परिवारों को पौष्टिक आहार उपलब्ध कराने के साथ-साथ स्वास्थ्य के प्रति जागरूक भी करती है।

समाज पर प्रभाव
यह पहल न केवल बच्चों और उनके परिवारों को लाभ पहुंचा रही है बल्कि पूरे समाज में जागरूकता फैला रही है। बच्चों के प्रयासों को देखकर उनके माता-पिता और पड़ोसी भी प्रेरित हो रहे है। अन्य स्कूल के शिक्षक और विद्यार्थी भी इस कार्य से प्रेरित हो रहे हैं। ऐसे प्रयास हर शिक्षण संस्थान में किए जाने चाहिए ताकि अगली पीढ़ी न केवल शिक्षित हो, बल्कि जिम्मेदार और सशक्त भी बने।

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