रायपुर | स्वास्थ्य संवाददाता
छत्तीसगढ़ में शहीद वीर नारायण सिंह आयुष्मान स्वास्थ्य सहायता योजना के तहत मरीजों के इलाज के बाद अस्पतालों द्वारा भेजे गए क्लेम का ऑडिट कार्य ठप पड़ा है। कारण – इस जिम्मेदारी को निभाने वाली टीपीए (थर्ड पार्टी एडमिनिस्ट्रेशन) कंपनियों ने टेंडर प्रक्रिया में रुचि नहीं दिखाई। परिणामस्वरूप, तीसरी बार निविदा की अंतिम तिथि बढ़ा दी गई है।
इससे न केवल क्लेम भुगतान प्रक्रिया रुक गई है, बल्कि राज्यभर के निजी अस्पतालों का लगभग 800 करोड़ रुपये का भुगतान अटका हुआ है।
क्यों नहीं आ रहीं कंपनियाँ? – कारणों की पड़ताल
1️⃣ फुलटाइम 80 डॉक्टरों की शर्त बना रोड़ा
राज्य सरकार ने नए टेंडर में शर्त रखी है कि अनुबंधित टीपीए कंपनी को नवा रायपुर स्थित स्टेट नोडल एजेंसी के कार्यालय में ही प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित करनी होगी, जिसमें 80 फुलटाइम एमबीबीएस डॉक्टरों की नियुक्ति अनिवार्य है।
इससे:
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वेतन और अन्य खर्च बढ़ गया है
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टीपीए कंपनियों की लागत में भारी वृद्धि हुई है
2️⃣ सरकारी दखलंदाजी का डर
ऑडिट प्रक्रिया को सरकारी कैंपस (SNA ऑफिस) से संचालित करने के निर्णय से टीपीए कंपनियों को नियंत्रण और स्वतंत्रता कम होने का खतरा नजर आ रहा है।
सूत्रों के अनुसार, कई कंपनियों को आशंका है कि सरकारी अफसरों की ‘अनावश्यक हस्तक्षेप’ प्रक्रिया को प्रभावित कर सकती है।
तीन बार बदली जा चुकी है निविदा तिथि
क्र. | विवरण | तिथि |
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1. | निविदा जारी | 29 मई 2025 |
2. | अंतिम तिथि (पहली बार) | 19 जून 2025 |
3. | टेंडर खुलने की तारीख (पहले) | 23 जून 2025 |
4. | पहली बढ़ाई गई तिथि | 28 जून → 30 जून |
5. | तीसरी बार नई तिथि | अब 21 जुलाई 2025 |
फिलहाल सिर्फ दो कंपनियाँ ही टेंडर प्रक्रिया में शामिल हुईं हैं, जबकि राज्य सरकार चाहती है कि अधिक कंपनियों की भागीदारी हो ताकि प्रतियोगिता बढ़े और सेवा गुणवत्ता में सुधार हो।
800 करोड़ रुपये फंसे: अस्पतालों में नाराज़गी
राज्य के निजी अस्पतालों का कहना है कि क्लेम ऑडिट रुकने से उन्हें समय पर भुगतान नहीं मिल पा रहा है।
इससे:
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दवाइयों और चिकित्सा उपकरणों की खरीद प्रभावित हो रही है
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वेतन और संचालन में संकट खड़ा हो गया है
चिकित्सक संगठनों और निजी अस्पताल संघों ने स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों से मुलाकात कर समस्या को तत्काल हल करने की मांग की है।
क्या है आयुष्मान योजना में क्लेम ऑडिट की प्रक्रिया?
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अस्पताल इलाज के बाद मरीजों का क्लेम स्वास्थ्य विभाग को भेजते हैं
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टीपीए कंपनियां उस क्लेम का तकनीकी और वित्तीय ऑडिट करती हैं
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संतुष्ट होने पर राशि मंजूर कर भुगतान किया जाता है
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इस प्रक्रिया में देरी से सरकारी ट्रस्ट और अस्पताल दोनों पर असर पड़ता है
विशेष टिप्पणी: क्या यह नीतिगत चूक है?
स्वास्थ्य योजनाओं की पारदर्शिता और गति बनाए रखने के लिए टेक्निकल ऑडिट आवश्यक है। लेकिन, सरकार द्वारा लगाई गई कठोर शर्तें और केंद्रीकृत संचालन व्यवस्था टीपीए कंपनियों को हतोत्साहित कर रही हैं।
नतीजा — योजना का संचालन अटक गया है, और इसका सीधा असर गरीब मरीजों और अस्पतालों पर पड़ रहा है।
निष्कर्ष:
छत्तीसगढ़ की आयुष्मान योजना वर्तमान में नीतिगत उलझनों और प्रशासनिक जटिलताओं के जाल में फंस गई है।
जब तक राज्य सरकार ऑडिट प्रक्रिया को लचीला, व्यावसायिक रूप से व्यवहारिक और स्वतंत्र रूप से निष्पादित करने वाला मॉडल नहीं अपनाती, तब तक यह समस्या बनी रहेगी।