— छत्तीसगढ़ के कुरुद अंचल में शुरू हुआ अनोखा त्योहार, जिसमें हर इतवार को रुक जाती है गाँव की रफ्तार
क्या है ‘सवनाही तिहार’?
छत्तीसगढ़ के धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व वाले कुरुद अंचल के गांवों में ‘सवनाही तिहार’ की परंपरा आज भी जीवित है। सावन माह के पहले रविवार से शुरू होकर 5 से 7 रविवार तक चलने वाला यह तिहार गांव में भूत-प्रेत, बीमारी और नकारात्मक शक्तियों से रक्षा के लिए मनाया जाता है।
❝ इस दिन गांव में कोई हल नहीं चलेगा, बैलगाड़ी नहीं फांदी जाएगी और कोई कामकाज नहीं होगा। ❞
— मुनादी कर कोटवार देता है गांव को सूचना।
त्योहार का आरंभ कब और कैसे होता है?
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सावन माह के पहले रविवार से हर सप्ताह एक दिन सभी ग्रामीण सामूहिक अवकाश पर रहते हैं।
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शनिवार शाम को गांव के कोटवार मुनादी करता है कि अगले दिन कोई काम नहीं किया जाएगा।
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इस परंपरा की शुरुआत आषाढ़ के अंतिम सप्ताह या सावन के पहले सप्ताह में होती है।
सख्त नियम:
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खेत, मजदूरी, बैल, बैलगाड़ी, बाहर जाना — सब पूर्णतः वर्जित।
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सिर्फ पौनी-पसारी (स्थानीय बाजार) की छूट होती है।
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गांव से बाहर जाने वाले लोगों को भी उस दिन अवकाश लेना अनिवार्य होता है।
क्या है धार्मिक मान्यता?
सवनाही तिहार का मूल उद्देश्य है:
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गांव और पालतू जानवरों को जादू-टोना, बीमारी और आपदाओं से बचाना।
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देवी-देवताओं की पूजा कर रक्षात्मक कवच तैयार करना।
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बीमारी जैसे हैजा, चेचक, या अनहोनी से रक्षा के लिए सामूहिक आस्था का प्रतीक।
शनिवार रात होती है विशेष पूजा
गांव के बैगा और प्रमुख किसान रात को गांव के मंदिर या स्कूल में रात्रि जागरण करते हैं और फिर:
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गांव की पूर्व दिशा की सरहद (सियार) पर सवनाही देवी की विशेष पूजा होती है।
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पूजा सामग्री में शामिल होते हैं:
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एक जोड़ा नारियल, नींबू, सिंदूर, श्रृंगार का सामान,
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काली मुर्गी, कहीं-कहीं दारू,
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काली, लाल, सफेद झंडे, चूड़ियां, रिबन, टुकनी, सुपली, आदि।
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एक नीम की लकड़ी से बनी गाड़ी तैयार की जाती है, जिसे ध्वजों से सजाया जाता है।
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अंत में काली मुर्गी को सिर पर सिंदूर लगाकर सरहद पार छोड़ा जाता है — इसे भूत-प्रेतों के लिए बलि माना जाता है।
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इसके बाद बैगा गांव लौटता है, लेकिन पीछे मुड़कर देखना सख्त वर्जित होता है — माना जाता है कि इससे देवी नाराज़ हो सकती हैं।
घरों की होती है गोबर से सुरक्षा
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त्योहार के दिन, ग्रामीण गाय के गोबर से घरों के दरवाज़े पर ‘मनुष्य आकृति’ बनाते हैं।
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चारों तरफ़ चार अंगुलियों की रेखा से घर को घेर दिया जाता है।
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मान्यता है कि ये गोबर रेखाएं घर को भूत-प्रेतों और नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षित रखती हैं।
❝ आज भी ग्रामीण इस पारंपरिक तकनीक पर भरोसा करते हैं और इसे आत्मिक शांति व सुरक्षा का माध्यम मानते हैं। ❞
चंदा और दान से होती है पूजा
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‘बरार’ (चंदा) एकत्र कर गांववाले पूजा का सामान खरीदते हैं।
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बैगा को दान-दक्षिणा भी दी जाती है।
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पूजा के बाद ही गांव में रविवार को ‘इंतवारी’ की छुट्टी मानी जाती है।
क्यों है सवनाही तिहार इतना महत्वपूर्ण?
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सामूहिक अवकाश का सामाजिक अनुशासन
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गांव में एकजुटता और विश्वास का प्रतीक
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पर्यावरण, पशुधन और मानव कल्याण का रक्षक पर्व
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सदियों पुरानी परंपरा आज भी अक्षुण्ण
️ निष्कर्ष:
सवनाही तिहार केवल एक पर्व नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ के ग्रामीण जनजीवन की आत्मा है। यह पर्व दिखाता है कि कैसे परंपरा, आस्था और प्रकृति के प्रति सम्मान के साथ समाज मिलकर नकारात्मक शक्तियों से लड़ने का संदेश देता है।
❝ जब पूरा गांव एक दिन के लिए थम जाए, तो समझिए कि आस्था की शक्ति कितनी गहरी है। ❞