‘गुरु: ज्ञान का दीप’ – सिर्रीखुर्द शाला में श्रद्धा और संस्कार के साथ मनाई गई गुरु पूर्णिमा

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नवापारा-राजिम,

छत्तीसगढ़ के राजिम क्षेत्र स्थित प्राथमिक शाला सिर्रीखुर्द में इस वर्ष की गुरु पूर्णिमा बेहद श्रद्धा, भक्ति और सांस्कृतिक उत्साह के साथ मनाई गई। इस अवसर पर बच्चों ने अपने गुरुओं का सम्मान कर परंपरा और आधुनिक शिक्षा के संगम को जीवंत कर दिया।

विद्यालय परिसर इस पावन अवसर पर श्रृंगारित, भक्तिमय और आनंदमय वातावरण में बदल गया। छात्र-छात्राओं ने हाथों में पुष्प, तिलक और आरती की थाल लेकर अपने शिक्षकों को नमन किया। ‘गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु…’ जैसे मंत्रों की गूंज और संस्कारों से ओतप्रोत आयोजन ने सभी को भावविभोर कर दिया।


गुरु ही ज्ञान का आलोक – खोमन सिन्हा

विद्यालय के शिक्षक श्री खोमन सिन्हा ने इस अवसर पर कहा:

“गुरु वह दीपक हैं, जो अज्ञान के अंधकार को चीर कर ज्ञान का प्रकाश फैलाते हैं। गुरु केवल शिक्षण नहीं, बल्कि जीवन का मार्गदर्शन भी करते हैं।”

उन्होंने बताया कि सिर्रीखुर्द स्कूल में हर साल गुरु पूर्णिमा को विशेष महत्व दिया जाता है ताकि बच्चों में संस्कार, श्रद्धा और मूल्य आधारित शिक्षा का बीजारोपण हो।


गुरु: संस्कारों के निर्माता और आत्मबल के संवाहक

कार्यक्रम के दौरान बच्चों ने नृत्य, वंदना, कविता और भाषण प्रस्तुत कर गुरु के महत्व को भावनात्मक रूप से व्यक्त किया।
एक छात्रा ने कबीर का प्रसिद्ध दोहा उद्धृत किया:

गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय?
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय।

इस दोहे के माध्यम से बच्चों ने यह संदेश दिया कि गुरु ही वह सच्चे पथ प्रदर्शक हैं, जिनके माध्यम से ईश्वर तक पहुँच संभव है।


गुरु पूर्णिमा – ज्ञान और आभार का पर्व

इस दिन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालते हुए शिक्षकों ने बताया कि गुरु पूर्णिमा वेदव्यास जी की जयंती के रूप में मनाई जाती है, जिन्होंने महाभारत, वेद और पुराणों की रचना की थी। वे भारतीय ज्ञान परंपरा के स्तंभ माने जाते हैं। यह दिन हमें यह याद दिलाता है कि गुरु के बिना शिक्षा अधूरी और जीवन दिशाहीन है।


बच्चों में बढ़ा आदर और संस्कार

गुरु पूर्णिमा के इस आयोजन ने नन्हें विद्यार्थियों के मन में गुरु के प्रति श्रद्धा और सम्मान की भावना को गहराई दी। साथ ही उन्हें यह सीख मिली कि सच्चे गुरु वह हैं, जो हमें आत्मबल, विवेक और उद्देश्यपूर्ण जीवन जीने की राह दिखाते हैं


निष्कर्ष:

सिर्रीखुर्द शाला में मनाया गया यह आयोजन केवल एक परंपरा का निर्वहन नहीं था, बल्कि यह नई पीढ़ी को भारतीय संस्कृति और जीवन मूल्यों से जोड़ने का माध्यम बना। यह गुरु पूर्णिमा आने वाले वर्षों में भी विद्यार्थियों के हृदय में संस्कार, श्रद्धा और सीख के रूप में जीवित रहेगी।

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