छत्तीसगढ़ के बेमेतरा जिले के एक छोटे से गांव केशतरा के स्कूल में उस दिन कुछ खास था… बच्चे मुस्कुरा रहे थे, थालियों में खुशबूदार खीर-पूरी परोसी जा रही थी और शिक्षक—अपने छात्रों के साथ बैठकर खाना खा रहे थे। यह कोई सरकारी योजना नहीं थी, न कोई औपचारिक समारोह, बल्कि यह था “नेवता भोज”, जिसे दो शिक्षकों ने अपने जन्मदिन के अवसर पर खुद अपने छात्रों के लिए आयोजित किया।
शिक्षक प्रदीप कुमार ठाकुर और गीतेश कुमार देवांगन ने अपने खास दिन को बच्चों के साथ बांटने का जो फैसला लिया, उसने सिर्फ बच्चों के चेहरे नहीं खिले, बल्कि शिक्षा व्यवस्था में एक मानवीय उदाहरण भी पेश किया।
✨ जब स्कूल बना परिवार
बच्चों के लिए खीर, पुड़ी, दाल, चावल, सब्जी, पापड़ और मिठाई का स्वाद सिर्फ स्वाद तक सीमित नहीं रहा—यह उनके लिए अपनापन, सम्मान और बराबरी का एहसास था। विकास खंड शिक्षा अधिकारी नीलेश चंद्रवंशी ने भी इस पहल की सराहना करते हुए कहा कि इस तरह के आयोजन बच्चों को प्रेरित करते हैं और शिक्षा को सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं रखते।
नेवता भोज क्यों है खास?
यह कोई सामान्य भोज नहीं, बल्कि “समुदाय आधारित सहभागिता” की मिसाल है। यह पहल न सिर्फ बच्चों के पोषण में मददगार है, बल्कि उनके भीतर आत्मीयता और सामाजिक समानता का भाव भी विकसित करती है।
अब कोई भी व्यक्ति—चाहे वह शिक्षक हो, पालक हो, या समाज का कोई जागरूक नागरिक—शादी, जन्मदिन, त्योहार या वैवाहिक वर्षगांठ जैसे अवसर पर स्कूल में “नेवता भोज” आयोजित कर सकता है।
इनकी भागीदारी ने बनाया सफल
कार्यक्रम को सफल बनाने में कई शिक्षकों, कर्मचारियों और स्थानीय लोगों ने दिल से सहयोग दिया, जिनमें प्रमुख नाम हैं:
प्रधान पाठक पवन कुमार साहू, ओंकार डडसेना, गणेश्वर ठाकुर, रोशन महिलांगे, प्राचार्य नेमेश्वरी साहू, रसोइया दुलेश्वरी साहू, चम्पा साहू, चितरेखा चक्रधारी आदि।
समाज की भागीदारी की नई मिसाल
कार्यक्रम में अनेक जनप्रतिनिधि और सामाजिक कार्यकर्ता भी उपस्थित रहे—भाजपा मंडल अध्यक्ष बुलाक साहू, विधायक प्रतिनिधि रोहित साहू, सरपंच दिलेश्वर साहू, और कई अन्य गणमान्य नागरिकों ने बच्चों के साथ मिलकर इस आयोजन को विशेष बना दिया।
उपहार में जूते-मोजे देकर बच्चों को हौसला मिला
इसी दिन, शासकीय पूर्व माध्यमिक शाला रानो में एक और प्रेरणादायक दृश्य देखने को मिला। नवकार महिला मंडल परपोड़ी की सदस्यों ने नवप्रवेशी बच्चों को जूते और मोज़े भेंट किए। इस छोटे से उपहार ने बच्चों के चेहरे पर जो मुस्कान लाई, वह अनमोल थी।
शिक्षिका प्रतीक जैन ने इसे बच्चों के आत्मविश्वास और उपस्थिति में सुधार की दिशा में एक बड़ा कदम बताया। समाज और स्कूल के बीच सहयोग की यह भावना शिक्षा को केवल पठन-पाठन नहीं, बल्कि जीवन से जोड़ती है।