“प्याज़-रोटी से शुरू हुआ सफर, पहली फिल्म से बदली किस्मत” – रोनित रॉय की संघर्ष से स्टारडम तक की कहानी

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मुंबई की गलियों में भूख से जूझते इस युवा ने कभी नहीं सोचा था कि एक दिन वो इंडस्ट्री का जाना-पहचाना नाम बनेगा।

मुंबई।
टीवी और फिल्मों दोनों में अपनी दमदार अदायगी से लाखों दिलों पर राज करने वाले अभिनेता रोनित बोस रॉय ने हाल ही में अपने संघर्षपूर्ण दिनों को याद करते हुए एक ऐसा किस्सा साझा किया, जिसने हर श्रोता की आंखें नम कर दीं।

अपने शुरुआती दिनों में मुंबई के बांद्रा स्टेशन के पास एक ढाबे से केवल एक वक्त का खाना लेकर दिन बिताने वाले रोनित आज उस दौर को याद कर कहते हैं –

“मैं हर दिन उसी ढाबे पर जाता था… सिर्फ एक बार खा सकता था, क्योंकि और खर्च उठाना मुश्किल था।”
कभी काली दाल-रोटी, तो कभी पालक पनीर और रोटी – बस इतना ही उनकी थाली में होता था।

एक प्याज, दो रोटी… और एक अनजान का दिल छू लेने वाला इंसानियत भरा पल

रोनित ने एक मार्मिक घटना साझा करते हुए कहा –

“एक दिन मेरे पास एक भी पैसा नहीं था। मैं ढाबे पर गया और बस दो रोटी और एक प्याज मांगी। वहां काम करने वाले एक व्यक्ति ने मुझे न सिर्फ रोटी-प्याज दी, बल्कि दाल भी परोसी और कहा – ‘ये मेरी तरफ से है भाई।'”
यह लम्हा आज भी रोनित के दिल में बसा है – और शायद इसी ने उन्हें सिखाया कि इंसानियत सबसे बड़ी दौलत है।


पहली फिल्म, पहली कमाई – ज़िंदगी ने बदला मोड़

साल 1991 में रोनित को अपनी पहली फिल्म के लिए 50,000 रुपये मिले। उस पल को याद करते हुए वे कहते हैं –

“मैंने कभी इतने पैसे एक साथ देखे नहीं थे। ऐसा लगा जैसे ज़िंदगी की दिशा बदल गई हो।”

साल 1992 में आई उनकी पहली फिल्म “जान तेरे नाम” ने उन्हें एक नई पहचान दी। युवाओं के बीच वो पोस्टरबॉय बन गए। लेकिन यह सफर आसान नहीं रहा।


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कभी बॉलीवुड से बाहर हुए, तो टीवी ने दी नई उड़ान

शुरुआती फिल्मों के बाद रोनित का करियर धीमा पड़ गया। कई फिल्में नहीं चलीं और एक वक्त ऐसा भी आया जब उन्हें दोबारा संघर्ष की राह पर लौटना पड़ा। लेकिन 2000 के दशक की शुरुआत में टीवी ने उन्हें नया जीवन दिया।

कसौटी ज़िंदगी की‘ में मिस्टर बजाज का किरदार और ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी‘ में उनका अभिनय आज भी याद किया जाता है। रोनित रॉय टेलीविज़न के सबसे सशक्त और भरोसेमंद चेहरों में से एक बन गए।


आज भी ज़मीन से जुड़े हैं रोनित

शोहरत और नाम कमाने के बावजूद रोनित आज भी अपनी जड़ों से जुड़े हैं। संघर्ष के दिनों की भूख, बेबसी और वह ढाबेवाले की दाल-रोटी आज भी उनके ज़हन में है।

“मेहनत, सब्र और दूसरों की मदद को कभी मत भूलो… यही मेरी असली कमाई है।”रोनित रॉय

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