बिलासपुर। महिला का दावा है कि इस संबंध के परिणामस्वरूप उसने एक बच्चे को जन्म दिया और अब वह बच्चे के जैविक पिता की पुष्टि के लिए डीएनए परीक्षण चाहती है। महिला की याचिका पर फैमिली कोर्ट ने 8 अक्टूबर 2024 को डीएनए जांच की अनुमति दे दी थी। इसके खिलाफ एडवोकेट मल्लिक ने हाईकोर्ट में दो अलग-अलग याचिकाएं दाखिल कर इस आदेश को चुनौती दी थी।
पहले चरण में हाईकोर्ट ने आंशिक राहत देते हुए कहा था कि डीएनए टेस्ट का निर्णय दोनों पक्षों के साक्ष्य दर्ज होने के बाद किया जाए। हालांकि, याचिकाकर्ता ने बाद में एक नई याचिका दाखिल कर फिर से फैमिली कोर्ट के अधिकार क्षेत्र पर सवाल उठाया, जिसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह अधिकार क्षेत्र पहले ही तय हो चुका है और फैमिली कोर्ट इस मामले में पूर्ण रूप से सक्षम है।
ब्लड सैंपल देकर जांच प्रक्रिया स्वीकारी
हाईकोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि याचिकाकर्ता ने स्वयं 4 जुलाई 2024 को डीएनए जांच के लिए ब्लड सैंपल दिया था, जिससे यह स्पष्ट होता है कि उन्होंने जांच की प्रक्रिया को स्वीकार किया था। इसके बावजूद तथ्यों को छुपाकर दोबारा याचिका दाखिल करना न्यायालय की प्रक्रिया के दुरुपयोग के रूप में देखा गया। हाईकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि याचिकाकर्ता के सभी मुद्दे पहले ही तय हो चुके हैं और कोई नया कानूनी आधार प्रस्तुत नहीं किया गया है, इसलिए याचिका को खारिज किया जाता है। इसके साथ ही पहले दी गई अंतरिम राहत को भी समाप्त कर दिया गया है।
बॉयोलॉजिकल पिता की जानकारी होना जरूरी
दरअसल, महिला ने फैमिली कोर्ट में यह तर्क दिया कि उसकी बच्ची नाबालिग है, इसलिए उसके बॉयोलॉजिकल पिता की जानकारी होना जरूरी है। ताकि, उसके पिता का अधिकार मिल सके। महिला का यह भी आरोप है कि जूनियर के तौर पर काम करने के दौरान एडवोकेट ने उनका यौन शोषण किया। कोर्ट में सुनवाई के दौरान यह बात भी सामने आई कि यह मामला केवल एक विवादित पितृत्व का नहीं, बल्कि न्यायिक पेशे की मर्यादा, महिला वकीलों की गरिमा और नैतिक जिम्मेदारियों का भी प्रश्न है। जहां एक ओर महिला वकील अपने अधिकार और बच्चे के भविष्य के लिए संघर्ष कर रही है।
इधर, हाईकोर्ट से 74 विद्यार्थियों को राहत
बिलासपुर। हाईकोर्ट के डिविजन बेंच ने एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाते हुए यह आदेश पारित किया कि डीपीएस रिसाली, शंकराचार्य विद्यालय सेक्टर-10, एवं डीएवी हुडको माइलस्टोन से निष्कासित किए गए 74 विद्यार्थियों को आरटीई के तहत तत्काल प्रभाव से विद्यालय में पुनः अध्ययन की अनुमति दी जाए। इस फैसले के साथ ही कोर्ट ने जिला शिक्षा अधिकारी दुर्ग के आदेश को निरस्त कर दिया है। जिला शिक्षा अधिकारी, दुर्ग द्वारा 3 जुलाई 2025 को इन विद्यालयों को आदेशित करते हुए शिक्षा के अधिकार अधिनियम (आरटीई) के अंतर्गत नामांकित विद्यार्थियों को विद्यालय से निष्कासित करने की कार्रवाई की गई। इस निर्णय से बच्चों का भविष्य अधर में लटक गया था और पालकों में गहरा आक्रोश एवं निराशा थी।