मुख्य बिंदु:
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पूर्व कुलपति प्रो. अशोक सिंह पर पद के दुरुपयोग का गंभीर आरोप
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बीएचयू की पेंशन लेते हुए एसजीजीयू से कुलपति पद का पूरा वेतन भी उठाते रहे
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चार वर्षों में शासन को ₹54 लाख से अधिक की वित्तीय हानि
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विवि प्रशासन ने राशि लौटाने का भेजा नोटिस, प्रो. सिंह ने लेने से किया इनकार
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राजभवन को भेजी गई रिपोर्ट, अब पुलिस से वसूली की तैयारी
अंबिकापुर | विशेष रिपोर्ट
संत गहिरा गुरु विश्वविद्यालय (एसजीजीयू), अंबिकापुर के बर्खास्त पूर्व कुलपति प्रो. अशोक सिंह पर गंभीर वित्तीय अनियमितता का आरोप सामने आया है। विश्वविद्यालय प्रशासन की जांच में खुलासा हुआ है कि प्रो. सिंह ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) से पेंशन प्राप्त करते हुए चार वर्षों तक एसजीजीयू से कुलपति पद का पूरा वेतन भी लिया। यह कार्य नियमानुसार पूरी तरह गलत और सेवा शर्तों के विरुद्ध है।
विश्वविद्यालय के अधिकारियों के अनुसार, इस गड़बड़ी के चलते शासन को कुल ₹54,03,428 की वित्तीय क्षति हुई है। जब यह मामला उजागर हुआ, तब विवि प्रशासन में हड़कंप मच गया।
कैसे हुआ यह दुरुपयोग?
2 अगस्त 2021 को काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्राध्यापक रहे प्रो. अशोक सिंह को छत्तीसगढ़ राज्यपाल एवं एसजीजीयू के कुलाधिपति द्वारा कुलपति के पद पर नियुक्त किया गया था। उन्होंने अगले ही दिन पदभार ग्रहण कर लिया था।
किसी भी सेवानिवृत्त अधिकारी की नियुक्ति के समय संबंधित व्यक्ति को अपनी सेवानिवृत्ति की सूचना और पेंशन दस्तावेज विश्वविद्यालय को अनिवार्य रूप से देने होते हैं, ताकि उसके वेतन से पेंशन की कटौती की जा सके। परंतु आरोप है कि न तो प्रो. सिंह ने समय रहते यह सूचना दी, और न ही विवि के तत्कालीन अधिकारियों ने इस विषय में जांच की।
वित्त अधिकारी और कुलसचिव द्वारा बिना पेंशन कटौती की प्रक्रिया अपनाए सीधे पूर्ण वेतन जारी कर दिया गया। इस लापरवाही और मिलीभगत के चलते शासन को चार वर्षों में ₹54 लाख से अधिक का नुकसान हुआ।
बर्खास्तगी और प्रशासन की कार्रवाई
प्रो. अशोक सिंह पर पहले से ही कई वित्तीय अनियमितताओं के आरोप लगे थे। इन आरोपों की राजभवन और राज्य सरकार स्तर पर जांच कराई गई, जिसके बाद अगस्त 2024 में उन्हें बर्खास्त कर दिया गया।
मामला सामने आने के बाद एसजीजीयू के कुलसचिव डॉ. एसपी त्रिपाठी ने बीएचयू से प्रो. सिंह की पेंशन की जानकारी मंगवाई। जांच के उपरांत यह स्पष्ट हुआ कि उन्होंने बीएचयू से पेंशन भी ली और एसजीजीयू से कुल वेतन भी। इस पर विश्वविद्यालय ने उन्हें विवरण सहित नोटिस भेजा और अधिक ली गई राशि लौटाने की मांग की।
हालांकि, विश्वविद्यालय के अनुसार प्रो. सिंह ने पंजीकृत डाक से भेजे गए नोटिस को स्वीकार करने से इंकार कर दिया। अब यह मामला राजभवन को भेजा गया है और शासकीय राशि की वसूली के लिए पुलिस की मदद ली जाएगी।
विवि अधिकारियों की भी संलिप्तता पर सवाल
यह मामला केवल पूर्व कुलपति के दुरुपयोग तक सीमित नहीं है। विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलसचिव और वित्त अधिकारी भी इस गंभीर लापरवाही के लिए जिम्मेदार माने जा रहे हैं। उनका बिना जांच किए वेतन जारी करना सीधे वित्तीय अनियमितता की श्रेणी में आता है।
इस पूरे घटनाक्रम ने विवि प्रशासन की कार्यप्रणाली पर बड़ा प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया है। अब यह देखना होगा कि शासन इस मामले में दोषियों पर क्या कार्रवाई करता है और ₹54 लाख की रिकवरी कैसे सुनिश्चित की जाती है।
निष्कर्ष
संत गहिरा गुरु विश्वविद्यालय में सामने आए इस घोटाले ने न केवल प्रशासनिक प्रणाली की कमजोरियों को उजागर किया है, बल्कि यह भी बताया है कि उच्च शैक्षणिक पदों पर बैठे व्यक्ति भी किस प्रकार नियमों की धज्जियाँ उड़ाकर सरकारी तंत्र को चूना लगा सकते हैं।
शासन और राजभवन को अब यह सुनिश्चित करना होगा कि इस मामले में दोषियों को दंडित किया जाए और जनधन की एक-एक पाई की वसूली की जाए।