रायपुर। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) की कक्षा 8वीं की सामाजिक विज्ञान की नई पाठ्यपुस्तक को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। हाल ही में जारी इस किताब में मुग़ल शासकों के इतिहास को नए दृष्टिकोण से पेश किया गया है, जिसमें बाबर, अकबर और औरंगज़ेब जैसे शासकों को क्रूर, हिंसक और धार्मिक रूप से कट्टर बताया गया है। यह संशोधित पाठ्यक्रम मौजूदा शैक्षणिक सत्र से लागू किया गया है और इसकी शुरुआत के साथ ही विभिन्न शिक्षाविदों और संगठनों में असंतोष और बहस का माहौल बन गया है।
NCERT द्वारा प्रकाशित इस नई किताब में बाबर को ‘बर्बर’, ‘हिंसक विजेता’ और ‘आबादी का सफाया करने वाला’ बताया गया है। वहीं अकबर के शासन को ‘क्रूरता और सहिष्णुता का मिला-जुला रूप’ कहा गया है। किताब में उल्लेख है कि अकबर ने चित्तौड़ के किले पर विजय के समय 30,000 नागरिकों का जनसंहार किया और महिलाओं-बच्चों को गुलाम बनाने का आदेश दिया। अकबर के हवाले से एक कथन भी प्रस्तुत किया गया है जिसमें कहा गया है: “हमने काफ़िरों के कई किलों और कस्बों पर कब्जा किया है और वहां इस्लाम की स्थापना की है। खून की प्यासी तलवारों की मदद से हमने उनके मन से काफ़िरों के निशान मिटा दिए हैं और उनके मंदिरों को नष्ट कर दिया है।” हालांकि, किताब में यह भी लिखा गया है कि अकबर ने अपने शासन के उत्तरार्ध में शांति और सद्भावना की नीति को अपनाया।
वहीं औरंगज़ेब को मंदिरों, गुरुद्वारों और अन्य धार्मिक स्थलों को नष्ट करने वाला शासक बताया गया है। किताब में साफ तौर पर उल्लेख है कि औरंगज़ेब ने बनारस, मथुरा और सोमनाथ सहित जैन मंदिरों और सिख गुरुद्वारों को तोड़ने का आदेश दिया था। इसके अलावा पारसियों और सूफियों पर किए गए कथित अत्याचारों का भी जिक्र किया गया है। इस किताब में 13वीं से 17वीं सदी तक के भारतीय इतिहास को कवर किया गया है, जहां सल्तनत काल को मंदिर तोड़ने और लूटपाट से जोड़ते हुए चित्रित किया गया है, जो पूर्ववर्ती पाठ्यक्रमों में नहीं था।
सबसे अधिक विवाद पाठ्यपुस्तक के पृष्ठ क्रमांक 20 पर लिखी गई टिप्पणी को लेकर है, जिसका शीर्षक है “इतिहास की अंधकारमय अवधि पर एक टिप्पणी”। इस टिप्पणी में सल्तनत और मुग़ल काल को एकपक्षीय रूप से नकारात्मक स्वरूप में चित्रित करने का आरोप लगाया जा रहा है। निजी स्कूल संघ के अध्यक्ष राजीव गुप्ता का कहना है कि इतिहास के नाम पर विचारधारा नहीं थोपी जानी चाहिए। “जो हुआ, उसे तथ्यों के साथ रखा जाए। छात्रों को सही-गलत का मूल्यांकन करने की स्वतंत्रता दी जानी चाहिए,” उन्होंने कहा। वहीं रविशंकर विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग के प्राध्यापक डॉ. नितेश मिश्रा का मानना है कि इतिहास को लेकर हर इतिहासकार की अपनी दृष्टि होती है। “यह दौर राष्ट्रवादी दृष्टिकोण रखने वाले इतिहासकारों का है, जिनकी सोच अब पाठ्यक्रम में परिलक्षित हो रही है,” उन्होंने कहा।
विवाद बढ़ने के बाद NCERT ने एक आधिकारिक बयान जारी किया है। परिषद ने स्पष्ट किया कि आठवीं कक्षा के लिए जारी की गई यह नई सामाजिक विज्ञान की किताब ‘Exploring Society, India and Beyond’ राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 और राष्ट्रीय पाठ्यक्रम फ्रेमवर्क 2023 के तहत तैयार की गई है। परिषद के अनुसार, “यह किताब भारतीय इतिहास की 13वीं से 19वीं सदी के मध्य तक की अवधि को कवर करती है। हमने इतिहास में बार-बार दोहराए गए तथ्यों को हटाकर आलोचनात्मक सोच को प्रोत्साहित किया है और विश्वसनीय स्रोतों के आधार पर संतुलित विवरण प्रस्तुत किया है।” बयान में यह भी कहा गया है कि ‘इतिहास की अंधकारमय अवधि’ शीर्षक वाले अध्याय में इस उद्देश्य से टिप्पणी दी गई है ताकि युवा पीढ़ी अतीत के पक्ष-विपक्ष को समझ सके और किसी भी प्रकार के पूर्वाग्रह व भ्रम से दूर रह सके। साथ ही NCERT ने यह भी जोड़ा है कि “हमने यह स्पष्ट किया है कि अतीत में जो कुछ भी हुआ, उसके लिए आज की पीढ़ियों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।”
यह नई किताब इतिहास के पुनर्लेखन की दिशा में एक अहम कदम मानी जा रही है, पर इसके साथ ही यह सवाल भी खड़े हो रहे हैं कि क्या यह बदलाव संतुलित और शिक्षाप्रद है या फिर इतिहास की एकपक्षीय व्याख्या? आने वाले समय में यह मुद्दा न केवल शैक्षणिक संस्थानों में चर्चा का विषय बनेगा, बल्कि सामाजिक-राजनीतिक विमर्श का भी केंद्र रहेगा।