छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर में म्यूल अकाउंट के जरिए हो रही डिजिटल ठगी और सट्टेबाजी के एक बड़े रैकेट का पर्दाफाश हुआ है। गांधीनगर पुलिस ने इस रैकेट में शामिल चार स्थानीय युवकों को गिरफ्तार किया है, जिन्होंने मात्र 30 हजार रुपये के लालच में अपने बैंक अकाउंट और सिम कार्ड सट्टेबाजों को बेच दिए थे। इन खातों का इस्तेमाल 7 लाख रुपये से अधिक की संदिग्ध ऑनलाइन लेन-देन के लिए किया गया।
क्या है मामला?
पुलिस जांच में सामने आया है कि गिरफ्तार आरोपी अंबिकापुर के विभिन्न क्षेत्रों से हैं और इन्होंने सट्टेबाजों के संपर्क में आकर अपने खाते और मोबाइल सिम कार्ड उन्हें सौंप दिए। सटोरियों ने इन अकाउंट्स का इस्तेमाल मनी लॉन्ड्रिंग और सट्टेबाजी में किया।
गांधीनगर पुलिस ने चारों आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) और IT एक्ट की धाराओं के तहत अपराध दर्ज कर लिया है। साथ ही पुलिस की टीमें मुख्य सटोरियों और गिरोह के अन्य सदस्यों की तलाश में भी जुट गई हैं।
⚠️ म्यूल अकाउंट: साइबर अपराध की नई चाल
“म्यूल अकाउंट” ऐसे बैंक खाते होते हैं, जिनका उपयोग साइबर ठग और सट्टेबाज अवैध लेनदेन के लिए करते हैं। वे खुद को सुरक्षित रखने के लिए पीड़ितों से ठगे गए पैसे सीधे अपने खातों में नहीं लेते, बल्कि इन “म्यूल अकाउंट्स” में ट्रांसफर करवाते हैं। इससे असली अपराधी कानून की नजरों से बच जाते हैं, और खाते का मालिक बिना अपराध किए भी आरोपी बन जाता है।
बढ़ता खतरा: डिजिटल अपराध की डरावनी तस्वीर
गांधीनगर थाना प्रभारी ने बताया कि साइबर क्राइम और ऑनलाइन सट्टेबाजी के मामलों में म्यूल अकाउंट्स का इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है। यह न केवल डिजिटल अर्थव्यवस्था के लिए खतरा है, बल्कि भोले-भाले युवाओं के जीवन को भी बर्बादी की ओर धकेल रहा है।
“जिन्हें मामूली रकम देकर म्यूल बनाया जाता है, वे बाद में पुलिस और कानून के शिकंजे में फंस जाते हैं।” – थाना प्रभारी
पुलिस की अपील: सतर्क रहें, जागरूक बनें
पुलिस ने आम जनता से अपील की है कि किसी भी हाल में अपना बैंक अकाउंट, एटीएम, सिम कार्ड या UPI आईडी किसी अन्य को न दें। यदि कोई अधिक पैसे कमाने का लालच देकर आपसे ऐसा करने को कहे, तो तुरंत पुलिस को सूचना दें।
निष्कर्ष: लालच की कीमत – जेल की सलाखें
इस घटना ने एक बार फिर दिखा दिया है कि लालच और जल्दबाजी में लिया गया एक गलत फैसला जिंदगी को बर्बाद कर सकता है। पुलिस की सतर्कता और कड़ी कार्रवाई से जरूर राहत मिली है, लेकिन इस तरह के रैकेट की जड़ें अभी भी गहरी हैं, जिनपर लगातार निगरानी और जनजागरूकता की जरूरत है।