रायपुर। छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग (CGPSC) में सामने आए बहुचर्चित प्रश्नपत्र लीक घोटाले और हिरासत में मौत के दो अहम मामलों में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने सख्त टिप्पणियां की हैं। एक ओर जहां कोर्ट ने CGPSC पेपर लीक मामले के तीन आरोपियों की जमानत याचिका खारिज कर दी, वहीं दूसरी ओर पुलिस हिरासत में मौत के केस में चार दोषियों की सजा घटाते हुए यह स्पष्ट किया कि— “जब रक्षक ही भक्षक बन जाएं तो यह समाज और लोकतंत्र दोनों के लिए खतरे की घंटी है।”
✅ पेपर लीक को बताया युवाओं की हत्या जैसा अपराध
CGPSC भर्ती घोटाले में न्यायमूर्ति बिभू दत्त गुरु की एकल पीठ ने तीन आरोपियों की जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा—
“जो प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रश्नपत्र लीक करता है, वह लाखों युवाओं के भविष्य के साथ खेलता है। यह कृत्य किसी हत्या से कम गंभीर नहीं है।”
कोर्ट ने टिप्पणी में यह भी जोड़ा कि—
“PSC जैसी सम्मानित संस्था को कलंकित करने वाले आरोपी ‘बाड़ द्वारा फसल खाए जाने’ जैसे हैं।”
इस मामले में तत्कालीन परीक्षा नियंत्रक ललित गणवीर, श्रवण गोयल (उद्योगपति), व उनके सहयोगी आरोपियों पर यह आरोप है कि इन्होंने मिलकर पेपर को लीक कर योग्य अभ्यर्थियों का हक छीना। पेपर लीक की श्रृंखला में नाम सामने आए PSC के तत्कालीन अध्यक्ष टामन सिंह और उनके भतीजों का भी, जिन्हें सीधे तौर पर लाभ पहुंचाया गया।
याचिका में ‘भतीजा परिवार नहीं होता’ जैसे तर्कों को कोर्ट ने किया खारिज
आरोपियों ने जमानत याचिका में तर्क दिया था कि ‘भतीजा’ PSC नियमों के तहत परिवार की परिभाषा में नहीं आता, इसलिए इसमें कोई नियमभंग नहीं हुआ। कोर्ट ने इसे सिरे से खारिज कर दिया।
हिरासत में मौत: पुलिस पर 26 चोटों का आरोप, कोर्ट ने बदली सजा
दूसरे मामले में, 2016 में हिरासत में मौत के केस में हाई कोर्ट ने थाना प्रभारी जितेंद्र सिंह राजपूत समेत चार पुलिसकर्मियों की सजा को उम्रकैद से घटाकर 10 साल के कठोर कारावास में बदल दिया। मृतक सतीश नोरगे की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में शरीर पर 26 गंभीर चोटें मिली थीं।
हालांकि, कोर्ट ने माना कि हत्या की सीधी मंशा साबित नहीं हुई, लेकिन आरोपी जानते थे कि पीटने से गंभीर परिणाम हो सकते हैं। इस आधार पर IPC की धारा 302 (हत्या) की जगह धारा 304 भाग-1 (गैर-इरादतन हत्या) में सजा दी गई।
SC/ST एक्ट की धाराएं भी हटाईं
कोर्ट ने यह भी कहा कि अभियोजन यह साबित नहीं कर सका कि मृतक अनुसूचित जाति से है और पुलिसकर्मी यह जानते थे। इस आधार पर थाना प्रभारी को SC/ST एक्ट से राहत दे दी गई।
CGPSC केस में CBI ने खोला था पूरा जाल
CBI की जांच में खुलासा हुआ कि पेपर लीक की योजना PSC के भीतर ही बनी। पेपर पीएससी के अध्यक्ष ने अपने भतीजों को पहुंचाया, फिर परीक्षा नियंत्रक के जरिए उद्योगपति श्रवण गोयल तक, जिनके बेटे-बहू को डिप्टी कलेक्टर और DSP जैसे महत्वपूर्ण पद मिले। यही नहीं, इस पेपर लीक से कई अन्य अभ्यर्थियों को भी अनुचित लाभ मिला।