छत्तीसगढ़ की मिट्टी में सिर्फ धान ही नहीं उगता, यहां की परंपराएं, आस्थाएं और सामाजिक समरसता भी उतनी ही गहराई से जमी हुई हैं। इन्हीं परंपराओं में से एक है – हरेली तिहार, जो हर साल सावन अमावस्या के दिन पूरे राज्य में उत्साह, भक्ति और सामाजिक सौहार्द के साथ मनाया जाता है।
हरेली, यानी हरियाली का पर्व, सिर्फ एक तिहार नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक आत्मा का उत्सव है। यह छत्तीसगढ़ के ‘धान के कटोरे’ होने की पहचान को गहराई से रेखांकित करता है। यह तिहार नए साल के बाद आने वाला पहला प्रमुख त्योहार होता है, जो प्रकृति से जुड़ाव, कृषि के महत्व और समरसता की भावना को एक साथ पिरोता है।
खेती-किसानी और परंपरा का अनूठा संगम
हरेली तिहार के दिन गांव-गांव में हल, बैल, गाड़ी, ट्रैक्टर, खुरपी, कुदाल, रापा जैसे कृषि यंत्रों की विशेष सफाई होती है और उन्हें धन्यवाद के प्रतीक स्वरूप पूजा जाता है। यह परंपरा बताती है कि कैसे छत्तीसगढ़ की जनता अपनी जमीन और उसके उपकरणों को ईश्वर की तरह पूजती है। खेतों में काम आने वाले बैलों और गोधन को विशेष भोजन – लोदी – खिलाया जाता है, जो आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों और गेहूं के आटे से बनाया जाता है।
स्वास्थ्य के प्रतीक नीम और जड़ी-बूटियां
सावन का महीना बारिश, उमस और बीमारियों का महीना भी माना जाता है। ऐसे में छत्तीसगढ़िया संस्कृति की वैज्ञानिक सोच भी झलकती है। हरेली के दिन हर घर में नीम के पत्ते दरवाजे पर गढ़े जाते हैं, ताकि संक्रमण न फैले। जानवरों को लोदी खिलाकर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने की परंपरा बताती है कि कैसे यह पर्व सिर्फ पूजा-पाठ तक सीमित नहीं, बल्कि स्वास्थ्य जागरूकता का प्रतीक भी है।
समरसता और सामाजिक सौहार्द की जीवंत मिसाल
छत्तीसगढ़ में चाहे कोई भी त्योहार हो, सभी जाति और धर्म के लोग मिलजुल कर उत्सव मनाते हैं। हरेली इसकी सबसे सुंदर मिसाल है। यह पर्व गांवों में सामाजिक एकता, सामूहिक पूजा, और मेल-जोल की भावना को प्रोत्साहित करता है। गांव के देवी-देवताओं की पूजा, रात भर का जगराता, बैगा और ओझाओं द्वारा की जाने वाली दिशारी पूजा – ये सभी अनिष्ट से रक्षा की परंपराओं से जुड़े होते हैं।
हरियर छत्तीसगढ़ की पहचान
हरेली तिहार केवल खेती का पर्व नहीं, बल्कि यह छत्तीसगढ़ के हरियाली अभियान ‘हरियर छत्तीसगढ़’ से भी जुड़ा हुआ है। इस दिन गांवों, स्कूलों और शहरी इलाकों में वृक्षारोपण अभियान चलाए जाते हैं। पर्यावरण संरक्षण और प्रकृति से प्रेम की भावना इस त्योहार के मूल में समाई हुई है।