नवा रायपुर का ट्राइबल म्यूजियम: परंपरा और पहचान को सहेजने की अनूठी पहल

Spread the love

आदिवासी समुदाय छत्तीसगढ़ की परंपरा, कला और संस्कृति की पहचान हैं। जनजातियों के इस सुंदर संसार को दुनिया से रूबरू कराने के लिए छत्तीसगढ़ की CM विष्णु देव साय की सरकार ने नवा रायपुर अटल नगर में आदिवासी संग्रहालय का निर्माण कराया है। CM श्री साय ने नवा रायपुर अटल नगर में करीब 10 एकड़ क्षेत्र में बने आदिवासी संग्रहालय (ट्राइबल म्यूजियम) का लोकार्पण किया था। तब से यह संग्रहालय लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।


जनजातीय जीवनशैली डिजिटल माध्यम से दर्शाया गया
आदिवासी संग्रहालय में आने वाली नयी पीढ़ी यहां की 14 गैलरियों में छत्तीसगढ़ में निवास करने वाली 43 जनजातियों की पूरी संस्कृति को नजदीक से देख रही है। हर गैलरी, आदिवासी संस्कृति और परंपरा की पूरी कहानी बयां करती है। इस संग्रहालय में छत्तीसगढ़ की विभिन्न जनजातीय समुदायों की जीवनशैली, वेशभूषा, लोककला, रीति-रिवाज और धार्मिक मान्यताओं को दृश्य और डिजिटल माध्यमों से दर्शाया गया है। यहां ऐसा जीवंत माहौल- मूर्तियां इस तरह बनाई गई हैं कि लगता है अभी बोल उठेंगी। यहां हमारे विभिन्न समुदायों जैसे कंवर, गोंड, भतरा, हलबा और अन्य जातियों की अलग-अलग संस्कृति, वेशभूषा और जीवनशैली को बिल्कुल सजीव रूप में प्रस्तुत किया गया है।


14 गैलरियों में सजी जनजातीय संस्कृति
जनजातीय संग्रहालय में कुल 14 गैलरियां हैं, जिनमें जनजातीय जीवनशैली के सभी पहलुओं का बहुत ही खूबसूरत ढ़ंग से जीवंत प्रदर्शन किया गया है। इनमें जनजातियों के भौगोलिक विवरण, तीज-त्यौहार, पर्व-महोत्सव तथा विशिष्ट संस्कृति, आवास एवं घरेलू उपकरण, शिकार उपकरण, वस्त्र (परिधान) एवं आभूषण, कृषि तकनीक एवं उपकरणों, जनजातीय नृत्य, जनजातीय वाद्ययंत्रों, आग जलाने, लौह निर्माण, रस्सी निर्माण, फसल मिंजाई (पौधों से बीज अलग करना), कत्था निर्माण। चिवड़ा-लाई निर्माण, मंद आसवन, अन्न कुटाई व पिसाई, तेल प्रसंस्करण के लिए उपयोग में लाने जाने वाले उपकरणों व परंपरागत तकनीकों, सांस्कृतिक विरासत के अंतर्गत अबुझमाड़िया में गोटुल, भुंजिया जनजाति में लाल बंगला इत्यादि, जनजातीय में परम्परागत कला कौशल जैसे बांसकला, काष्ठकला, चित्रकारी, गोदनाकला, शिल्पकला आदि का एवं अंतिम गैलरी में विषेष रूप से कमजोर जनजाति समूह यथा अबूझमाड़िया, बैगा, कमार, पहाड़ी कोरवा, बिरहोर एवं राज्य शासन द्वारा मान्य भुंजिया एवं पण्डो के विशेषीकृत पहलुओं का प्रदर्शन किया गया है।


म्यूजियम में बनाया गया है लाल बंगला
म्यूजियम में एक लाल बंगला भी बनाया गया है। बताया गया है कि, ये भुंजिया जनजाति की रसोई है। इसे रंधनी कुरिया या लाल बंगला कहते हैं। यह लाल मिट्‌टी से बनती है। इसे आदिवासी अपने रहने वाली झोपड़ी से अलग बाहर बनाते हैं। इसमें भुंजिया समुदाय के अलावा कोई और नहीं जा सकता, कोई चला गया तो पूरी रसोई को नष्ट कर देते हैं। परिवार में या समुदाय में किसी की मौत होने पर ही इसे आग लगाकर या तोड़कर नया बनाया जाता है। इसमें बाध्यता यह है कि, दोबारा बनने पर इसे नई जगह पर ही बनाया जाएगा। पुरानी जगह पर नहीं। इसमें खाना बनाने के लिए भी हांडी, हंसिया, कांसे की थाली लोटा गिलास कटोरी बाटलोई जैसे परंपरागत बर्तन इस्तेमाल होते हैं। इसे बनाने के लिए महिला और पुरुष के काम भी बंटे हुए हैं। लाल बंगला में उपयोगी लकड़ी जंगल से लाने, मिट्टी बनाने, छत बनाना यह सब पुरुष करते हैं। इसमें महिलाओं के सम्मिलित होने की मनाही है। फर्श पर लिपाई दीवारों पर पुताई, चूल्हा बनाने का काम महिलाएं करती हैं। बाहरी दीवारों की छबाई दोनों मिलकर करते हैं।


जान बचाने वाले कंगन
आदिवासी समुदाय की युवतियां नुकीले कंगन पहनती हैं। कई बार वह अकेले काम करने या लकड़ी लाने की वजह से जंगलों में जाती हैं। जंगली जानवरों के हमले से खुद को बचाने के लिए भी इन नुकीले कंगन का इस्तेमाल वह अपनी रक्षा के लिए करती हैं। किसी तरह की छेड़छाड़ या हमलावरों से खुद को बचाने के लिए भी सेल्फ डिफेंस के तौर पर यह मोटे नुकीले कंगन काम आते हैं। जान बचाने वाले इन कंगन को भी आदिवासी म्यूजियम के आभूषण गैलेरी में रखा गया है


AI टेक्निक से क्लिक करा सकेंगे फोटो
ट्राइबल म्यूजियम में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिए तस्वीरें क्लिक की जाएंगी। आपको एक स्पॉट पर खड़ा होना पड़ेगा, सामने स्क्रीन पर देखेंगे तो तस्वीर क्लिक हो जाएगी। चंद सेकेंड में आपको आपकी तस्वीर बस्तर के पारम्परिक ड्रेस में सजी मिलेगी।
आप बस्तर के वाद्य यंत्रों के साथ डांस करते दिखेंगे, किस तरह की ड्रेस में आपको अपनी तस्वीर खींचवानी है। इसके भी कुछ ऑप्शन अवेलेबल हैं। फोटो क्लिक होने के बाद आप इसका प्रिंट भी अपने साथ घर लेकर जा सकते हैं।


टच स्क्रीन पर मिलेगी पूरी डिटेल
जनजातियों के तीज-त्योहार, पर्व-महोत्सव, विशिष्ट संस्कृति को दिखाया गया है। साथ ही आवास एवं घरेलू उपकरण, शिकार उपकरण, वस्त्र (परिधान), आभूषण, कृषि तकनीक भी बताई गई है। इसके अलावा जनजातीय नृत्य, जनजातीय वाद्ययंत्रों, आग जलाने, लौह निर्माण, रस्सी निर्माण, फसल मिंजाई (पौधों से बीज अलग करना), कत्था निर्माण, चिवड़ा-लाई निर्माण को दिखाया गया है। अन्न कुटाई और पिसाई, तेल प्रसंस्करण के लिए उपयोग में लाने जाने वाले उपकरणों और परंपरागत तकनीकों को दर्शाया गया हैं।


सांस्कृतिक विरासत के तहत यह गया है दिखाया
अबुझमाड़िया में घोटुल, भुंजिया जनजाति में लाल बंगला, जनजातीय में परम्परागत कला कौशल (बांसकला, काष्ठकला, चित्रकारी, गोदनाकला, शिल्पकला) अंतिम गैलरी में विशेष रूप से कमजोर जनजाति समूह, अबूझमाड़िया, बैगा, कमार, पहाड़ी कोरवा, बिरहोर, मान्य भुंजिया और पंडो के पहलुओं का प्रदर्शन किया गया है।


9 करोड़ 27 लाख में बना है यह ट्राइबल म्यूजियम
विभाग के प्रमुख सचिव सोनमणि बोरा ने बताया कि, इस सेंटर को 9 करोड़ 27 लाख में तैयार किया गया है। करीब 10 एकड़ क्षेत्र में आकर्षक आदिवासी संग्रहालय (ट्राइबल म्यूजियम) बनाया गया है। राज्य के पहले ट्राइबल म्यूजियम में आम लोगों को जानकारियां मिलेंगी। दुनिया भर में ट्राइबल कल्चर पर रिसर्च करने वालों को भी काफी नई चीजें पता चलेंगी। आदिवासियों के हथियार, बाजार, गांव, सबकुछ देखने को मिलेगा। प्रदेश के 43 जनजातीय समुदाय और इनकी उपजातियां यहां बताई गई हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *