नक्सल क्रूरता से थर्रा उठा था बस्तर: मजरे-टोलों में पसरी पड़ी हैं लाल आतंक की कहानियां

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छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग का ऐसा कोई कोना नहीं बचा था, जहां नक्सलियों की गोली से कोई न ग्रामीण आदिवासी हताहत ना हुआ हो। ऐसा लगता था मानो यह समस्या अंतहीन हो चली है। संभवत: यह खूनी खेल कभी खत्म ही नहीं होगा। इसी बीच दिसंबर 2023 में छत्तीसगढ़ में नया सबेरा आया, विष्णुदेव साय की सरकार के रूप में। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की सरकार ने नक्सलियों के खूनी खेल के खात्मे का संकल्प लिया। अब वही संकल्प रंग लाने लगा है। बस्तर से नक्सलवाद खात्मे की ओर है और विकास के नवअंकुर फूटने लगे हैं।

बस्तर के जंगलों और पगडंडिंयों में सुरक्षाबलों को नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से नक्सली जंगल में IED लगा देते थे। जिसकी चपेट में ग्रामीण आते रहे और मौत की गोद में समाते रहे, या फिर अंग- भंग का शिकार होते रहे। इतना ही नहीं नक्सली अपना आतंक बनाए रखने के लिए मुखबिरी का आरोप लगाकर ग्रामीणों की हत्या कर देते रहे। उनकी क्रूरता ही हद का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि, इसी वर्ष उन्होंने एक 13 साल के बच्चे और एक 20 साल के युवक की हत्या कर दी।


समर्पण करने पर अपने ही कमांडर के 3 रिश्तेदारों को मार डाला
बीजापुर के पेद्दा कोरमा गांव में नक्सलियों ने 3 ग्रामीणों की निर्मम हत्या कर दी थी। मृतकों की पहचान झींगु मोडियम, सोमा मोडियम और अनिल माड़वी के रूप में हुई है। इनमें से दो मृतक पूर्व नक्सली कमांडर दिनेश मोडियम के नजदीकी रिश्तेदार बताए जा रहे हैं। तीन ग्रामीणों की हत्या के बाद से इलाके में दहशत का माहौल है। पेद्दा कोरम गांव में जिन तीन माओवादियों की हत्या की गई है, उसकी वजह फिलहाल सामने नहीं आ पाई है। बस्तर और खासकर नक्सल प्रभावित बीजापुर में लगातार एंटी नक्सल ऑपरेशन को तेज किया जा रहा है। एंटी नक्सल ऑपरेशन के दौरान चल रहे सर्चिंग अभियान से माओवादी बैकफुट पर हैं। माओवादी अपने पकड़े और मारे जाने के डर से इस तरह की कायराना करतूत को अंजाम दे रहे हैं।


हेड कॉन्स्टेबल के भाई की कर दी हत्या
बीजापुर में माओवादियों द्वारा लगातार तीसरी हत्या में दंतेवाड़ा जिले में तैनात एक हेड कॉन्स्टेबल के भाई 27 वर्षीय युवक की हत्या कर दी गई। छह दिनों के भीतर माओवादियों द्वारा की गई यह तीसरी हत्या है। घटना सुदूरवर्ती क्षेत्र मिरतूर के तिमेनार गांव में हुई। युवक की पहचान सुदरू करम के रूप में हुई है। ग्रामीणों के अनुसार उसकी हत्या इसलिए की गई क्योंकि करम का भाई पुलिस विभाग में तैनात था। माओवादी युवकों को पुलिस बल में भर्ती न होने देने का संदेश देकर परिवार और स्थानीय लोगों को धमकाना चाहते थे। बीजापुर पुलिस ने बताया कि प्रारंभिक जानकारी के अनुसार पीड़ित को मंगलवार सुबह गांव से अगवा कर जंगल में ले जाया गया। देर शाम उसका शव गांव के बाहरी इलाके में बरामद किया गया।


नक्सलियों की स्मॉल एक्शन टीम ने ली कई ग्रामीणों की जान
बीजापुर जिले में नक्सलियों ने पुलिस मुखबिरी के आरोप में नक्सलियों ने दो ग्रामीणों की निर्मम हत्या कर दी। घटना तर्रेतम थाना क्षेत्र के छुटवाई गांव की है। हत्या की जिम्मेदारी स्मॉल एक्शन जगरगुंडा एरिया कमेटी ने ली है। राज्य के उपमुख्यमंत्री अरूण साव ने इस घटना की निंदा की और कहा कि नक्सली बौखलाहट में कायराना हरकत कर रहे हैं। वहीं 21 जून को बीजापुर जिले में नक्सलियों ने 2 ग्रामीणों की हत्या कर दी। बताया जा रहा है कि इनमें एक सरेंडर नक्सली भी शामिल है। नक्सलियों ने पुलिस मुखबिरी के शक पर इनकी जान ली है। मामला पामेड़ थाना क्षेत्र का है। मृतकों का नाम समैय्या और वेको देवा है। समैय्या पहले नक्सली था। उसने 2025 में आत्मसमर्पण किया है। वहीं वेको देवा ग्रामीण है। दोनों नक्सल प्रभावित गांव सेंड्राबोर और एमपुर के रहने वाले थे। इन्हें मिलाकर बीजापुर में 7 दिन में ये 5वीं हत्या है।

सुरक्षाबलों के जवानों को एंबुश में फंसाकर मारना हो गई थी आम बात
बीजापुर जिले केतर्रेम की घटना की वजह से प्रदेश के बस्तर संभाग में नक्सली हिंसा की चर्चा फिर देशभर में हो रही है। हालांकि यहां के नक्सल इतिहास की सबसे बड़ी घटना छह अप्रैल 2010 को सुकमा जिले के ताड़मेटला गांव में हुई थी। इसमें सीआरपीएफ के 75 और जिला बल के एक जवान शहीद हो गए थे। नक्सलियों ने घात लगाकर सीआरपीएफ की कंपनी पर हमला किया और जवानों को संभलने का मौका तक नहीं मिला। नक्सली गर्मी में टेक्टिकल काउंटर अफेंसिव कैंपेन (टीसीओसी) चलाते हैं। इस दौरान जंगल में पतझड़ का मौसम होता है, जिससे दूर तक देख पाना संभव होता है। नदी-नाले सूखने के कारण एक जगह से दूसरी जगह जाना भी आसान होता है। नक्सली साल भर अपनी मांद में दुबककरसाथियों की मौत, गिरफ्तारी और आत्मसमर्पण को चुपचाप देखते हैं। बाद में टीसीओसी में पलटवार करते हैं। अभी उनका टीसीओसी का सीजन ही चल रहा है। इस दौरान उन्होंने नारायणपुर में ब्लास्ट कर पांच जवानों की हत्या की। तर्रेम में घात लगातार 22 जवानों की हत्या की। टीसीओसी के दौरान 15 मार्च 2008 को बीजापुर के रानीबोदली कैंप में हमला किया जिसमें 55 जवान शहीद हुए। 2013 में 25 मई को झीरम में कांग्रेस के काफिले पर हमला कर 31 लोगों की हत्या की। 2017 में 25 अप्रैल को सुकमा के बुरकापाल में सीआरपीएफ के 25 जवान शहीद हुए। 23 मार्च 2020 को मिनपा में 17 जवान शहीद हुए। यह सूची काफी लंबी है पर ताड़मेटला की घटना भयावह थी।


सुरक्षाबलों से सामना करने की नहीं बची हिम्मत : आईजी
बस्तर आईजी आईजी सुंदरराज पी ने कहा था कि, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के नक्सलवाद पर दी गई आखिरी डेडलाइन के बाद बस्तर में माओवादियों के खिलाफ लगातार ऑपरेशन जारी है। जिसमें जवानों को सफलता मिल रही है। इसी बीच नक्सल हिंसा में बस्तर के आदिवासी ग्रामीण भी मारे जा रहे हैं। बीते 7 महीनों में 30 ग्रामीण मारे गए हैं। बस्तर में इस समय माओवादी बैकफुट पर हैं। उस दौरान अपने कैडर के मनोबल को बढ़ाने के लिए नक्सली एक असफल प्रयास करते हैं और निर्दोष ग्रामीण महिला, बच्चे, बुजुर्ग को टारगेट कर उनकी निर्मम हत्या करते हैं। इस दौरान नक्सली पब्लिक इंफ्रॉस्ट्रक्चर को भी नुकसान पहुंचाते हैं। इस प्रकार सॉफ्ट टारगेट के ऊपर हमला करके नक्सली अपना वर्चस्व स्थापित करने का प्रयास करते हैं। जिसे देखते हुए माओवादियों के खिलाफ प्रबल रूप से कार्रवाई के लिए ऑपरेशन तेज किया जा रहा है। माओवादी वर्तमान में आमने- सामने की लड़ाई लड़ने की स्थिति में नहीं है। इस कारण आदिवासियों को निशाना बनाया जा रहा है। लेकिन इसका बड़ा प्रभाव नहीं पड़ेगा। क्षेत्र की जनता के जान माल की सुरक्षा करना पुलिस का प्रबलत दायित्व है। सभी को सुरक्षा दी जाएगी।

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