फिर गौ-वंश के खून से सना छत्तीसगढ़ का हाईवे: बिलासपुर में तेज रफ्तार वाहन ने 15 मवेशियों को रौंदा, हाईकोर्ट ने जताई सख्त नाराज़गी

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पंकज गुप्ते, बिलासपुर।
छत्तीसगढ़ का बिलासपुर जिला एक बार फिर नेशनल हाईवे पर बेजुबान गौ-वंश के खून से लाल हो गया। सरगांव क्षेत्र के लिमतरा में तेज रफ्तार वाहन ने सड़क पर बैठे मवेशियों के झुंड को रौंद डाला। इस दर्दनाक हादसे में 15 गौ-वंशों की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि एक गाय गंभीर रूप से घायल है।

यह हादसा उस समय हुआ जब नेशनल हाईवे पर गौ-वंशों का एक झुंड बैठा हुआ था। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, तेज रफ्तार में दौड़ रही एक अज्ञात वाहन ने बिना रुके मवेशियों को कुचलते हुए भाग निकला। घटना के बाद से इलाके में सनसनी फैल गई और गौ-सेवकों में भारी आक्रोश देखने को मिला।

एक महीने में 50 से अधिक मवेशियों की मौत, प्रशासन बेपरवाह

बिलासपुर जिले में यह कोई पहली घटना नहीं है। पिछले एक महीने में 50 से अधिक गौ-वंशों की इसी तरह वाहन से कुचलकर मौत हो चुकी है। बावजूद इसके, जिला प्रशासन और हाईवे अथॉरिटी की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।

हाईकोर्ट ने जताई नाराज़गी, प्रोजेक्ट डायरेक्टर से मांगा जवाब

इस गंभीर मुद्दे पर बिलासपुर हाईकोर्ट में जनहित याचिकाओं पर सुनवाई हुई। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली डिवीजन बेंच ने मामले पर कड़ी नाराज़गी जाहिर करते हुए नेशनल हाईवे के प्रोजेक्ट डायरेक्टर से अगस्त माह तक शपथपत्र के माध्यम से जवाब मांगा है।

कोर्ट ने यह भी पूछा है कि—

  • अब तक गौ-वंशों की मौत के मामलों में क्या कार्रवाई की गई?

  • नेशनल हाईवे पर सुरक्षा संकेतक (साइन बोर्ड) क्यों नहीं लगाए गए?

गौ-सेवकों का आरोप: जानबूझकर हो रही अनदेखी

स्थानीय गौ-सेवकों का आरोप है कि सड़क किनारे और बीचोंबीच बैठे मवेशियों को हटाने की कोई जिम्मेदारी प्रशासन नहीं ले रहा। नगर पालिका, पशु चिकित्सकों और हाइवे प्रशासन के बीच समन्वय का अभाव साफ नजर आता है।

जनहित बनाम जानलेवा लापरवाही

गौरतलब है कि हाईवे निर्माण और प्रबंधन से जुड़ी एजेंसियां केंद्र और राज्य सरकार के अधीन आती हैं। इसके बावजूद गौ-वंशों की लगातार हो रही मौतें और प्रशासन की निष्क्रियता कई गंभीर सवाल खड़े करती हैं।

मामला सिर्फ कानून का नहीं, संवेदनाओं का भी है

मवेशियों की हत्या केवल कानून का उल्लंघन नहीं, बल्कि समाज की सामूहिक संवेदनहीनता का भी प्रतीक है। ऐसे में हाईकोर्ट की कड़ी टिप्पणी को प्रशासन के लिए एक चेतावनी के तौर पर देखा जा रहा है।

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