छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेज कॉर्पोरेशन लिमिटेड (CGMSC) में हुए 650 करोड़ रुपए के घोटाले को लेकर प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने बड़ी कार्रवाई की है। जांच एजेंसी ने दुर्ग, रायपुर और बिलासपुर में मोक्षित कार्पोरेशन और स्वास्थ्य विभाग से जुड़े अधिकारियों के ठिकानों पर तड़के 6 बजे छापा मारा और कई महत्वपूर्ण दस्तावेज व इलेक्ट्रॉनिक सबूत जब्त किए।
दुर्ग में मोक्षित के तीन संचालकों के ठिकानों पर रेड
मोक्षित कॉर्पोरेशन के तीनों संचालकों का घर और कार्यालय दुर्ग के गंजपारा क्षेत्र में है।
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ED की टीम ने यहां लगातार 10 घंटे तक पूछताछ की।
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छापे में कैश, ज्वेलरी और दस्तावेज भी बरामद हुए।
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मोक्षित के डायरेक्टर शशांक चोपड़ा, कारोबारी शांतिलाल चोपड़ा का बेटा है, जिसे EOW पहले ही गिरफ्तार कर चुकी है।
650 करोड़ का घोटाला और 250 करोड़ की मनी लॉन्ड्रिंग
EOW (आर्थिक अपराध अन्वेषण शाखा) की जांच में सामने आया कि
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2019 से 2023 के बीच स्वास्थ्य विभाग, CGMSC, NHM और DHS में मशीनों, किट, दवाओं की खरीद में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ।
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इसमें से 250 करोड़ रुपए मनी लॉन्ड्रिंग के रूप में इधर-उधर किए गए।
बड़े अफसर अब भी बचाव में, जांच सिर्फ छोटे कर्मचारियों तक सीमित
अब तक
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CGMSC के तत्कालीन GM बसंत कौशिक,
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कमलकांत पाटनवार,
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दीपक बांधे,
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छिरौद रतौरिया,
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और स्वास्थ्य विभाग के डिप्टी डायरेक्टर डॉ. अनिल परसाई को गिरफ्तार किया गया है।
हालांकि, घोटाले की कड़ी आधा दर्जन IAS अधिकारियों तक जुड़ी बताई जा रही है जिनमें
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भीम सिंह,
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चंद्रकांत वर्मा,
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और प्रियंका शुक्ला शामिल हैं।
इसके बावजूद अभी तक कोई बड़ी प्रशासनिक कार्रवाई नहीं हुई है।
नई सरकार में भी जारी रहा भुगतान
रिपोर्ट्स के मुताबिक, भाजपा सरकार के आने के बाद भी मोक्षित कार्पोरेशन को 30 करोड़ से अधिक का भुगतान किया गया।
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विभागीय अफसरों ने इसके लिए नोटशीट तैयार की और कमीशन भी वसूला।
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यहां तक कि विधानसभा चुनाव से पहले आचार संहिता लगने से पहले खून जांच मशीनों की सप्लाई का टेंडर निकाला गया।
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मोक्षित ने मशीनें दीं, लेकिन अब तक इंस्टालेशन नहीं हुआ है।
ईडी की अगली कार्रवाई की तैयारी
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ईडी अब 2019 से 2023 के बीच की सभी खरीदारी, टेंडर, भुगतान प्रक्रिया की गहनता से जांच कर रही है।
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आईएएस अफसरों की भूमिका, अनुचित भुगतान, और राजनीतिक संरक्षण की भी जांच संभावित है।
छोटे अधिकारी जेल में, बड़े अधिकारी अब तक बाहर
जहां घोटाले में शामिल नीचे के स्तर के अफसर और कर्मचारी जेल में हैं, वहीं
वास्तविक फैसले लेने वाले बड़े अफसर अब भी खुले में हैं।
अब देखना होगा कि क्या ईडी और ईओडब्ल्यू की कार्रवाई सिर्फ औपचारिकता बनकर रह जाएगी या फिर बड़ी मछलियां भी जांच के घेरे में आएंगी।