कबीरधाम जिले के सोनवाही गांव में स्थित आदिवासी बालक आश्रम के बच्चे अब सुरक्षित नहीं है। यह भवन जर्चर हो चुका है। सीलन भरी दीवारों के बीच बच्चे पढ़ाई करने को मजबूर हैं। जहां बच्चों को शिक्षा दी जानी चाहिए, वहां डर और असुरक्षा का माहौल बना हुआ है।
सरकार आदिवासियों के कल्याण और बच्चों की शिक्षा को लेकर बड़े-बड़े दावे करती है, लेकिन जब जमीनी हकीकत की बात आती है, तो तस्वीरें कुछ और ही बयां करती हैं। कबीरधाम जिले के बोड़ला विकासखंड अंतर्गत सोनवाही गांव में स्थित आदिवासी बालक आश्रम बदहाली के आंसू रो रहा है। जर्जर भवन, टपकती छतें और सीलन भरी दीवारें इस बात का प्रमाण हैं कि आदिवासी बच्चों की शिक्षा और सुरक्षा को लेकर जिम्मेदारों की संवेदनशीलता केवल कागजों तक सीमित है।
32 साल पुराना है भवन
बताया जा रहा है कि, बोड़ला विकासखंड के सोनवाही गांव में स्थित आदिवासी बालक आश्रम जर्जर भवन, टपकती छतें और सीलन भरी दीवारों के बीच पढ़ने के लिए बच्चे मजबूर हो गए है। करीब 32 साल पुराना ये भवन अब पूरी तरह जर्जर हो चुका है।
रसोई में भी टपकता है बारिश का पानी
बरसात के दिनों में छत से पानी टपकता है, जिससे आश्रम के कर्मचारियों को पॉलिथीन लगाकर किसी तरह बच्चों को बचाने की कोशिश करनी पड़ती है। आश्रम के चौकीदार और रसोईया बताते हैं कि, बीते चार-पांच सालों से हालात यही हैं। बरसात में पानी टपकता है, रसोई घर तक में पानी भर जाता है, जिससे भोजन बनाना और बच्चों का रहना तक मुश्किल हो जाता है।
डर के साये में जीने को मजबूर हुए बच्चे
आलम यह है कि 50 सीट वाले इस आश्रम में आधे से ज्यादा बच्चे डर की वजह से नहीं आते। जो बच्चे किसी तरह आश्रम में रह रहे हैं, वे रोज छत गिरने के खतरे के साए में जीते हैं। सूखे मौसम में भी छत कभी भी धंसक सकती है, और यह डर हर बच्चे के सिर पर हर समय मंडराता रहता है। साफ है कि प्रशासन की लापरवाही और उदासीनता के कारण आदिवासी बच्चों का भविष्य अधर में लटक गया है।