रायपुर – छत्तीसगढ़ में पिछले खरीफ सीजन में खरीदे गए धान में से 74 लाख मीट्रिक टन से अधिक धान क्या गायब हो चुका है? यह सवाल उठने की वजह ये है कि मार्कफेड के रिकार्ड में यह धान उपार्जन केंद्रों में शेष दिख रहा है, लेकिन असलियत ये है कि उपार्जन केंद्रों में यह धान बकाया नहीं है, केवल आंकड़े शेष रह गए हैं। दूसरी ओर कलेक्टरों ने धान की रिकवरी के लिए सोसायटी प्रबंधकों को नोटिस जारी कर दिया है। शासन इस मामले को लेकर सख्त है।
कलेक्टरों ने रिकवरी के लिए तेज की कोशिश
बताया गया है कि, जिन सोसायटियों में धान का शार्टेज है, वहां प्रबंधकों को नोटिस भेज दिया गया है। उनसे कम हुए धान की मात्रा या उसके बराबर की कीमत देने कहा जा रहा है। यह नहीं करने पर एफआईआर की चेतावनी भी दी गई है। सूत्रों के अनुसार सोसायटी संचालक कम हुए धान की भरपाई अपनी जेब से कर रहे हैं। रायपुर जिले में ही कई सोसायटी प्रबंधक हाईकोर्ट की शरण में गए हैं। वहां उनकी दलील है कि खरीदी के बाद सरकार को तय समय में धान का परिवहन कराना था। लेकिन नहीं कराया गया। इस वजह से धान गरमी में सूखा और शार्टेज हो गया है।
केवल 6 जिलों से उठा पूरा धान
इस पूरे मामले में खास बात ये है कि, राज्य के 33 जिलों में से केवल 6 जिलों में मार्कफेड के रिकॉर्ड के मुताबिक पूरा धान उठा लिया गया है। अन्य सभी जिलों में धान का उठाव बाकी है, लेकिन ये धान केवल आंकड़ों में ही है। जिन जिलों की सोसायटियों से पूरा धान उठा लिया गया है उनमें बस्तर, दंतेवाड़ा, जांजगीर चांपा, धमतरी, कोरिया और सरगुजा जिले शामिल हैं।
ये है मामला
दरअसल, राज्य सरकार ने पिछले खरीफ सीजन 2024-25 में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर 149 लाख मीट्रिक टन धान की खरीदी की थी। समर्थन मूल्य और प्रोत्साहन राशि समेत इस धान की कीमत 31 सौ रुपए प्रति क्विंटल अदा करनी पड़ी। सरकार ने सेंटल पूल और राज्य कोटे के लिए आवश्यक धान दे दिया। लेकिन इसके बाद भी सोसायटियों के खरीद केंद्रों यानि उपार्जन केंद्रों में शेष धान सरकारी रिकार्ड में 74 हजार 268 मीट्रिक टन से अधिक नजर आ रहा है।
कहां गया धान, क्या हो गया है गायब
सरकारी रिकॉर्ड में आंकड़ों के रूप में मौजूद धान की मात्रा दर असल उपार्जन केंद्रों में है ही नहीं। सवाल ये उठा कि ये धान कहां गया, क्या ये धान गायब हो चुका है। इस सवाल के जवाब में ये बात सामने आ रही है कि सोसायटियों में यह धान का शार्टेज है। कहा जा रहा है कि इसमें से ज्यादातर धान गरमी में सूख गया और उसका वजन कम हो गया या बारिश में भीगने से सड़कर नष्ट हो गया है।