आज़ादी के 78 साल बाद इस बार बीजापुर ने सच में स्वतंत्रता का असली स्वाद चखा। वो गांव, जो सालों तक नक्सली आतंक के साए में सांस लेते थे, अब तिरंगे की शान में रंग चुके हैं। गलियों में बच्चों के हाथों में झंडे, सड़कों पर तिरंगी झालरें और राष्ट्रगान की गूंज — यह नज़ारा बीजापुर के इतिहास का सुनहरा पन्ना बन गया।
डर की जगह अब विकास की पहचान
जहां कभी नक्सली बैनर और धमकी भरे पोस्टर खौफ़ पैदा करते थे, आज वहीं बिजली की रोशनी और पक्की सड़कों ने उम्मीद जगाई है। शासन की योजनाओं ने गांव-गांव सड़क, बिजली, पानी, स्कूल और अस्पताल पहुंचाए हैं। महिलाएं निडर होकर हाट-बाज़ार जा रही हैं और हर घर में शाम होते ही बल्ब जगमगा रहे हैं।
️ सुरक्षा और विकास की डबल जीत
लगातार चल रहे सुरक्षा अभियानों का असर साफ है —
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466 नक्सली आत्मसमर्पण
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820 गिरफ्तारी
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20 नए सुरक्षा कैंप, जिनमें से 12 इसी साल शुरू हुए: कोण्डापल्ली, जीडपल्ली-1 व 2, वाटेवागु, कोरागुट्टा, गोरना, पीडिया, पुजारीकांकेर, गंजेपर्ती, भीमाराम, तोड़का/कोरचोली, गुटुमपल्ली।
ये गांव अब डर नहीं, बल्कि नई उम्मीदों का चेहरा बन गए हैं।
कनेक्टिविटी और रोशनी का दौर
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नेलसनार-गांगलूर और तार्रेम-पामेड़-उसूर मार्ग से बीजापुर का संपर्क आसान हुआ।
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7 नए मोबाइल टावर लगे — गांव पहली बार नेटवर्क से जुड़े।
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कोण्डापल्ली, गंजेपर्ती, गोरना, कोरचोली में पहली बार बिजली पहुंची।
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जीडपल्ली-1, गुल्लागुडेम, गोरना, इशुलनार, तोड़का, कोरचोली, नेण्ड्रा, इतावर, सावनार, करका, एडसमेटा, भटटीगुड़ा में स्कूलों की घंटी बजी।
आज जहां कभी गोलियों की आवाज़ गूंजती थी, वहां अब ‘वंदे मातरम’ और ‘भारत माता की जय’ की गूंज है। बीजापुर ने साबित कर दिया है कि जब सुरक्षा और विकास साथ चलते हैं, तो आतंक की सबसे पुरानी जड़ भी उखड़ जाती है।