एक्सपर्ट गाइड – डॉ. अमिता श्रृंगी, साइकोलॉजिस्ट, फैमिली एंड चाइल्ड काउंसलर
नई दिल्ली की एक मां ने लिखा –
“मेरा बेटा 15 साल का है, नौवीं क्लास में पढ़ता है। कुछ महीनों से वह चिड़चिड़ा और चुप-चुप रहने लगा। हाल ही में उसके बैग से सिगरेट का पैकेट मिला। पहले उसने माना नहीं, लेकिन बाद में कहा कि दोस्तों के साथ शुरू किया और अब इसके बिना बेचैनी होती है। मैं समझ नहीं पा रही कि उसे डांटूं, सख्ती करूं या प्यार से समझाऊं।”
एक्सपर्ट की राय
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आपकी चिंता बिल्कुल जायज़ है। इस उम्र में बच्चे अपनी पहचान खोजते हैं और अक्सर दोस्तों की संगत या ‘कूल दिखने’ की चाह में गलत फैसले ले लेते हैं।
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यह ज़रूरी है कि आप उसे डर या शर्म से नहीं, बल्कि समझदारी और धैर्य से इस आदत से बाहर निकालें।
पेरेंट्स को क्या नहीं करना चाहिए
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गुस्से में आकर डांटना, शर्मिंदा करना या मारना-पीटना।
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बच्चे को “गलत” कहकर जज करना।
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उसकी बात सुने बिना तुरंत सज़ा देना।
ऐसा करने से बच्चा और ज्यादा छिपने लगेगा और आपसे दूरी बना लेगा।
✅ क्या करें
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बच्चे का सेफ जोन बनें – ताकि वह खुलकर बात कर सके।
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नशे के नुकसान समझाएं – वीडियो, डॉक्यूमेंट्री या असली कहानियों से।
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पॉकेट मनी पर ध्यान दें – खर्चों की निगरानी रखें, पैसों की अहमियत सिखाएं।
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छोटे-छोटे गोल बनाएं – जैसे धीरे-धीरे सिगरेट कम करना।
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हर प्रगति की तारीफ करें – ताकि उसका आत्मविश्वास बढ़े।
⚠️ क्यों ज़रूरी है जल्दी रोकना
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15 साल की उम्र में शरीर और दिमाग तेज़ी से बढ़ते हैं।
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सिगरेट फेफड़ों की ग्रोथ रोक देती है, एनर्जी और स्पोर्ट्स परफॉर्मेंस पर असर डालती है।
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निकोटिन दिमाग में डोपामिन को हाइजैक कर देता है, जिससे गुस्सा, बेचैनी और मूड स्विंग्स बढ़ते हैं।
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लंबे समय तक यह आदत डिप्रेशन और एंग्ज़ाइटी तक ले जा सकती है।
याद रखें
नशा छुड़ाना एक दिन का काम नहीं है। लेकिन अगर बच्चा महसूस करे कि उसके माता-पिता उसके साथ हैं, उसके खिलाफ नहीं, तो वह खुद भी हिम्मत जुटा लेता है।