25 अगस्त 2025 को भारतीय क्रिकेट का एक सुनहरा अध्याय खत्म हुआ। चेतेश्वर पुजारा – वो नाम जिसने भारतीय टेस्ट क्रिकेट में धैर्य, क्लासिक तकनीक और अडिग मानसिकता का मतलब बदल दिया। आज उन्होंने इंटरनेशनल क्रिकेट को अलविदा कह दिया।
वीडियो गेम का शौकीन एक बच्चा मां की पूजा की शर्त से ‘पुजारी’ बना और फिर देश का सबसे भरोसेमंद टेस्ट बल्लेबाज ‘पुजारा’। यह कहानी सिर्फ एक क्रिकेटर की नहीं, बल्कि संघर्ष, अनुशासन और अडिग विश्वास की है।
वीडियो गेम से बैट तक का सफर
10 साल की उम्र में पुजारा को वीडियो गेम की आदत लग गई थी। मां ने कहा,
“अगर खेलना है तो पहले रोज़ 10 मिनट पूजा करनी होगी।”
यही 10 मिनट का नियम उनके जीवन की पहली प्रैक्टिस बन गया। जल्द ही कंट्रोलर की जगह बल्ला उनके हाथ में था। राजकोट के घर के बरामदे से शुरू हुआ बैटिंग का सफर मेलबर्न और लॉर्ड्स के मैदानों तक पहुंचा।
पिता कोच, चाचा रणजी खिलाड़ी
पुजारा का टैलेंट उनके पिता अरविंद पुजारा ने पहचाना। उन्होंने बेटे को बचपन से क्रिकेट का गुर सिखाया।
⚡ पिता की कोचिंग सख्त थी – छोटी सी गलती पर भी डांट।
⚡ चाचा बिपिन पुजारा सौराष्ट्र के लिए रणजी खेल चुके थे।
क्रिकेट उनके खून में था, लेकिन उसका फल पाना आसान नहीं था।
17 साल में मां का साया छूटा
2005 का साल। अंडर-19 मैच खेलने के बाद जब पुजारा घर लौटे, तो उन्हें पता चला कि मां का निधन हो चुका है।
⚡ उसी साल रणजी डेब्यू हुआ।
⚡ मां का सपना था कि बेटा भारत के लिए खेले, और यह सपना पुजारा की प्रेरणा बन गया।
IPL में चोट, शाहरुख बने मसीहा
2009 में कोलकाता नाइट राइडर्स के लिए खेलते हुए हैमस्ट्रिंग बोन टूट गई। परिवार उन्हें भारत लाना चाहता था, लेकिन टीम के मालिक शाहरुख खान ने कहा:
“सर्जरी यहीं होगी, रग्बी प्लेयर्स को ठीक करने वाले डॉक्टर इसे बखूबी करेंगे।”
उन्होंने पासपोर्ट तक बनवाकर पुजारा के पिता को साउथ अफ्रीका बुलाया। यह घटना पुजारा के करियर का टर्निंग पॉइंट साबित हुई।
धोनी का भरोसा, डेब्यू में जीत
2010 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ बेंगलुरु टेस्ट में VVS लक्ष्मण चोटिल थे।
⚡ धोनी ने बैटिंग ऑर्डर बदलकर पुजारा को नंबर-3 पर भेजा।
⚡ पहली पारी में सिर्फ 4 रन बनाने के बावजूद दूसरी पारी में 72 रन की क्लासिक पारी खेलकर भारत को जीत दिलाई।
यहीं से पुजारा ने साबित किया कि भारत को ‘द्रविड़ 2.0’ मिल चुका है।
पुजारा की 5 सबसे यादगार पारियां
साल | मैदान | खासियत |
---|---|---|
2012, अहमदाबाद | इंग्लैंड के खिलाफ 206* रन, 8 घंटे क्रीज पर जमे। | |
2015, कोलंबो | खराब फॉर्म के बाद कमबैक, 145* रन बनाकर भारत को जीत दिलाई। | |
2018, साउथैम्प्टन | 132* रन बनाकर भारत को सम्मानजनक स्कोर तक पहुंचाया। | |
2018, एडिलेड | ऑस्ट्रेलिया में 123 और 71 रन बनाकर सीरीज जीत की नींव रखी। | |
2021, सिडनी- ब्रिस्बेन | 11 चोटें खाकर भी टिके रहे, पंत को आत्मविश्वास दिया और भारत को ऐतिहासिक सीरीज जिताई। |
️ ‘दीवार’ की दूसरी परिभाषा
राहुल द्रविड़ को लोग “दीवार” कहते थे, लेकिन पुजारा ने इस उपनाम को एक नए अंदाज़ में जीया।
⚡ 99 टेस्ट में धैर्य, तकनीक और संघर्ष की मिसाल कायम की।
⚡ उन्होंने दिखाया कि रन बनाने का सबसे बड़ा हथियार धैर्य है।
अलविदा का वक्त
आज जब पुजारा ने इंटरनेशनल क्रिकेट को अलविदा कहा, तो उनके करियर की सबसे बड़ी पहचान यही रही –
“वो खिलाड़ी जो क्रीज पर खड़े रहकर टीम को उम्मीद देता था।”
सार: चेतेश्वर पुजारा की कहानी सिर्फ क्रिकेट नहीं, बल्कि संघर्ष और अनुशासन की मास्टरक्लास है। एक वीडियो गेम प्रेमी बच्चा मां के संस्कार, पिता की कोचिंग और अपनी मेहनत से भारत की टेस्ट टीम का सबसे भरोसेमंद योद्धा बन गया।