सलवा जुडूम पर फिर छिड़ी बहस: सुप्रीम कोर्ट के 2011 के फैसले को लेकर शाह-सुदर्शन रेड्डी आमने-सामने

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2011 का सुप्रीम कोर्ट का आदेश, जिसमें बस्तर में चल रहे सलवा जुडूम अभियान को असंवैधानिक ठहराया गया था, आज 14 साल बाद फिर चर्चा में है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का कहना है कि अगर यह फैसला न होता तो नक्सलवाद 2020 तक खत्म हो चुका होता। वहीं, फैसले के लेखक पूर्व जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी ने कहा है कि यह उनका नहीं, सुप्रीम कोर्ट का फैसला था।


सलवा जुडूम क्या था?

  • शब्द का मतलब: ‘सलवा जुडूम’ गोंडी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है शांति अभियान

  • शुरुआत: 2005 में छत्तीसगढ़ के बस्तर, दंतेवाड़ा, बीजापुर और सुकमा जिलों में नक्सलियों से लड़ने के लिए शुरू हुआ।

  • नेतृत्व: कांग्रेस नेता महेंद्र कर्मा इसके सबसे बड़े चेहरा बने।

  • रणनीति: आदिवासी युवाओं को SPO (स्पेशल पुलिस ऑफिसर) बनाकर हथियार दिए गए।

  • नतीजा: हजारों ग्रामीण कैंपों में रहने को मजबूर हुए, हिंसा बढ़ी, 644 गांव खाली हुए।


⚖️ सुप्रीम कोर्ट का फैसला (5 जुलाई 2011)

  • सलवा जुडूम को गैरकानूनी और असंवैधानिक घोषित किया।

  • सभी SPO से हथियार वापस लेने और नौकरी से हटाने का आदेश।

  • सरकार को निर्देश दिया कि अभियान की जांच हो और युवाओं को वैकल्पिक रोजगार दिया जाए।

  • कोर्ट ने कहा कि आदिवासी युवाओं को बंदूक थमाना संविधान के खिलाफ है।


शाह का बयान क्यों चर्चा में?

  • अमित शाह ने कहा, “रेड्डी का फैसला नक्सलवाद को बढ़ावा देने वाला था। अगर यह रोक नहीं लगती तो नक्सली आंदोलन 2020 तक खत्म हो जाता।”

  • उन्होंने विपक्ष पर वामपंथी विचारधारा को बढ़ावा देने का आरोप लगाया।

  • शाह के इस बयान के बाद सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर राजनीतिक बहस तेज हो गई।


️ रेड्डी और अन्य जजों की प्रतिक्रिया

  • जस्टिस रेड्डी बोले: “फैसला मेरा नहीं, सुप्रीम कोर्ट का है। शाह ने पूरा फैसला पढ़ा नहीं।”

  • 56 पूर्व जजों ने कहा: “जजों को राजनीति में घसीटना न्यायपालिका की स्वतंत्रता को नुकसान पहुंचाएगा।”

  • वहीं रिटायर्ड सीजेआई रंजन गोगोई समेत कई जजों ने इस बहस में जजों की दखलंदाजी की आलोचना की।


सलवा जुडूम का असर और आगे की कहानी

  • सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद SPO व्यवस्था बंद हुई, लेकिन DRG और बस्तर फाइटर्स जैसे नए सुरक्षा बल बनाए गए।

  • आज भी बस्तर के कई गांवों में सुरक्षा कैंप हैं, आलोचकों के मुताबिक, “सलवा जुडूम नाम से खत्म हुआ, पर मॉडल जारी है।”

  • महेंद्र कर्मा 2013 के दरभा घाटी नक्सली हमले में मारे गए, इसके बाद अभियान और विवादित हो गया।


राजनीतिक पिच

उपराष्ट्रपति चुनाव के उम्मीदवार बनने के बाद बी. सुदर्शन रेड्डी पर शाह के बयान ने पुराने घाव ताजा कर दिए हैं।

  • भाजपा का आरोप: फैसला नक्सलियों को बचाने वाला।

  • कांग्रेस और एक्टिविस्ट्स का जवाब: यह मानवाधिकारों और संविधान की रक्षा के लिए था।

  • छत्तीसगढ़ के कुछ नेता आज भी कहते हैं कि नक्सलवाद के खिलाफ सलवा जुडूम 2 जैसे आंदोलन की जरूरत है।


सार:
सलवा जुडूम सिर्फ एक आंदोलन नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ की राजनीति, नक्सलवाद और मानवाधिकारों की लड़ाई का प्रतीक बन गया। 14 साल बाद भी यह मामला कानूनी बहस से राजनीतिक बहस में बदल चुका है।

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