HC के जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की बेंच ने इस दौरान अहम फैसला देते हुए कहा कि ज्ञानवापी का मामला 1991 के प्लेसेज ऑफ वर्शिप ऐक्ट के तहत नहीं आता। बेंच ने कहा कि कोई परिसर या तो मस्जिद ही होगा या मंदिर।
वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद पर दावे को लेकर निचली अदालत में चल रही सुनवाई के खिलाफ दायर मुस्लिम पक्ष की याचिकाओं को हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया है। सुन्नी वक्फ बोर्ड और अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी ने उस केस को खारिज करने की अपील की थी, जिसमें हिंदू पक्ष ने दावा किया है कि ज्ञानवापी मस्जिद मंदिर पर बनी है और उसमें पूजा का अधिकार हिंदुओं का है। इसके अलावा उसका स्वरूप अब मंदिर में तब्दील होना चाहिए। इस मामले में निचली अदालत में सुनवाई चल रही है, जिस पर रोक लगाने से हाई कोर्ट ने इनकार कर दिया है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की बेंच ने इस दौरान अहम फैसला देते हुए कहा कि ज्ञानवापी का मामला 1991 के प्लेसेज ऑफ वर्शिप ऐक्ट के तहत नहीं आता। इस कानून में कहा गया था कि 1947 में जिन धार्मिक स्थलों का जो स्वरूप था, वही माना जाएगा और उसमें कोई तब्दीली नहीं की जा सकती। ऐसे में ज्ञानवापी पर केस चलने का रास्ता खुल गया है। हाई कोर्ट ने निचली अदालत को यह भी आदेश दिया है कि 6 महीने के अंदर इस मामले की सुनवाई की जाए क्योंकि यह देश के दो बड़े समुदायों के बीच तनाव पैदा कर सकता है।
यही नहीं अदालत ने एक अहम टिप्पणी और की है कि किसी धार्मिक स्थल का एक ही कैरेक्टर हो सकता है। वह या तो मंदिर ही हो सकता है या फिर उसका स्वरूप मस्जिद का ही हो सकता है। दरअसल हिंदू पक्ष का दावा है कि मंदिर को तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण किया गया था और उसकी दीवारों पर आज भी हिंदू प्रतीक चिह्न मिलते हैं। इस मामले में ASI की ओर से एक सर्वे भी हो चुका है, जिसकी रिपोर्ट सोमवार को अदालत में पेश की गई थी। हाई कोर्ट ने यह भी कहा है कि यदि इस मामले में किसी भी तरह के सर्वे की जरूरत होती है तो वह भी कराया जा सकता है।