शिक्षा मंत्रालय की UDISE (Unified District Information System for Education) रिपोर्ट 2024-25 के आंकड़े भारत के स्कूलों में शिक्षक और छात्र अनुपात की असल तस्वीर सामने लाते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, इस शैक्षणिक सत्र में पहली बार देश में शिक्षकों की संख्या 1 करोड़ के पार पहुंच गई है। 2023-24 में यह संख्या 98.8 लाख थी, जो अब बढ़कर 1.01 करोड़ हो गई है। इनमें से 51% शिक्षक सरकारी स्कूलों में पढ़ा रहे हैं।
हालांकि बढ़ती संख्या के बावजूद, 1,04,125 स्कूल ऐसे हैं जहां केवल एक ही शिक्षक है, जबकि देश के 7,993 स्कूलों में एक भी छात्र नामांकित नहीं है।
शिक्षकों की संख्या में ऐतिहासिक वृद्धि
रिपोर्ट के अनुसार, भारत में पहली बार किसी एकेडमिक सेशन में शिक्षकों की संख्या 1 करोड़ से अधिक हो गई है।
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कुल शिक्षक: 1,01,22,420
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सरकारी स्कूलों के शिक्षक: 51.47 लाख (51%)
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पिछले साल से वृद्धि: करीब 2.4 लाख
महिला शिक्षकों की संख्या में 8% की छलांग
2014-15 में महिला शिक्षकों की संख्या 40.16 लाख थी, जो 2024-25 में बढ़कर 54.81 लाख हो गई है। इसके विपरीत पुरुष शिक्षकों की संख्या सिर्फ 1% बढ़कर 46.41 लाख हुई है।
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पिछले 10 वर्षों में हुई कुल 51.36 लाख भर्तियों में 61% महिला शिक्षक हैं।
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स्कूलों में अब प्रति शिक्षक औसतन 21 छात्र हैं, जबकि 10 साल पहले यह आंकड़ा 31 छात्रों का था।
ड्रॉपआउट रेट में गिरावट
देशभर में छात्रों का स्कूल छोड़ने का रुझान कम हुआ है:
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सेकेंडरी स्तर: 10.9% से घटकर 8.2%
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मिडिल स्तर: 5.2% से घटकर 3.5%
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प्राइमरी स्तर: 3.7% से घटकर 2.3%
छात्र-शिक्षक अनुपात: झारखंड में एक शिक्षक पर 47 छात्र
झारखंड के हायर सेकेंडरी स्कूलों में एक शिक्षक औसतन 47 बच्चों को पढ़ाता है, जबकि सिक्किम में यह संख्या सिर्फ 7 छात्र प्रति शिक्षक है।
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चंडीगढ़ के स्कूलों में प्रति स्कूल औसतन 1222 छात्र हैं, जबकि लद्दाख में यह आंकड़ा केवल 59 छात्र प्रति स्कूल है।
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पश्चिम बंगाल में देश के 80% प्राइमरी स्कूल हैं, जबकि चंडीगढ़ में सबसे कम (3%)।
ग्रॉस एनरोलमेंट रेश्यो (GER): बिहार सबसे पीछे
रिपोर्ट के मुताबिक, स्कूल एनरोलमेंट के मामले में बिहार सभी स्तरों पर सबसे पीछे है:
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प्राइमरी: 69%
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सेकेंडरी: 51%
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हायर सेकेंडरी: 38%
वहीं, चंडीगढ़ इस मामले में सबसे आगे है, जहां अपर प्राइमरी का GER 120%, मिडिल का 110% और हायर सेकेंडरी का 107% है।
निष्कर्ष
रिपोर्ट बताती है कि देश में शिक्षकों की संख्या बढ़ी है, ड्रॉपआउट रेट घटा है, लेकिन शिक्षकों का असमान वितरण और खाली स्कूलों का मुद्दा अब भी चुनौती बना हुआ है। यह तस्वीर बताती है कि भारत को न केवल शिक्षकों की भर्ती, बल्कि उनके बेहतर वितरण और प्रशिक्षण पर भी काम करने की जरूरत है।