भारतीय रुपया शुक्रवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अपने इतिहास के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया। अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए 50% तक टैरिफ का सीधा असर अब मुद्रा बाजार में दिखने लगा है। कारोबार के दौरान रुपया 88.29 प्रति डॉलर तक फिसल गया।
रिकॉर्ड लो पर रुपया
-
शुक्रवार को रुपया 87.69 पर खुला, लेकिन तेजी से गिरकर 88.29 के स्तर पर पहुंच गया।
-
यह पहली बार है जब रुपया डॉलर के मुकाबले 88 के नीचे चला गया।
-
फरवरी 2025 में इसका पिछला रिकॉर्ड लो 87.95 था।
-
दोपहर तक RBI की डॉलर बिक्री से थोड़ी राहत मिली और रुपया 88.12 पर ट्रेड हुआ।
अमेरिकी टैरिफ से संकट गहराया
अमेरिका ने रूस से सस्ता तेल खरीदने पर भारत पर अतिरिक्त 25% शुल्क लगाया है, जिससे भारत के निर्यात पर कुल 50% टैरिफ लग गया।
-
इसका असर भारतीय निर्यात, व्यापार घाटे और आर्थिक वृद्धि पर गहराने की संभावना है।
-
विशेषज्ञों का कहना है कि यह स्थिति विदेशी मुद्रा भंडार और निवेशकों के विश्वास को भी प्रभावित कर सकती है।
एशिया की सबसे कमजोर करेंसी बना रुपया
2025 में अब तक रुपया 3% तक कमजोर हो चुका है।
-
इस गिरावट के साथ रुपया एशिया की सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली मुद्रा बन गया।
-
चीनी युआन के मुकाबले भी रुपया रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया है।
अगला लक्ष्य 89 रुपये प्रति डॉलर
फॉरेक्स विशेषज्ञों का कहना है कि:
-
87.60 का स्तर टूटने के बाद आयातकों ने बड़े पैमाने पर डॉलर खरीदना शुरू कर दिया।
-
RBI के तत्काल दखल की उम्मीद के बावजूद हस्तक्षेप न होने से रुपया तेजी से 88 पार कर गया।
-
अब अगला मनोवैज्ञानिक स्तर 89 रुपये प्रति डॉलर माना जा रहा है।
भारतीय अर्थव्यवस्था पर खतरे के संकेत
-
अगर अमेरिकी टैरिफ लंबे समय तक लागू रहते हैं, तो GDP ग्रोथ में 60-80 बेसिस पॉइंट्स की गिरावट संभव है।
-
RBI ने 2026 तक ग्रोथ अनुमान 6.5% रखा है, लेकिन रुपये की कमजोरी इसे प्रभावित कर सकती है।
-
निर्यात-निर्भर उद्योग जैसे टेक्सटाइल और ज्वेलरी सेक्टर पर सबसे ज्यादा असर होगा।
रोजगार और निवेश पर असर
-
अमेरिका को भारत का निर्यात GDP का 2.2% है, जो अब दबाव में है।
-
विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक अब तक भारतीय शेयर और बॉन्ड से 9.7 अरब डॉलर निकाल चुके हैं।
-
निर्यात घटने से भारत का व्यापार घाटा और बढ़ने की संभावना है।
निष्कर्ष
रुपये की गिरावट और अमेरिकी टैरिफ से भारत की अर्थव्यवस्था, निवेश माहौल और रोजगार बाजार पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है। अगले कुछ महीनों में RBI और सरकार की रणनीति पर ही रुपये की स्थिरता निर्भर करेगी।