छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले का हनोदा मिडिल स्कूल।
कभी यहां बच्चों की गिनती उंगलियों पर होती थी, आज कक्षा में तिल रखने की जगह नहीं बचती।
कारण?
डॉ. प्रज्ञा सिंह – वो टीचर, जिन्होंने गणित को खेल-खेल में इतना आसान बना दिया कि अब बच्चे गणित से डरते नहीं, बल्कि उससे दोस्ती कर चुके हैं।
दिव्यांग बच्ची से आया आइडिया
एक दिन प्रज्ञा मैम कक्षा में त्रिभुज (Triangle) का पाठ पढ़ा रही थीं।
वो समझा रही थीं कि त्रिभुज के तीनों कोणों का योग अर्धवृत्त के बराबर होता है।
कक्षा में बैठी तीन मानसिक दिव्यांग बच्चियों में से एक अचानक उनके पास आई और बोली –
“देख ना मैडम, मोरो चंदा बन ग्य!” (मेरा चांद भी बन गया)।
उस पल प्रज्ञा मैम को अहसास हुआ कि यदि पढ़ाई को एक्टिविटी और खेल से जोड़ा जाए, तो बच्चों को इसे समझना बेहद आसान होगा।
यहीं से शुरू हुई उनकी Teaching Learning Material (TLM) बनाने की अनोखी यात्रा।
खुद के खर्च पर बनाया मैथ्स पार्क
सरकार से कोई फंडिंग नहीं मिली।
प्रज्ञा ने हार नहीं मानी – अपने पैसे से मजदूर बुलाए, पेंट करवाया, सामान मंगवाया और स्कूल में मैथ्स पार्क बना दिया।
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क्लासरूम में लूडो, सांप-सीढ़ी, शतरंज जैसी खेलों की डिजाइन बनाई।
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बच्चों को गणित के सिद्धांत समझाने के लिए घातांकों का शतरंज, अभाज्य संख्याओं की छलनी, पासा और बैलेंसिंग गेम्स तैयार किए।
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कुर्सी दौड़, स्टापू जैसे खेलों से गणित के सवाल हल करवाए।
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PT क्लास को भी गणितीय गतिविधियों से जोड़ा।
नतीजा – गणित का डर खत्म हो गया और बच्चों का रिजल्ट 100% तक पहुंच गया।
रिजल्ट ने दिलाया सम्मान
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स्कूल के बच्चों ने ग्रामीण प्रतिभा खोज परीक्षा में सिलेक्शन हासिल किया।
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8वीं के एग्जाम में कई बच्चों ने 100% मार्क्स पाए।
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पेरेंट्स और गांववालों ने प्रज्ञा मैम का सम्मान किया।
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अब स्कूल में बच्चों की संख्या लगातार बढ़ रही है।
शादी के बाद 10 साल का ब्रेक, फिर पढ़ाई में वापसी
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प्रज्ञा का सपना हमेशा से टीचर बनने का था।
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1997 में शादी हुई, घर-परिवार की जिम्मेदारियों में पढ़ाई 10 साल तक रुक गई।
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2008 में B.Ed में दाखिला लिया और व्यापम के जरिए शिक्षक भर्ती परीक्षा पास कर ली।
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पहले प्राइमरी स्कूल, फिर मिडिल स्कूल में पढ़ाने लगीं।
चौथे प्रयास में मिला नेशनल टीचर्स अवॉर्ड
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2018 में शिक्षा विभाग के सचिव ने उनके काम को देखा और उन्हें नेशनल टीचर्स अवॉर्ड के लिए नॉमिनेट किया।
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2019, 2023 और 2024 में आवेदन किया, लेकिन चयन नहीं हुआ।
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चौथे प्रयास में आखिरकार 2025 में चयनित हो गईं।
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आज, 3 सितंबर को डॉ. प्रज्ञा सिंह दिल्ली में अवॉर्ड लेने पहुंचेंगी।
PhD होने के बावजूद मिडिल स्कूल में क्यों पढ़ाती हैं?
इंटरव्यू में उनसे पूछा गया –
“PhD होने के बावजूद आप मिडिल स्कूल में क्यों पढ़ाती हैं?”
उन्होंने जवाब दिया –
“मैं Geology में PhD हूं। इसे बच्चों तक सरल भाषा में पहुंचाने के लिए मैं गणित से जोड़ती हूं।”
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उन्होंने स्कूल में रेनवॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगवाया।
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खुद गणितीय कैलकुलेशन कर बच्चों को व्यावहारिक ज्ञान दिया।
भविष्य की योजना
डॉ. प्रज्ञा कहती हैं –
“नेशनल अवॉर्ड सिर्फ एक पड़ाव है। अब स्कूल के इंफ्रास्ट्रक्चर को और मजबूत करना है। मैथ्स पार्क के ऊपर शेड बनवाना है और बच्चों के लिए एक मंच भी तैयार करना है।”
डॉ. प्रज्ञा की कहानी ये साबित करती है कि अगर एक टीचर चाह ले, तो पूरा सिस्टम बदल सकती है।
गांव का साधारण स्कूल आज बच्चों की पढ़ाई का मॉडल बन गया है, और यह सब संभव हुआ सिर्फ एक शिक्षक के जुनून और समर्पण से।