आवाज़ की जादूगरनी आशा भोसले, जिन्होंने 12 हज़ार से भी ज्यादा गाने गाए, आज 92 साल की उम्र में भी उतनी ही खनकदार आवाज़ से लोगों के दिलों पर राज करती हैं। लेकिन उनकी ज़िंदगी सिर्फ सुरों और शोहरत से भरी नहीं रही, इसमें दर्द, संघर्ष और हिम्मत की कहानियां भी हैं।
बचपन से जिम्मेदारियां
9 साल की उम्र में ही पिता और थिएटर आर्टिस्ट दीनानाथ मंगेशकर का निधन हो गया। परिवार संभालने की जिम्मेदारी बड़ी बहन लता मंगेशकर और आशा जी पर आ गई। तभी से उन्होंने गाना शुरू कर दिया।
16 की उम्र में भागकर शादी
सिर्फ 16 साल की उम्र में आशा ने लता दीदी के सेक्रेटरी गणपतराव भोसले से भागकर शादी कर ली। यह रिश्ता परिवार के खिलाफ था, इसलिए लता जी ने उनसे नाता तोड़ लिया। शादी के बाद हालात और मुश्किल हो गए। आशा जी घरेलू हिंसा और मानसिक यातना का शिकार हुईं। कई बार गणपतराव ने उन पर हाथ उठाया, यहां तक कि प्रेग्नेंसी के दौरान भी।
अस्पताल में टूट चुकी थीं, खुदकुशी की कोशिश
तीसरे बच्चे के वक्त ससुराल से निकाले जाने पर आशा जी टूट गईं। उन्होंने खुद को खत्म करने के लिए नींद की गोलियां भी खा ली थीं। लेकिन बच्चे के लिए उनका प्यार इतना गहरा था कि ज़िंदगी ने उन्हें वापस लौटा दिया।
संगीत में ठुकराई गई आवाज़, फिर वही बनी पहचान
करियर की शुरुआत में उन्हें “खराब आवाज़” कहकर स्टूडियो से निकाल दिया गया था। लेकिन वही आवाज़ बाद में हर जॉनर की पहचान बनी। रोमांटिक, ग़ज़ल, कैबरे, क्लासिकल—हर तरह के गाने आशा भोसले की खासियत बन गए।
आर.डी. बर्मन से मुलाकात और मोहब्बत
1966 में फिल्म तीसरी मंजिल के दौरान संगीतकार आर.डी. बर्मन से मुलाकात हुई। दोस्ती धीरे-धीरे प्यार में बदल गई। परिवार की रज़ामंदी के खिलाफ 1980 में दोनों ने शादी कर ली। यह रिश्ता सिर्फ शादी का नहीं, बल्कि संगीत और रचनात्मकता का भी अनोखा संगम था।
खानपान की दीवानी और सफल व्यवसायी
सुरों की दुनिया के साथ-साथ आशा जी को खाना बनाने का भी जुनून रहा। उनके हाथ की बिरयानी, कढ़ाई गोश्त और शामी कबाब के मुरीद बॉलीवुड सितारे भी रहे। इसी शौक ने उन्हें सफल रेस्टोरेंट व्यवसायी बना दिया।
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पहला रेस्टोरेंट “आशाज” दुबई में खोला गया।
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अब उनके रेस्टोरेंट कुवैत, अबुधाबी, दोहा और बहरीन तक फैले हैं।
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शेफ्स को ट्रेनिंग खुद आशा जी देती हैं।
आज भी दिल से जवान
90वें जन्मदिन पर दुबई में स्टेज पर गाना गाने वाली आशा भोसले कहती हैं—
“उम्र तो सिर्फ एक आंकड़ा है। दिल जवान हो, तो ज़िंदगी हमेशा खूबसूरत लगती है।”
आज भी वह अपने बच्चों के लिए खुद खाना बनाती हैं और सुरों का जादू बिखेरती रहती हैं।
संक्षेप में:
आशा भोसले की ज़िंदगी हमें यह सिखाती है कि दर्द को ताकत बनाया जा सकता है। घरेलू हिंसा और निराशा से लेकर सफलता, प्यार और सम्मान तक—उन्होंने हर पड़ाव का सामना हिम्मत से किया और आज भी उनकी आवाज़ सुरों की दुनिया को रौशन कर रही है।