ऑनलाइन गेमिंग को लेकर बना नया प्रमोशन एंड रेगुलेशन ऑफ ऑनलाइन गेमिंग एक्ट 2025 अब सुप्रीम कोर्ट की चौखट पर है। सोमवार (8 सितंबर) को इस मामले पर सुनवाई होगी। केंद्र सरकार ने दलील दी है कि देशभर के अलग-अलग हाई कोर्ट में इस कानून को चुनौती दी गई है। अगर सभी अदालतें अलग-अलग निर्णय देती हैं, तो इससे कानूनी स्थिति उलझ जाएगी। इसलिए सभी याचिकाओं की सुनवाई एक साथ हो।
इस कानून के तहत रियल मनी गेम्स यानी दांव लगाकर खेले जाने वाले ऑनलाइन गेम्स पर पूरी तरह रोक है। इसके खिलाफ कर्नाटक, दिल्ली और मध्यप्रदेश की हाई कोर्ट में याचिकाएं दाखिल की गई हैं। अब सरकार चाहती है कि इन सभी को सुप्रीम कोर्ट या किसी एक हाई कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया जाए।
किन कंपनियों ने दी चुनौती?
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मध्यप्रदेश हाई कोर्ट: बूम11 फैंटेसी स्पोर्ट्स चलाने वाली कंपनी ने याचिका दी।
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कर्नाटक हाई कोर्ट: A23 रम्मी की पैरेंट कंपनी हेड डिजिटल वर्क्स ने केस दायर किया।
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दिल्ली हाई कोर्ट: बघीरा कैरम ने याचिका लगाई।
कंपनियों का तर्क
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह कानून अचानक लाखों लोगों की नौकरी छीन लेगा और पूरी इंडस्ट्री को रातोंरात बंद कर देगा। A23 ने कहा–
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यह कानून व्यापार करने के मौलिक अधिकार का हनन है।
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स्किल बेस्ड गेम्स (रमी, पोकर) को भी बैन कर दिया गया है।
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लोग मजबूरी में अवैध ऑफशोर प्लेटफॉर्म्स पर चले जाएंगे।
कानून के मुख्य प्रावधान
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रियल मनी गेम्स पर पूरी रोक – कोई भी कंपनी पैसा लगाकर खेले जाने वाले गेम्स नहीं चला सकेगी।
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कड़ी सजा और जुर्माना – कानून तोड़ने पर 3 साल जेल और 1 करोड़ तक का जुर्माना।
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रेगुलेटरी अथॉरिटी – खास संस्था तय करेगी कि कौन सा गेम मनी-बेस्ड है।
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ई-स्पोर्ट्स को बढ़ावा – पबजी, फ्री फायर जैसे नॉन-मनी गेम्स को प्रोत्साहन मिलेगा।
सरकार का पक्ष
केंद्र का कहना है कि मनी-बेस्ड गेमिंग से लोग मानसिक और आर्थिक संकट में फंस रहे हैं। कई परिवार तबाह हो गए और आत्महत्याओं तक की नौबत आई। साथ ही मनी लॉन्ड्रिंग और राष्ट्रीय सुरक्षा पर भी खतरा है।
आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव के मुताबिक –
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लगभग 45 करोड़ लोग ऑनलाइन मनी गेमिंग से प्रभावित हैं।
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20 हजार करोड़ रुपए का नुकसान मिडिल क्लास परिवारों को हुआ है।
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WHO ने भी गेमिंग डिसऑर्डर को गंभीर बीमारी माना है।
इंडस्ट्री पर असर
भारत का ऑनलाइन गेमिंग मार्केट लगभग 32,000 करोड़ रुपए का है, जिसमें से 86% रेवेन्यू रियल मनी गेम्स से आता था। सरकार के इस कदम से करीब 2 लाख नौकरियां खतरे में पड़ सकती हैं और 20 हजार करोड़ टैक्स रेवेन्यू का नुकसान होगा।
अब सवाल है कि क्या सुप्रीम कोर्ट इस कानून पर रोक लगाएगा या सरकार का पक्ष मजबूत रहेगा।