त के शेयर बाजार में हेरफेर के सबसे बड़े मामलों में से एक पर आज (9 सितंबर) सिक्योरिटीज अपीलेट ट्रिब्यूनल (SAT) में सुनवाई होगी। इस मामले में अमेरिकी ट्रेडिंग दिग्गज जेन स्ट्रीट और मार्केट रेगुलेटर SEBI आमने-सामने होंगे।
विवाद की शुरुआत
करीब दो महीने पहले सेबी ने जेन स्ट्रीट पर आरोप लगाया था कि कंपनी ने निफ्टी 50 और बैंक निफ्टी इंडेक्स ऑप्शंस में गड़बड़ी करके 4,844 करोड़ रुपए का गैर-कानूनी फायदा कमाया। इसके बाद 3 जुलाई 2025 को उसकी ट्रेडिंग पर रोक लगा दी गई थी।
मामला कैसे बढ़ा
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जनवरी 2023 से मई 2025 तक जेन स्ट्रीट ने कुल 36,671 करोड़ रुपए का मुनाफा कमाया, जिसमें सेबी के मुताबिक 4,844 करोड़ रुपए संदिग्ध हैं।
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शर्त रखी गई थी कि अगर कंपनी को फिर से ट्रेडिंग करनी है तो उतनी ही रकम एस्क्रो अकाउंट में डालनी होगी।
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11 जुलाई को जेन स्ट्रीट ने यह राशि जमा कर दी और 18 जुलाई को उसे फिर से ट्रेडिंग करने की अनुमति मिल गई। हालांकि सेबी ने चेतावनी दी कि कंपनी को उन पैटर्न्स से दूर रहना होगा जिन्हें रेगुलेटर ने “मैनिपुलेटिव” माना है।
जेन स्ट्रीट की सफाई
कंपनी का कहना है कि उस पर लगाए गए आरोप ग़लत और भ्रामक हैं।
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जेन स्ट्रीट का तर्क है कि उसने जो ट्रेडिंग की वह केवल आर्बिट्रेज स्ट्रैटजी थी—यानी दो अलग-अलग बाजारों में कीमतों के अंतर का फायदा उठाना।
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कंपनी का दावा है कि सेबी की पहली जांच में उसकी रणनीति को वैध बताया गया था, लेकिन बाद में इसे गलत तरीके से मैनिपुलेशन करार दे दिया गया।
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फिलहाल, जेन स्ट्रीट ने भारत में ऑप्शंस ट्रेडिंग रोक दी है।
आर्बिट्रेज और मैनिपुलेशन का फर्क
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आर्बिट्रेज: यह एक वैध तरीका है जिसमें किसी शेयर या डेरिवेटिव को सस्ते बाजार से खरीदकर महंगे बाजार में बेचा जाता है।
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मैनिपुलेशन: इसमें जानबूझकर बाजार की दिशा बदली जाती है—जैसे अफवाह फैलाकर कीमतें ऊपर-नीचे करना ताकि खुद फायदा हो और बाकी निवेशक नुकसान झेलें।
जांच का अगला चरण
सेबी ने NSE और BSE को निर्देश दिया है कि जेन स्ट्रीट की हर ट्रेडिंग गतिविधि पर कड़ी नजर रखी जाए।
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अगर दोबारा गड़बड़ी पाई गई तो सख्त कदम उठाए जाएंगे।
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सेबी अब बीएसई के सेंसेक्स ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट्स की भी जांच कर रहा है क्योंकि शक है कि वहां भी हेरफेर हुआ हो सकता है।
कुल मिलाकर, यह केस भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए मिसाल बन सकता है। अगर जेन स्ट्रीट दोषी पाई जाती है तो विदेशी हेज फंड और बड़ी ट्रेडिंग कंपनियों के लिए भारतीय बाजार में काम करना और भी चुनौतीपूर्ण हो जाएगा।