पेरेंटिंग गाइड: बच्चों को डांटने से क्यों बिगड़ सकता है मानसिक संतुलन? सही तरीके से समझाने के उपाय

Spread the love

कानपुर में हाल ही में हुई एक दर्दनाक घटना ने हर माता-पिता को झकझोर दिया। खबर आई कि 14 साल के एक बच्चे ने माता-पिता की डांट से आहत होकर आत्महत्या कर ली। इस घटना ने समाज में यह सवाल खड़ा कर दिया है कि आखिर डांट-मार किस हद तक बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती है।

कई माता-पिता सोच में पड़ जाते हैं कि अगर डांट-मार न करें तो बच्चे को अनुशासन में कैसे लाया जाए? इसी विषय पर फैमिली और चाइल्ड काउंसलर डॉ. अमिता श्रृंगी (जयपुर) ने माता-पिता को विशेष सलाह दी है।


बच्चों पर डांट-मार का असर

  • बार-बार की गई डांट-फटकार बच्चे को जिद्दी, गुस्सैल या डरपोक बना सकती है।

  • अगर डांट का कारण स्पष्ट न हो तो बच्चा इसे अपमान मानता है, सीखने का अवसर नहीं।

  • बच्चे को लगता है कि वह चाहे कुछ भी करे, उसे सिर्फ रिजेक्शन ही मिलेगा।

  • बार-बार ऐसा होने पर बच्चा भावनात्मक रूप से कमजोर और कभी-कभी अत्यधिक निराशा का शिकार हो सकता है।


क्यों ट्रिगर न हों ऐसी खबरों से?

डॉ. श्रृंगी का कहना है कि ऐसी खबरें पूरी सच्चाई नहीं बतातीं। किसी भी घटना के पीछे कई परिस्थितियाँ होती हैं। इसलिए पेरेंट्स को घबराने के बजाय अपने व्यवहार पर ध्यान देने की जरूरत है।


बच्चे को डांटना कब और कैसे सही है?

  • डांट तभी दें जब वाजिब कारण हो।

  • यह स्पष्ट करें कि गलती कहाँ हुई और क्यों सुधार जरूरी है।

  • डांट में सुधार की भावना होनी चाहिए, न कि अपमान का भाव।

  • गुस्से में या थकान के कारण डांटने से बचें।


उम्र के अनुसार समझाने का तरीका बदलें

हर उम्र में बच्चे का मानसिक स्तर अलग होता है।

  • छोटे बच्चों को प्यार और सरल भाषा में समझाएँ।

  • किशोरावस्था में सख्त लहजे का प्रयोग किया जा सकता है, लेकिन आवाज़ ऊँची करना जरूरी नहीं।

  • गलती पर केवल सज़ा न दें, बल्कि यह भी समझाएँ कि अगली बार कैसे सुधार करना है।


पेरेंट्स अपने गुस्से पर कैसे काबू पाएं?

  1. गुस्सा आए तो तुरंत रिएक्ट न करें।

  2. कुछ देर शांत होकर स्थिति को देखें।

  3. याद रखें कि बच्चा गलती से सीख रहा है।

  4. डांट को हमेशा पॉज़िटिव दिशा में मोड़ें।

  5. बच्चे की गलती पर बात करते समय उसके आत्मसम्मान को ठेस न पहुँचाएँ।


पेरेंटिंग में अपनाएँ ये ज़रूरी बातें

  • हर गलती को सीखने का मौका मानें, न कि अपराध।

  • बच्चे को डराने या अपमानित करने के बजाय, भरोसा दिलाएँ।

  • बच्चे को महसूस कराएँ कि वह अपनी भावनाएँ खुलकर साझा कर सकता है।

  • टेक्नोलॉजी के इस दौर में बच्चे बाहर से स्मार्ट दिखते हैं, लेकिन अंदर से बहुत अकेले भी हो सकते हैं।

  • माता-पिता का काम केवल अनुशासन सिखाना नहीं, बल्कि एक सुरक्षित और सपोर्टिव माहौल देना भी है।


निष्कर्ष

बच्चे कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं। उन्हें डांट-मार से नहीं, बल्कि प्यार, धैर्य और समझदारी से आकार दिया जा सकता है। अगर आप चाहते हैं कि बच्चा जिम्मेदार बने, तो उसे सज़ा से ज्यादा भरोसा और दिशा दीजिए।

याद रखें—बच्चे का आत्मसम्मान सबसे कीमती है। उसे सुरक्षित माहौल देकर ही आप उसे आत्मविश्वासी और मानसिक रूप से मजबूत बना सकते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *