राजस्थान की बिजली कंपनियों पर इस समय लगभग ₹47,000 करोड़ का रेगुलेटरी एसेट दबाव है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब इस राशि को अगले चार सालों में खत्म करना जरूरी हो गया है। इस फैसले ने राज्य सरकार और ऊर्जा विभाग के सामने बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है।
कंपनियों के पास क्या विकल्प?
-
यह रकम सीधे उपभोक्ताओं से वसूली जाए।
-
या फिर इसे राज्य सरकार अपने बजट से वहन करे।
-
अथवा फिर से अदालत से विशेष निर्देश मांगे जाएं।
तीनों ही विकल्प कठिन हैं और इनमें से जो भी रास्ता चुना जाएगा, उसका सीधा असर उपभोक्ताओं और सरकार की आर्थिक स्थिति पर होगा।
रेगुलेटरी एसेट क्या है?
जब बिजली कंपनियां लागत से कम दरों पर बिजली बेचती हैं और समय पर टैरिफ नहीं बढ़ता, तो घाटा बढ़ता है। इस घाटे को रेगुलेटरी एसेट के रूप में दर्ज किया जाता है, जिसे बाद में उपभोक्ताओं से धीरे-धीरे वसूला जाता है।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश
दिल्ली के एक मामले में दिए गए फैसले के अनुसार, 1 अप्रैल 2024 से शुरू हुए चार सालों के भीतर रेगुलेटरी एसेट्स का निपटारा करना होगा। लेकिन राजस्थान में पहले ही करीब डेढ़ साल निकल चुका है, अब सिर्फ ढाई साल में 47,000 करोड़ की वसूली करना आसान नहीं होगा।
टैरिफ याचिका में प्रस्ताव
राजस्थान की डिस्कॉम कंपनियों ने राजस्थान विद्युत विनियामक आयोग (RERC) के पास दायर टैरिफ याचिका में नया प्रस्ताव रखा है। इसके तहत, प्रति यूनिट ₹1 का रेगुलेटरी सरचार्ज लगाने की बात कही गई है। हालांकि, कुछ उपभोक्ता वर्गों को इस बोझ से आंशिक राहत देने का सुझाव भी दिया गया है।
आगे क्या?
अगर रेगुलेटरी सरचार्ज लागू होता है तो आने वाले सालों में राजस्थान की जनता को बिजली के लिए ज्यादा जेब ढीली करनी पड़ सकती है। अब देखना यह होगा कि राज्य सरकार और आयोग इस वित्तीय संकट का समाधान कैसे निकालते हैं।