छत्तीसगढ़ के गरियाबंद ज़िले के मैनपुर ब्लॉक के सीमावर्ती गाँव मटाल की पहाड़ियों पर 9-10 सितंबर की रात को सुरक्षा बलों और नक्सलियों के बीच 16 घंटे लंबी मुठभेड़ चली। इस ऑपरेशन में सुरक्षाबलों ने 5 करोड़ से अधिक इनामी 10 नक्सलियों को मार गिराया। खास बात यह रही कि 400 जवानों की इस कार्रवाई में किसी एक जवान को भी खरोंच तक नहीं आई।
कौन-कौन मारे गए?
मुठभेड़ में ढेर हुए नक्सलियों में शामिल हैं:
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मोडेम बालकृष्णा (₹2 करोड़ इनामी, सेंट्रल कमेटी सदस्य)
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प्रमोद उर्फ पांडू (ओडिशा स्टेट कमेटी सदस्य)
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विमल उर्फ मंगन्ना समीर (ओडिशा स्टेट कमेटी सदस्य)
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PPCM रजीता
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टेक्निकल टीम PPCM अंजली
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SDK ACM सीमा उर्फ भीमे
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ACM विक्रम
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डिप्टी कमांडर उमेश
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PM बिमला (BBM डिवीजन)
इन सभी पर मिलाकर ₹5.22 करोड़ का इनाम घोषित था। मारे गए 10 नक्सलियों में 6 पुरुष और 4 महिलाएं शामिल हैं।
ऑपरेशन की रणनीति
करीब 400 जवानों ने पहाड़ी क्षेत्र को चारों ओर से घेर लिया और घंटों चली गोलीबारी के बाद सभी नक्सली मार गिराए गए। जवानों ने हथियार लहराकर जश्न मनाया और “भारत माता की जय” व “वंदे मातरम” के नारे लगाए।
10 नक्सली भाग निकले
कार्रवाई के दौरान करीब 10 नक्सली भागने में सफल हो गए। पुलिस और सीआरपीएफ की टीमें अब जंगल में उनकी तलाश कर रही हैं।
बालकृष्णा का अंत – तेलुगू लीडरशिप खत्म
करीब 25 साल से सुरक्षा एजेंसियों की पकड़ से बाहर रहा मोडेम बालकृष्णा आखिरकार मारा गया। यह चलपति से भी वरिष्ठ था और लंबे समय से गरियाबंद-ओडिशा बॉर्डर पर नक्सल गतिविधियों को लीड कर रहा था।
बालकृष्णा और चलपति – दोनों के मारे जाने के बाद अब गरियाबंद क्षेत्र से नक्सलियों की तेलुगू लीडरशिप पूरी तरह समाप्त हो गई है।
ग्रामीण खौफ में
ग्रामीणों ने नक्सल मूवमेंट बढ़ने की बात तो मानी, लेकिन पुलिस से खुलकर कुछ नहीं कहा। लोग आज भी डर के कारण अपना वास्तविक नाम बताने से बच रहे हैं।
केंद्र का लक्ष्य: 2026 तक नक्सलवाद का अंत
गृह मंत्री अमित शाह पहले ही कह चुके हैं कि 31 मार्च 2026 तक देश से नक्सलवाद का सफाया कर दिया जाएगा। बस्तर और आसपास के इलाकों में लगातार बड़े ऑपरेशन इसी दिशा में तेजी का संकेत देते हैं।
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मई 2025 में 27 नक्सली मारे गए थे, जिनमें 1.5 करोड़ का इनामी बसवा राजू भी शामिल था।
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इससे पहले कर्रेगुट्टा ऑपरेशन में 31 नक्सली ढेर किए गए थे।
अब क्या आगे?
गरियाबंद एसपी निखिल राखेचा का कहना है कि अब फोकस सरेंडर पॉलिसी पर है। तेलुगू लीडरशिप खत्म होने के बाद स्थानीय कैडर ज्यादा समय तक टिक नहीं पाएगा।