प्रो. जगदीप छोकर का निधन: ADR के संस्थापक और चुनाव सुधार आंदोलन के अग्रदूत को श्रद्धांजलि

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भारत में लोकतांत्रिक सुधारों की आवाज़ को धार देने वाले प्रोफेसर जगदीप एस. छोकर का शनिवार (14 सितंबर 2025) को निधन हो गया। 81 वर्ष की आयु में उन्हें दिल का दौरा पड़ा, परिवारजन तुरंत अस्पताल ले गए, लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका।

ADR की स्थापना और योगदान

IIM अहमदाबाद में प्रोफेसर रह चुके प्रो. छोकर ने वर्ष 1999 में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की नींव रखी थी। यह संगठन आने वाले वर्षों में भारत में चुनावी पारदर्शिता और जवाबदेही का सबसे बड़ा स्तंभ बन गया। उनके नेतृत्व में ADR ने चुनावी प्रक्रिया में ऐतिहासिक सुधार करवाए।

ADR के बड़े योगदान

  • चुनावी उम्मीदवारों की आपराधिक पृष्ठभूमि, संपत्ति और शिक्षा का खुलासा अनिवार्य कराया।

  • इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और इसे रद्द कराने में अहम भूमिका निभाई।

  • राजनीतिक दलों को RTI के दायरे में लाने की पहल की।

  • दोषी जनप्रतिनिधियों की सदस्यता खत्म करने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ी।

  • NOTA विकल्प लागू कराने में योगदान दिया।

  • राजनीतिक दलों की आयकर रिटर्न सार्वजनिक कराने का दबाव बनाया।

आंदोलन की शुरुआत

यह सफर 1999 में शुरू हुआ, जब IIM अहमदाबाद के 11 प्रोफेसरों और छात्रों ने राजनीति के बढ़ते अपराधीकरण पर चिंता जताई। प्रो. त्रिलोचन शास्त्री के सुझाव पर ADR बना और उसमें प्रो. जगदीप छोकर सबसे वरिष्ठ सदस्य रहे। वे चाहते थे कि जिस तरह कंपनियों की बैलेंस शीट होती है, वैसे ही उम्मीदवारों की “कैरेक्टर शीट” जनता के सामने आए। सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिकाओं के आधार पर यह व्यवस्था लागू की।

लोकतंत्र के प्रति अडिग प्रतिबद्धता

ADR के निदेशक रिटायर्ड मेजर जनरल अनिल वर्मा ने कहा कि, प्रो. छोकर के नेतृत्व में चुनाव सुधारों का जो सफर शुरू हुआ, उसने भारत के लोकतांत्रिक ढांचे को नई दिशा दी। सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने उन्हें लोकतंत्र का प्रहरी बताते हुए कहा कि, “मैं सोचता था प्रोफेसरों से लोकतंत्र नहीं बदलेगा, लेकिन ADR और प्रो. छोकर ने यह भ्रम तोड़ा। उन्होंने न सिर्फ अदालत में केस जीते, बल्कि जनता तक सूचना पहुंचाने में भी मिसाल कायम की।”

आखिरी समय तक सक्रिय

अपने जीवन के अंतिम क्षण तक प्रो. छोकर चुनावी पारदर्शिता और जवाबदेही की लड़ाई लड़ते रहे। उनका जाना लोकतांत्रिक सुधार आंदोलन के लिए बड़ी क्षति है। लेकिन उनके द्वारा बोए गए बीज ने भारत के लोकतंत्र में जवाबदेही और पारदर्शिता की नई परंपरा कायम की है।

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