केंद्र सरकार ने 22 सितंबर से जीएसटी दरों में कटौती की घोषणा की है। अब यह सुनिश्चित किया जाएगा कि कीमतें वास्तव में कम हुई हैं या नहीं। इसके लिए सेंट्रल और स्टेट जीएसटी विभाग के अफसर बाजारों में अचानक जाकर निरीक्षण करेंगे।
अगर पाया गया कि दुकानदार ने टैक्स कटौती के मुताबिक दाम नहीं घटाए, तो उनका टैक्स क्रेडिट ब्लॉक किया जा सकता है। इसका मतलब यह है कि व्यापारी अपने खरीदे गए माल पर चुकाए गए जीएसटी को अपनी बिक्री पर लगने वाले टैक्स से समायोजित नहीं कर पाएगा और ज्यादा भुगतान करना पड़ेगा।
54 चीजों की सूची से होगी निगरानी
सेंट्रल जीएसटी विभाग ने 54 वस्तुओं की एक सूची तैयार की है, जिन पर टैक्स कटौती हुई है। उदाहरण के लिए, सभी प्रकार के सूखे मेवे, स्टेशनरी आइटम, किचन बर्तन और घरेलू सामान को समूहित किया गया है। निरीक्षक 22 सितंबर के बाद इन वस्तुओं की कीमतों को बाजार जाकर जांचेंगे और कटौती के बाद के रेट दर्ज करेंगे।
जहां कीमतें कम नहीं पाईं, वहां दुकानदारों के खिलाफ उचित कार्रवाई की जाएगी।
कंपनियों को तेजी से टैक्स रिफंड
CBIC के पूर्व चेयरमैन विवेक जौहरी ने बताया कि सरकार कंपनियों पर भरोसा करेगी कि जीएसटी कटौती का लाभ आम आदमी तक पहुंचे। इसके लिए सरकार कंपनियों को तेजी से टैक्स रिफंड दे रही है।
फिर भी, विभाग खुद निगरानी करेगा। यदि दो-तीन हफ्ते में ग्राहकों की शिकायतें मिलती हैं या निरीक्षण में पता चलता है कि लाभ उपभोक्ता तक नहीं पहुंचा, तो कंपनियों पर स्पेशल ऑडिट के आदेश जारी किए जा सकते हैं।
सर्वे से मिली जानकारी
लोकलसर्कल्स के हालिया सर्वे में पता चला कि 2018-19 में जीएसटी कटौती का लाभ उपभोक्ताओं तक सही से नहीं पहुंचा।
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26% ने कहा कि निर्माता ने MRP नहीं घटाई
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15% ने कहा कि रिटेलर ने फायदा नहीं पहुंचाया
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9% ने कहा कि वितरक ने रिटेलर को लाभ नहीं दिया
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9% ने कहा कि MRP घटने से फायदा मिला
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9% ने कहा कि MRP नहीं घटी, लेकिन रिटेलर को छूट मिली
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32% ने कोई निश्चित जवाब नहीं दिया
सवाल था कि क्या ब्रांड्स को अपने सिस्टम से सुनिश्चित करना चाहिए कि रिटेलर लाभ उपभोक्ता तक पहुंचा रहा है।
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78% ने हाँ कहा
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13% ने कहा कि यह सरकार की जिम्मेदारी है
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5% ने कहा कि ऐसा करना जरूरी नहीं
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4% ने कोई निश्चित जवाब नहीं दिया
चुनौती यह है कि एंटी-प्रॉफिटियरिंग अथॉरिटी नहीं है और उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 के तहत लाभ न पहुंचाना “अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिस” नहीं माना जाता। इसलिए ब्रांड्स पर ही निर्भर है कि कटौती का फायदा उपभोक्ता तक पहुंचे या नहीं।