बस्तर दशहरा में शामिल होने बस्तर की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी को बस्तर राज परिवार के सदस्यों ने निमंत्रण दिया है। शारदीय नवरात्र की पंचमी को राज परिवार के सदस्य कमलचंद भंजदेव दंतेवाड़ा पहुंचे। देवी की पूजा अर्चना कर न्योता दिया और लगभग 617 साल से चली आ परंपरा को निभाया गया है।
पहले के जमाने में निमंत्रण चांदी के पत्रक पर लिखा जाता था, लेकिन अब जो पत्र भेंट करते हैं, वो एक चमकीले कपड़े पर लिखा होता है। कपड़ा बेहद पतला होता है। कपड़े पर लिखने के लिए स्याही या कलम का इस्तेमाल नहीं किया जाता, बल्कि कुमकुम से लिखा जाता है। बताया जाता है कि पत्र मिलने के बाद मां डोली में सवार होकर आती है।
पंचमी के दिन मां दंतेश्वरी को न्योता
कमलचंद भंजदेव ने कहा कि यह परंपरा सालों पुरानी है। पंचमी के दिन मां दंतेश्वरी को न्योता दिया जाता है। इसे मंगल न्योता कहते है। राजपरिवार का सदस्य होने के नाते मैं एक पत्रक लेकर आता हूं, मां दंतेश्वरी और मां मावली से निवेदन करता हूं कि वे बस्तर दशहरा में शामिल होने के लिए जगदलपुर आएं। जब वे आएंगी तो मैं उनकी पूजा-अर्चना करूंगा, उनका स्वागत करूंगा।
ऐसे होता है देवी का स्वागत
कमलचंद भंजदेव के मुताबिक, पहले माता को सलामी दी जाती है। फिर माता को विराजमान करवाया जाता है। इसके बाद जिया बाबा खबर करते हैं कि डोली आ गई है और आपको वहां आना है। उसी दिन जोगी उठाई की भी रस्म होती है। बस्तर के सभी देवी-देवताओं (देव विग्रह) के साथ में वहां पहुंचता हूं। माता का पूरे सम्मान पूर्वक स्वागत करता हूं।
इस दिन होता है बस्तर दशहरा का समापन
कमलचंद भंजदेव खुद डोली उठाकर राजमहल लाते है। जहां मावली परघाव की रस्म भी अदा की जाती है। जब डोली दोबारा उठाई जाती है, तो उसी समय बस्तर दशहरा का समापन होता है। करीब 200 की संख्या में पुजारी, सेवादार समेत अन्य लोग दंतेवाड़ा से आते हैं।
पंचमी के दिन दिया जाता है निमंत्रण
मान्यताओं के मुताबिक, माता ने महाराजा को बोला था कि मैं न्योता पंचमी को ही लूंगी, इसलिए पंचमी का दिन विशेष होता है। इस दिन विशेष पूजा-अर्चना भी की जाती है।
राजपरिवार के सदस्य माता के दरबार में पहुंचते हैं। उनकी विशेष पूजा-अर्चना करते हैं और अपने साथ राजमहल चलने को कहते हैं। कमलचंद भंजदेव बताते हैं कि माता उनकी कुलदेवी हैं।