106 साल से अनवरत जारी है बच्चों की रामलीला : सांस्कृतिक चेतना और स्वराज्य की भावना जगाने के लिए 1920 में शुरू हुई परंपरा

Spread the love

बलौदा बाजार – छत्तीसगढ़ के बलौदा जिले का भाटापारा कस्बा एक ऐसी परंपरा का गवाह है, जिसने अंग्रेज़ी हुकूमत के दौर में भी अपने सांस्कृतिक दीपक को बुझने नहीं दिया। यहां की आदर्श रामलीला नाटक मंडली की स्थापना सन 1920 में ब्रिटिश शासन काल में हुई थी। उस समय जब देश में आज़ादी की लड़ाई चरम पर थी, तब भाटापारा के कुछ स्थानीय लोगों ने बच्चों के माध्यम से रामचरितमानस का मंचन शुरू किया। यह मंचन केवल धार्मिक आयोजन नहीं था, बल्कि उस दौर में यह भारत की सांस्कृतिक चेतना और स्वराज्य की भावना का प्रतीक भी बन गया।

बच्चों से शुरू हुई रामलीला की परंपरा
अनोखी बात यह रही कि, शुरुआत से ही इसमें पात्र बच्चों द्वारा ही निभाए जाते रहे। राम, लक्ष्मण, सीता से लेकर रावण और हनुमान तक – हर भूमिका स्कूली बच्चे निभाते थे। अंग्रेज़ी शासन के दमनकारी माहौल में जब बड़े लोग खुलकर आवाज़ नहीं उठा पाते थे, तब बच्चों ने इस मंच से सांस्कृतिक स्वराज्य का संदेश दिया। यही परंपरा आज भी कायम है।

बच्चे करते हैं मंचन
आज 106 वर्ष बाद भी भाटापारा की रामलीला में 7 से 12 वर्ष तक के बच्चे संवाद बोलते और मंचन करते हैं। इस बार भी 10 वर्षीय बाल कलाकार ‘लक्ष्मण’ की भूमिका निभा रहा है, जबकि अन्य बच्चे राम, सीता, हनुमान और रावण जैसे पात्रों को सजीव करेंगे।

अद्वितीय ‘अहिरावण वध’ और देवीलीला
नवरात्रि के दौरान मंचित इस रामलीला की सबसे बड़ी विशेषता है – नवमी पर आयोजित ‘अहिरावण वध’ और भव्य देवीलीला। पाताल लोक की भयावहता और देवी की अद्भुत शक्ति का यह मंचन इतना प्रभावशाली होता है कि हजारों लोग दूर-दराज़ से इसे देखने उमड़ते हैं। कहा जाता है कि छत्तीसगढ़ ही नहीं, पूरे प्रदेश में इस तरह की अनूठी रामलीला केवल भाटापारा में देखने को मिलती है।

साहित्य और आधुनिकता का संगम
रामलीला के संवाद केवल तुलसीदास कृत ‘रामचरितमानस’ तक सीमित नहीं हैं, बल्कि इसमें राधेश्याम रामायण, आर्य संगीत रामायण, रामचरित्र दर्पण और ज्वालाप्रसाद कृत श्रीरामायण जैसे ग्रंथों का भी मिश्रण किया गया है। विद्वानों की देखरेख में तैयार यह साहित्य बच्चों के मुख से जीवंत हो उठता है। समय के साथ मंचन भी आधुनिक हुआ। जहां पहले ढोलक, मंजीरे और हारमोनियम की धुन पर रामलीला होती थी, वहीं अब कॉलर माइक, आधुनिक साउंड सिस्टम, एलईडी स्क्रीन और यूट्यूब लाइव प्रसारण ने इसे नए युग से जोड़ दिया है।

सांस्कृतिक विरासत का जीवंत प्रतीक
भाटापारा की यह रामलीला केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि 106 वर्षों से जीवित वह सांस्कृतिक विरासत है, जिसने अंग्रेज़ी शासन से लेकर आज़ादी और अब आधुनिक युग तक अपनी पहचान बनाए रखी है। इसमें भाग लेने वाले बच्चे न केवल अभिनय करते हैं बल्कि परंपरा, संस्कृति और मर्यादा की सीख भी समाज को देते हैं। यही वजह है कि आज भी भाटापारा की रामलीला पूरे प्रदेश में अद्वितीय मानी जाती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *