दशहरा उत्सव: न आसमां, न जमीं… पानी में रावण वध

Spread the love

अंडा। दुर्ग जिले में ग्राम अंडा से लगा गांव है सिरसिदा, जहां रावण दहन की एक अनोखी परंपरा है। 27 साल पहले गांव के लोगों ने तय किया कि रावण न तो आसमान में मरता है न जमीन पर, इसलिए कुछ नया करने के उद्देश्य से रावण दहन की परंपरा को पानी में करने का निर्णय लिया गया। इसके लिए गांव में डबरीनुमा जगह की तलाश की गई। भूरी डबरी नामक इस जगह पर में मंच और सांस्कृतिक भवन का निर्माण कराया गया। जहां रावण के पुतले का दहन शुरू किया गया। यह परंपरा आज भी चल रही है।

वर्तमान में भवन जर्जर होने की वजह से ट्यूब और टीपे के सहारे चेली तैयार की जाती है। उसमें रावण के पुतले को बांस-बल्ली के माध्यम से खड़ा किया जाता है। मुखौटा लगाया जाता है, इसके बाद उसका दहन किया जाता है। हर बार की तरह इस साल भी रावण बनकर तैयार है। 40 फीट ऊंचे रावण का 2 अक्टूबर को दहन किया जाएगा। इससे पहले दो दिन यानी बुधवार और गुरुवार को शाम के समय रामलीला होगी, जिसमें रामायण के सभी खंडों (कांड) का मंचन होगा। राम की भूमिका में जितेश्वर देवांगन, रावण की भूमिका में छन्नू यादव नजर आएंगे। लक्ष्मण यश साहू, अंगद यशवंत श्रीवास और हनुमान आशीष पटेल बनेंगे। इस आयोजन को लेकर गांववालों को पूरे साल इंतजार रहता है।

तैरता हुआ इकलौता रावण
स्थानीय ग्रामीणों ने बताया कि, पूरे छत्तीसगढ़ में सिर्फ सिरसिदा ही है, जहां तालाब में तैरता रावण देखा जा सकता है, जिसे दशहरा उत्सव से चार दिन पहले ही पूरे तलाबा में घुमाया जाता है, ताकि लोग इससे सबक लें। इसके बाद तालाब में इसका दहन किया जाता है। इसके पास ही रामलीला का आयोजन होता है। इसके बाद जीआई तार और राकेट की मदद से रावन के पुतले को आग लगा दी जाती है। गांव के खेमन चंद्राकर बताते हैं कि 100 साल से गांव में रामलीला की परंपरा है। रावण दहन की शुरुआत 1994 में हुई। उस समय तत्कालीन विधायक दाऊ प्यारेलाल बेलचंदन की अनुशंसा पर मंच का निर्माण हुआ था। ग्रामीणों ने बताया कि रावण दहन और रामलीला देखने के लिए आसपास के 12 गांव के लोग आयोजन स्थल में जुटते हैं। इस अवसर पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों की भी प्रस्तुति दी जाती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *