भानुप्रतापपुर। छत्तीसगढ़ के भानुप्रतापपुर के ग्राम बोटेचांग में रविवार को ग्रामसभा की बैठक आयोजित की गई। जिसमें ग्रामीणों ने धर्मांतरण के विरुद्ध आंदोलन छेड़ने का निर्णय लिया। इसी बीच गांव के तीन युवाओं ने सार्वजनिक रूप से ईसाई धर्म छोड़कर अपने मूल धर्म में लौटने का ऐलान किया। बोटेचांग के तीन परिवारों ने घर वापसी किया। वहीं ग्रामीणों ने उनका पारंपरिक रूप से स्वागत करते हुए पगड़ी पहनाई और जिला पंचायत सदस्य देवेंद्र टेकाम ने पैर धोकर सम्मान किया।
इस अवसर पर युवाओं ने घोषणा की कि वे अब अपने कुल देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना करेंगे और अपनी पारंपरिक आस्था से जुड़े रहेंगे। घर वापिस आने वाले नरेंद्र कुमार मंडावी ने कहा कि वर्ष 2020-21 में पिता की बीमारी के दौरान इलाज के नाम पर उन पर धर्म परिवर्तन का दबाव बनाया गया था। उनसे कहा गया था कि वे कुल देवी-देवताओं की पूजा न करें और प्रसाद या पूजा करने वाले परिवार का भोजन न ग्रहण करें। लेकिन समय के साथ उन्हें एहसास हुआ कि अपनी परंपरा और संस्कृति से जुड़कर ही वे सही मार्ग पर हैं।
अपने धर्म में वापसी कर हो रहा गर्व
ग्रामीणों ने कहा कि, अपने धर्म में वापसी कर हमें गर्व हो रहा है हम चाहते हैं कि बाकी लोग भी अपने मूल धर्म में लौटें। गांववालों ने तीनों युवाओं की घर वापसी का स्वागत करते हुए इसे अपनी संस्कृति और आस्था की जीत बताया। उनका कहना है कि, धर्मांतरण से आदिवासी समाज की परंपरा और देवी-देवताओं की पूजा पद्धति पर खतरा मंडरा रहा था, लेकिन अब गांव एकजुट होकर अपनी संस्कृति की रक्षा करेगा। इस अवसर पर जिला पंचायत सदस्य देवेंद्र टेकाम, सर्व आदिवासी समाज जिला उपाध्यक्ष ज्ञान सिंह गौर, सर्व आदिवासी युवा प्रभाग के राजेश गोटा, ग्राम गायता अशोक उसेंडी के अलावा ग्रामीण उपस्थित रहे।
पास्टर की सभा पर लगा बैन
ग्रामसभा ने पेसा अधिनियम 1996 और संविधान की पाँचवीं अनुसूची का हवाला देते हुए धर्मांतरण गतिविधियों पर सख्त रोक लगाने का प्रस्ताव पारित किया। गांव में सूचना बोर्ड लगाया गया है, जिस पर साफ लिखा है कि पास्टर का धर्मांतरण क्रियाकलाप वर्जित है। ग्रामसभा ने स्पष्ट किया कि, बाहरी पादरी या पास्टर द्वारा किसी भी प्रकार के धार्मिक आयोजन अथवा धर्मांतरण की गतिविधि अब गांव में पूरी तरह प्रतिबंधित रहेगी।