राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) ने छात्रों के लिए एक नया शैक्षिक मॉड्यूल लॉन्च किया है – “स्वदेशी: वोकल फॉर लोकल”। इसका मकसद बच्चों और युवाओं में भारतीय उत्पादों के प्रति गर्व और समर्थन की भावना जगाना है।
आत्मनिर्भर भारत से जुड़ा स्वदेशी आंदोलन
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यह मॉड्यूल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत अभियान को ऐतिहासिक स्वदेशी आंदोलन से जोड़ता है।
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इसकी शुरुआत पीएम मोदी के स्वतंत्रता दिवस भाषण के उद्धरण से होती है, जहां उन्होंने आत्मनिर्भरता को “राष्ट्रीय शक्ति और सम्मान का आधार” बताया।
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छात्रों को यह संदेश दिया जाता है कि भारतीय वस्तुओं को अपनाना सिर्फ अर्थव्यवस्था ही नहीं बल्कि गर्व और जिम्मेदारी का विषय है।
इतिहास और आधुनिक पहल का संगम
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मॉड्यूल याद दिलाता है कि 1905 में कलकत्ता टाउन हॉल से स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत हुई थी।
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बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय और बिपिन चंद्र पाल ने लोगों को ब्रिटिश वस्तुओं के बहिष्कार और भारतीय उत्पादों को अपनाने के लिए प्रेरित किया।
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महात्मा गांधी ने इसे “स्वराज की आत्मा” कहा और इसे सामाजिक-आध्यात्मिक आंदोलन बना दिया।
आज, यही भावना भारत सेमीकंडक्टर मिशन जैसी आधुनिक पहलों में दिखती है, जहां देश तकनीकी आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है।
️ तकनीक और राष्ट्रीय सुरक्षा
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छात्रों को सिखाया जाएगा कि सेमीकंडक्टर सिर्फ स्मार्टफोन और कारों के लिए नहीं बल्कि रक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी जरूरी हैं।
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भारत में चिप निर्माण और डिजाइन पर हो रहा निवेश देश को वैश्विक इनोवेशन हब बना रहा है।
स्थानीय उद्यमशीलता की कहानियां
मॉड्यूल में कई प्रेरक कहानियां भी जोड़ी गई हैं –
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केरल की महिला उद्यमी, जिन्होंने कॉयर वर्क्स शुरू कर स्थानीय महिलाओं को रोजगार दिया और उनकी बनी चटाइयां अब दुनिया भर में बिक रही हैं।
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राजस्थान के एक युवक ने गाय के गोबर से कम्पोस्ट, दीये और हर्बल प्रोडक्ट्स बनाकर अपनी गौशाला को रोजगार केंद्र में बदल दिया।
️ ODOP – एक जिला एक उत्पाद
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सरकार की ODOP योजना को भी इसमें शामिल किया गया है।
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अब तक 750 जिलों से 1,200+ अनूठे उत्पाद चिन्हित किए गए हैं।
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ये प्रोडक्ट्स GeM और ONDC जैसे प्लेटफॉर्म्स पर बेचे जा रहे हैं और दुनिया के बड़े शहरों – सिंगापुर, मिलान, न्यूयॉर्क और टोक्यो – में ODOP वॉल्स के जरिए प्रमोट किए जा रहे हैं।
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इससे कारीगरों को स्थायी बाजार और भारत की सांस्कृतिक विरासत को नया जीवन मिल रहा है।
छात्रों के लिए प्रैक्टिकल उदाहरण
बच्चों को यह समझाने के लिए रोज़मर्रा के उदाहरण जोड़े गए हैं। जैसे –
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कर्नाटक की चन्नपटना गुड़िया
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तमिलनाडु की तंजावुर बॉबलहेड डॉल
इन खिलौनों को उपहार के रूप में चुनना न केवल परंपरा को जीवित रखता है बल्कि आयातित प्लास्टिक खिलौनों का सुरक्षित और पर्यावरण अनुकूल विकल्प भी देता है।
कुल मिलाकर, NCERT का यह नया मॉड्यूल सिर्फ एक पाठ्यक्रम नहीं बल्कि छात्रों को इतिहास, आत्मनिर्भरता, तकनीक और स्थानीय उद्यमिता से जोड़ने की एक अनूठी पहल है। यह नई पीढ़ी को यह सिखाता है कि स्वदेशी सिर्फ अतीत की बात नहीं, बल्कि भविष्य का रास्ता भी है।