संपूर्ण स्वास्थ्य की बात करें तो सिर्फ शरीर ही नहीं बल्कि मानसिक सेहत का ख्याल रखना भी उतना ही ज़रूरी है। लेकिन आज की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में लोग अक्सर मानसिक स्वास्थ्य को नज़रअंदाज़ कर देते हैं। नतीजा यह कि एंग्ज़ाइटी, स्ट्रेस और डिप्रेशन जैसी समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं।
क्यों बढ़ रही है समस्या?
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पहले मानसिक स्वास्थ्य विकार आमतौर पर 50 साल की उम्र के बाद देखे जाते थे, लेकिन अब स्कूल और कॉलेज के छात्रों में भी ये समस्याएं आम हो गई हैं।
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भारत में किए गए सर्वे बताते हैं कि 65% छात्र किसी न किसी मानसिक समस्या से जूझ रहे हैं।
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WHO के अनुसार, 15 से 29 वर्ष की उम्र के युवाओं में डिप्रेशन और एंग्ज़ाइटी आत्महत्या के बड़े कारणों में से हैं।
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2023 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 10.6% वयस्क मानसिक बीमारी से पीड़ित थे।
डॉक्टर क्या कहते हैं?
ब्रिटेन की सीनियर मनोचिकित्सक डॉ. सैली बेकर का कहना है कि एंग्ज़ाइटी को रोकने का सबसे असरदार तरीका है –
“थॉट ब्रेक” यानी जैसे ही लगे कि आप चिंता में डूब रहे हैं, तुरंत अपना ध्यान किसी और काम में लगाएं।
वे अपने मरीजों को ICE प्रोटोकॉल अपनाने की सलाह देती हैं:
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I (Identify): पहचानें कि आपको किस चीज से चिंता हो रही है।
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C (Calm): खुद को शांत करने की कोशिश करें, गहरी सांस लें, खिड़की या खुले स्थान पर जाएं।
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E (Exchange): अपनी भावनाएं किसी भरोसेमंद इंसान से साझा करें।
एंग्ज़ाइटी से राहत पाने के आसान तरीके
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गहरी सांस लेना और योग करें।
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रोज़ाना थोड़ा-बहुत व्यायाम जरूर करें।
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नींद पूरी करें, कम से कम 7–8 घंटे।
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मोबाइल और सोशल मीडिया का सीमित उपयोग करें।
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परिवार और दोस्तों से खुलकर बातें करें।
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अगर परेशानी लगातार बनी रहती है तो मनोचिकित्सक से मदद लेने में झिझकें नहीं।
क्यों ज़रूरी है ध्यान देना?
मानसिक स्वास्थ्य का असर न सिर्फ आपकी पढ़ाई और करियर पर पड़ता है बल्कि रिश्तों और रोज़मर्रा की ज़िंदगी पर भी गहरा असर डालता है। समय रहते कदम उठाने से आप न सिर्फ तनाव और चिंता को काबू कर सकते हैं बल्कि खुद को आत्मविश्वासी और खुशहाल बना सकते हैं।
संक्षेप में कहें तो, मेंटल हेल्थ भी उतनी ही अहम है जितनी फिजिकल हेल्थ। अगर आप बार-बार एंग्ज़ाइटी से परेशान हो रहे हैं तो खुद पर सख्ती करने के बजाय छोटे-छोटे बदलाव करें और ज़रूरत पड़े तो विशेषज्ञ की मदद लें।