26/11 हमलों पर नया सियासी विवाद: मोदी बोले “कांग्रेस ने घुटने टेके थे”, चिदंबरम बोले – “काल्पनिक बातें मेरे नाम से जोड़ी गईं”

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2008 के मुंबई आतंकी हमलों को लेकर एक बार फिर सियासत गरमा गई है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि कांग्रेस सरकार ने उस समय आतंकियों के सामने घुटने टेक दिए थे।
वहीं, उस वक्त के गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने पीएम मोदी के बयान को “गलत और काल्पनिक” बताया है।


कहां से शुरू हुआ विवाद?

  • 30 सितंबर 2025: चिदंबरम ने एक इंटरव्यू में कहा था कि 26/11 के बाद उनके मन में बदले की भावना आई थी, लेकिन “अमेरिका सहित पूरी दुनिया के दबाव” के चलते तत्कालीन सरकार ने सैन्य कार्रवाई नहीं की।

  • 8 अक्टूबर 2025: मुंबई में एक कार्यक्रम के दौरान पीएम मोदी ने कहा – “सेनाएं तैयार थीं, देश तैयार था, लेकिन कांग्रेस सरकार ने कमजोरी दिखाई और किसी अन्य देश के दबाव में हमला नहीं किया।”

  • 9 अक्टूबर 2025: चिदंबरम ने सोशल मीडिया पर लिखा – “माननीय प्रधानमंत्री ने काल्पनिक बातों को मेरे नाम से जोड़ा है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है।”


चिदंबरम vs मोदी – बयानबाज़ी की टाइमलाइन

  • मोदी: कांग्रेस ने 2008 में आतंकियों के सामने घुटने टेके।

  • चिदंबरम: मैंने कभी ऐसा नहीं कहा। मेरी बातों को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया।

  • चिदंबरम (पहले इंटरव्यू में): मेरे मन में बदले का विचार आया था, लेकिन अमेरिकी विदेश मंत्री ने कहा था – “कृपया एक्शन मत लीजिए।” इसलिए युद्ध का रास्ता नहीं चुना गया।


26/11 हमले की याद

  • 26 नवंबर 2008 को 10 आतंकियों ने मुंबई पर हमला किया।

  • ताज होटल, सीएसटी स्टेशन, नरीमन हाउस, कामा हॉस्पिटल निशाना बने।

  • 175 लोग मारे गए, 60 घंटे तक दहशत छाई रही।

  • 9 आतंकी मारे गए, जबकि अजमल कसाब जिंदा पकड़ा गया और 2012 में फांसी दी गई।


तहव्वुर राणा का एंगल

  • इस साल अप्रैल 2025 में मुंबई हमलों के मास्टरमाइंड तहव्वुर राणा का अमेरिका से भारत प्रत्यर्पण हुआ।

  • चिदंबरम ने इस पर भी कहा था – “क्रेडिट NDA सरकार को मिले, लेकिन UPA शासन के दौरान ही इसकी प्रक्रिया शुरू हुई थी।”
    यानी, अब भी इस केस पर राजनीतिक क्रेडिट की जंग जारी है।


Bottom Line

26/11 हमला देश की सुरक्षा और राजनीति, दोनों के लिए एक टर्निंग प्वाइंट था।

  • मोदी का आरोप: कांग्रेस ने आतंकियों के सामने समर्पण किया।

  • चिदंबरम का जवाब: मेरी बातों को तोड़ा-मरोड़ा गया।

लेकिन इस पूरे विवाद में असली सवाल यह है –
क्या राजनीति में बयानबाज़ी के लिए देश की सबसे बड़ी आतंकी त्रासदी का इस्तेमाल किया जाना चाहिए?

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