मध्य प्रदेश में मासूम बच्चों की मौत का कारण बनी कफ सिरप निर्माता कंपनी श्रीसन फार्मा अब सरकारी व्यवस्था की लापरवाही और सिस्टम की खामियों को उजागर कर रही है। हैरानी की बात यह है कि यह कंपनी पिछले एक दशक से ज्यादा समय से दवाएं बना रही थी, दो बार लाइसेंस नवीनीकरण भी हुआ, लेकिन केंद्र सरकार की फाइलों में इसका नाम तक नहीं था।
लाइसेंस मिला, लेकिन रिकॉर्ड गायब
कंपनी को पहला लाइसेंस 2011 में और दूसरा नवीनीकरण 2016 में मिला। तमिलनाडु सरकार ने इसे अनुमति दी, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर दवा नियामक संस्था सीडीएससीओ (केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन) तक यह सूचना कभी नहीं पहुंची। यानी कंपनी आराम से उत्पादन करती रही, दवाएं पूरे देश में बेचती रही, लेकिन केंद्र को इसकी भनक तक नहीं लगी।
कैसे बचती रही निगरानी से?
श्रीसन फार्मा तमिलनाडु के कांचीपुरम में स्थित है और यह कंपनी कफ सिरप समेत कई जेनेरिक दवाएं बनाकर पुद्दुचेरी, ओडिशा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में सप्लाई करती रही।
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न डॉक्टर की पर्ची की सख्ती
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न कोई केंद्र सरकार की निगरानी
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न कोई अलर्ट सिस्टम
इसका नतीजा यह हुआ कि अभिभावक आसानी से ये सिरप दुकानों से खरीदकर बच्चों को पिलाते रहे और जब मौतें हुईं तब जाकर मामला खुला।
फैक्ट्री पर ताला, दिल्ली तक मचा हड़कंप
3 अक्टूबर की रात तमिलनाडु प्रशासन ने कंपनी की फैक्ट्री पर दो दिन की जांच के बाद ताला जड़ दिया। यह खबर दिल्ली तक आधी रात में पहुंची। अगली सुबह जब केंद्र के अधिकारी रिकॉर्ड रूम खंगालने लगे तो हैरानी और गहरी हो गई – कागजों में “श्रीसन फार्मा” का नाम तक दर्ज नहीं था।
सिस्टम पर उठे सवाल
एक कंपनी सालों तक बच्चों की जिंदगी से खेलने वाली दवाएं बनाए और केंद्रीय रिकॉर्ड में उसका जिक्र तक न हो – यह सवाल अब सरकार के लिए बड़ी मुश्किल खड़ी कर रहा है। सीडीएससीओ के वरिष्ठ अधिकारियों ने भी स्वीकार किया कि तमिलनाडु सरकार ने लाइसेंस और नवीनीकरण की जानकारी कभी साझा नहीं की।
कुल मिलाकर, श्रीसन फार्मा का यह मामला सिर्फ एक कंपनी की गलती नहीं बल्कि सरकारी निगरानी व्यवस्था की सबसे बड़ी कमजोरी भी उजागर करता है। लाइसेंस तो मिला, दवाएं भी बिकती रहीं, लेकिन देश की सर्वोच्च नियामक एजेंसी के रिकॉर्ड में कंपनी का नाम तक नहीं था। यही लापरवाही मासूम जिंदगियों पर भारी पड़ गई।