राजधानी में पिछले तीन साल में 4 हजार से ज्यादा लोगों के 10 करोड़ रुपए ऑनलाइन ठगी में डूब चुके हैं। पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज करने के बाद अब तक 130 पीड़ितो के खाते ब्लॉक कर 66 लाख रुपए होल्ड करवाए हैं। लेकिन अब तक 13 लोगों को 14 लाख रुपए ही मिल सके हैं। जबकि 31 केस में तो कोर्ट से पैसे दिलाने के आदेश हो चुके हैं। फिर भी बैंक वाले पैसे पीड़ितों नहीं लौटा रहे। ऐसा क्यों? जब पैसे बैंक में होल्ड हैं, कोर्ट से वापसी का आदेश हो गया है, तब पीड़ितों को रकम क्यों नहीं मिल रही? जबकि पैसे होल्ड करवाने से लेकर कोर्ट से आर्डर करवाने तक कड़ा संघर्ष करना पड़ता है। फिर सारा प्रयास व्यर्थ क्यों जा रहा है?
मीडिया ने इसकी पड़ताल की। घर बैठे पैसे कमाने के चक्कर में 2.28 लाख गंवाने वाले पीड़ित युवक अकरम खान के संघर्ष को देखा। 9 माह से थाने, कोर्ट, साइबर सेल और बैक के चक्कर काट रहे युवक के हाथ अंत में भी खाली रह गए, जबकि वह पूरी तरह बर्बाद हो चुका है। लेनदारों को जवाब नहीं दे पाने के कारण घर बदलना पड़ा। वह चेहरा ढांक कर घर से निकलता घूमता है ताकि लेनदार पहचान न सकें। वह अब तक इस उम्मीद पर दौड़भाग करता रहा कि उसके पैसे वापस मिल जाएंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उसके संघर्ष की पूरी कहानी….
ऐसे फंसा युवक ठग रैकेट के जाल में, फिर जमा करता गया पैसे
घटना मार्च 2023 की है। युवक के मोबाइल पर राम्या राज नाम की युवती का कॉल। उसने कहा उनकी कंपनी ऑन लाइन एडवर्टाजिंग कंपनी टूरस्टि बेस्ड इंडस्ट्रीज को प्रमोट करती है। इसके लिए 30 टॉस्क पूरे करने पर उन्हे मूलधन के साथ बोनस मिलेगा। युवक ने उनके भेजे लिंक पर रजिस्ट्रेशन कर लिया। उसके बाद पहला टास्क पूरा करने पर उसके खाते मे 1050 रुपए आए।
इस तरह युवक जाल मे फंस गया। उससे सबसे पहले 10 हजार रुपए मांगे गए। उसने मंत्रा इंटरप्राइजेस नाम के खाते में पैसे ट्रांसफर कर दिया। फिर प्रीमियम टॉस्क का हवाला देकर 30 हजार, 51 हजार व एक लाख 37 हजार अलग-अलग खातों में ट्रांसफर करवाए गए। जब 3 लाख फिर मांग गए तब उसे शक हुआ। युवक ने 18 मार्च को ही साइबर सेल पहुंचकर उन तीनों खातों को ब्लॉक करवा दिया।
ये पीडि़त युवक के मोबाइल का स्क्रीन शॉट है। मुंबई स्थित बैंक के ब्रांच मैनेजर से जब युवक ने संपर्क किया और बताया कि मंत्रा इंटरप्राइजेस के नाम के खाते में उसके पैसे जमा है। वे ट्रांसफर करें तो मैनेजर ने मैसेज कर दिया कि उस खाते में तो पैसे ही नहीं हैं। जबकि ये खाता 9 महीने पहले ब्लॉक किया गया था।
धमकी: पुलिस ने कहा- तुम्हारे ऊपर ही केस होना चाहिए
युवक टिकरापारा थाने ठगी का केस दर्ज कराने पहुंचा। कई चक्कर के बाद ड्यूटी अफसरों ने एफआईआर नहीं की। झुंझलाकर एक दिन वह थानेदार के कक्ष में घुस गया। पीड़ा सुनाई तो थानेदार ने एएसआई रैंक के एक अफसर को जांच करने कहा। अगले दिन 3 मार्च को युवक थाने शिकायत लेकर उसी अफसर से मिला।
उसने शिकायत देखते ही पुलिसिया तेवर मे कहा- केस तो तुम्हारे ऊपर होना चाहिए, तुमको घर बैठे पैसे कमाने का शौक था। पीड़ित ने गुस्से में कहा- आपको टीआई साहब ने जो कहा है वो करिये नहीं तो उनसे शिकायत कर दूंगा। उसके बाद बार-बार बयान के नाम पर बुलाकर परेशान किया गया, लेकिन केस दर्ज नहीं किया। अंत मे कह दिया इसमें आरोपी अज्ञात है। अपराध किसके खिलाफ करें।
सबूत: कोर्ट में कोई नहीं ले रहा था केस, फिर एक दिन
मार्च से जून महीने तक थाने के चक्कर काटने के बाद ठगी का केस दर्ज नहीं तो साइबर सेल के जिम्मेदारों ने कोर्ट जाने की सलाह दी। जून के अंतिम दिनों में वह कोर्ट पहुंचा। कोर्ट में वकील फीस के पैसे पहले मांग रहे थे, लेकिन पैसे लौटाने की गारंटी कोई नहीं दे रहा था। युवक के पास केस लड़ने को पैसे नहीं थे। एक हफ्ते चक्कर काटने के बाद एक दिन परिचित के एडवोकेट मिले।
वे कमीशन पर केस लड़ने को राजी हुए। कोर्ट मे सुनवाई हुई तो जज ने उस पक्ष को हाजिर करने का कहा जिसके खाते में पैसे ट्रांसफर किए गए हैं। तीन चार पेशी इसी में गुजरी। बाद में जब वकील ने कोर्ट को ये यकीन दिलाया कि जिसके खाते मे पैसे ट्रांसफर किए गए है वे यहां नहीं आ सकते तब थाने से लेकर बैंक और साइबर सेल से पैसों के ट्रांजेक्शन का रिकार्ड मंगवाया।
हताशा: बैंक कोर्ट आदेश ही नहीं मान रहे हैं
4 अक्टूबर को कोर्ट ने बैंकों को आदेश दिया कि वे पीड़ित के फ्रीज पैसों को इसके खाते में ट्रांसफर करें। ये आदेश साइबर सेल के माध्यम से बैंकों को मेल किया गया। अब तक पैसे ट्रांसफर नहीं किए गए। इस बीच युवक ने लोकल ब्रांच में चक्कर काटने के बाद मुंबई और अहमदाबाद की शाखाओं में संपर्क किया। अहमदाबाद ब्रांच के मैनेजर ने कॉल ही रिसीव नहीं किया। मुंबई के ब्रांच मैनेजर ने काफी ना नकुर के बाद उसके मोबाइल पर वाट्सअप कर दिया, जिन्हें आपको पैसे देने हैं, उनके खाते में पर्याप्त बैलेंस ही नहीं है।