वेटिंग लिस्ट में पहले नंबर के अभ्यर्थी की अनदेखी:PSC ने मृत को बनाया स्पोर्ट्स ऑफिसर, कोर्ट ने कहा- ये अफसरों की लापरवाही का नतीजा

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स्पोर्ट्स ऑफिसर की भर्ती में छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग (सीजीपीएससी) की लापरवाही के मामले में हाई कोर्ट ने सख्ती दिखाई है। कोर्ट ने वेटिंग लिस्ट में पहले स्थान पर रहे अभ्यर्थी के नाम पर नियुक्ति पत्र जारी करने के आदेश दिए हैं। पीएससी के अफसरों की लापरवाही के कारण योग्य अभ्यर्थी को नौकरी से वंचित होना पड़ा था, जबकि एक मृत अभ्यर्थी के नाम पर नियुक्ति का आदेश तक जारी कर दिया गया।

दरअसल, 6 मार्च 2019 में स्पोर्ट्स ऑफिसर के रिक्त पदों पर भर्ती के लिए विज्ञापन जारी किया था। परीक्षा, इंटरव्यू की प्रक्रिया पूरी होने के बाद 18 सितंबर 2020 को जारी नतीजों में गरियाबंद निवासी नीलकंठ कुमार साहू ओबीसी वेटिंग लिस्ट में पहले नंबर पर था। ओबीसी वर्ग से चयनित उम्मीदवार अमित वर्मा की 27 दिसंबर 2021 को ज्वॉइनिंग से पहले ही मौत हो गई, जिससे पद रिक्त हो गया।

नीलकंठ ने प्रतीक्षा सूची की वैधता अवधि के भीतर 6 जनवरी, 4 मार्च और 18 मई 2022 को पीएससी को आवेदन देकर पद रिक्त होने की जानकारी दी, लेकिन पीएससी के जिम्मेदार अधिकारी मृत्यु प्रमाण पत्र और प्रक्रिया के नाम पर फाइल अटका कर बैठे रहे। 5 दिसंबर 2022 को मृत्यु प्रमाण पत्र मिला तब तक 17 सितंबर 2022 को वेटिंग लिस्ट समाप्त मानी गई और नीलकंठ को नियुक्ति से वंचित कर दिया गया।

आठ सप्ताह में जारी करें नियुक्ति पत्र: कोर्ट

जस्टिस अमितेंद्र किशोर प्रसाद की सिंगल बेंच ने राज्य सरकार को आदेश दिया है कि नीलकंठ कुमार साहू को मृत अभ्यर्थी के स्थान पर ओबीसी श्रेणी से स्पोर्ट्स ऑफिसर पद की नियुक्ति 8 सप्ताह के भीतर जारी की जाए। हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट और छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के दो फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि यह मामला बताता है कि प्रशासनिक निष्क्रियता किस तरह योग्य उम्मीदवारों के भविष्य पर भारी पड़ जाती है और ऐसे मामलों में न्यायालय को हस्तक्षेप करना पड़ता है।

आरटीआई से गड़बड़ी का हुआ खुलासा

नीलकंठ ने आरटीआई से जानकारी हासिल की तो पता चला कि वेटिंग लिस्ट खत्म होने के करीब 21 महीने बाद 21 जून 2024 को मृत उम्मीदवार अमित वर्मा के नाम पर ही नियुक्ति आदेश जारी कर दिया गया। हाई कोर्ट ने इसे अनियमितता और प्रक्रिया की पूर्ण अवहेलना ठहराते हुए कहा कि उम्मीदवार ने वैध समय में अपना दावा प्रस्तुत कर दिया था, इसलिए उसे प्रशासनिक देरी का शिकार नहीं बनाया जा सकता।

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