कोरबा। एसईसीएल गेवरा परियोजना से प्रभावित गांव नराईबोध के ग्रामीणों ने भूमि अधिग्रहण, मुआवजा, पुनर्वास और रोजगार से जुड़े मामलों में बाहरी लोगों के दखल को लेकर नाराज़गी जताई है। ग्रामीणों ने जिला कलेक्टर को ज्ञापन सौंपते हुए आरोप लगाया कि कुछ बाहरी व्यक्ति उनके आंदोलन को अपने स्वार्थ के लिए हाईजैक करने की कोशिश कर रहे हैं।
ग्रामीणों के आरोप – निजी फायदे के लिए भड़काया जा रहा आंदोलन
ग्राम नराईबोध के विस्थापितों का कहना है कि
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कुछ बाहरी लोग आंदोलन में शामिल होकर ब्लैकमेलिंग, ठेकेदारी और राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश कर रहे हैं।
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इन व्यक्तियों का गांव से कोई सीधा संबंध नहीं है, लेकिन वे ग्रामीणों का प्रतिनिधि बनकर अफसरों से बात कर रहे हैं।
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इससे वास्तविक समस्याओं पर चल रही वार्ताएं बाधित हो रही हैं और ग्रामीणों के बीच भ्रम पैदा हो रहा है।
ग्रामीणों ने आरोप मुख्य रूप से छत्तीसगढ़ किसान सभा और कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े नेताओं प्रशांत झा और दीपक साहू पर लगाए हैं। साथ ही गांव के ही रमेश दास पर भी आरोप है कि उन्होंने बाहरी लोगों को गांव में लाकर तनाव का माहौल बनाया।
कलेक्टर से तीन प्रमुख मांगें
ग्रामीणों ने प्रशासन से यह मांग की है कि:
✔ प्रशांत झा, दीपक साहू और रमेश दास को गांव के किसी भी मामले में दखल देने से तुरंत रोका जाए।
✔ वे ग्रामीणों के नाम पर कोई बैठक, आंदोलन या प्रतिनिधित्व न करें।
✔ तभी ग्रामीण सीधे प्रशासन और एसईसीएल प्रबंधन से शांतिपूर्ण तरीके से बातचीत कर पाएंगे।
इस संबंध में ग्रामीणों ने कलेक्टर के साथ पुलिस अधीक्षक, थाना प्रभारी और एसईसीएल प्रबंधन को भी पत्र भेजा है।
किसान सभा और कम्युनिस्ट पार्टी की सफाई
दूसरी ओर, किसान सभा से जुड़े नेता प्रशांत झा ने सभी आरोपों को खारिज किया है। उनका कहना है:
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वे गांव केवल तभी जाते हैं जब ग्रामीण खुद बुलाते हैं।
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एसईसीएल पर आरोप लगाया कि कंपनी नियमों में बदलाव कर भू-विस्थापितों के अधिकारों को कमजोर कर रही है।
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छोटे भू-खातेदारों को रोजगार के दायरे से बाहर किया जा रहा है और इसी के विरोध में आंदोलन हो रहा है।
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कुछ लोग इस लड़ाई को कमजोर करने के लिए झूठे आरोप लगा रहे हैं।
मामले की पृष्ठभूमि – विकास बनाम विस्थापन की चुनौती
यह पूरा विवाद एसईसीएल गेवरा कोल परियोजना के विस्तार से जुड़ा है, जिसमें
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भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास, उचित मुआवज़ा और नौकरी देने की प्रक्रिया शामिल है।
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ऐसे संवेदनशील मामलों में अक्सर बाहरी हस्तक्षेप, राजनीतिक लाभ और स्वार्थपूर्ण गतिविधियां माहौल को और जटिल बना देती हैं।
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ग्रामीणों के इस कदम ने साफ कर दिया है कि वे अपने हक की लड़ाई खुद, शांतिपूर्ण और पारदर्शी तरीके से लड़ना चाहते हैं।