भारतीय क्रिकेट के सबसे भरोसेमंद ऑलराउंडरों में से एक युवराज सिंह आज भले ही आधिकारिक कोच नहीं हों, लेकिन उनका क्रिकेटिंग माइंडसेट और मेंटरिंग स्टाइल उन्हें एक आधुनिक गुरु की तरह स्थापित कर चुका है। शुभमन गिल और अभिषेक शर्मा जैसे युवा खिलाड़ियों के पीछे उनकी सोच और मार्गदर्शन की बड़ी भूमिका रही है। एक आज टीम इंडिया का कप्तान है, दूसरा दुनिया का नंबर-1 टी20 बल्लेबाज़—और इन दोनों की सफलता में युवराज का शांत, समझदार और दोस्ताना तरीका साफ झलकता है।
लेकिन दिलचस्प बात यह है कि युवराज का यह कोचिंग स्टाइल बिल्कुल भी उनके पिता योगराज सिंह जैसा नहीं है। योगराज अपने सख्त अनुशासन, ऊंची आवाज़ और कठोर ट्रेनिंग तरीकों के लिए जाने जाते हैं। ठीक इसके उलट युवराज कहते हैं—“मैं योगराज सिंह जैसा नहीं हूं। मैं खिलाड़ी को सिर्फ बताता नहीं कि क्या करना है, बल्कि पहले यह समझता हूं कि वह क्या सोच रहा है, क्या महसूस कर रहा है। कोचिंग सिर्फ हुक्म चलाना नहीं, बल्कि खिलाड़ी के मन को समझना है।”
युवराज का यह नजरिया उनके अपने बचपन के अनुभव से आया है। पिता की सख्ती उन्होंने बहुत छोटी उम्र से झेली। यहां तक कि जब वे स्केटिंग करना चाहते थे, तो योगराज सिंह ने उनके स्केट्स फेंक दिए ताकि वे केवल क्रिकेट पर ध्यान दें। लेकिन इसी दबाव के बीच युवराज ने 2000 के अंडर-19 विश्व कप से लेकर 2007 टी20 में छह छक्कों और 2011 वर्ल्ड कप के मैन ऑफ द टूर्नामेंट बनने तक भारतीय क्रिकेट के सबसे सुनहरे अध्याय लिखे।
अब जब वह नई पीढ़ी को सिखा रहे हैं, तो उनका मानना है कि कोचिंग एक पुल और धक्का देने का संतुलन है—कभी खिलाड़ी को आगे धकेलना होता है, तो कभी पीछे हटकर उसे खुद सीखने देना। युवराज साफ कहते हैं—“19 साल के खिलाड़ी के दिमाग में क्या चल रहा है, अगर ये समझ लिया तो आप असली कोच हो।”
आज यही फर्क युवराज को सिर्फ एक खिलाड़ी नहीं बल्कि एक संवेदनशील मेंटॉर बनाता है—जो सबक सिर्फ रन बनाने का नहीं, बल्कि सोचने, समझने और खुद पर भरोसा करने का सिखाता है। इसलिए दुनिया अब उन्हें सिर्फ ‘यूवी’ नहीं, बल्कि ‘मेंटॉर यूवी’ के नाम से जानने लगी है।