पतंजलि का नया च्यवनप्राश विज्ञापन इस समय बड़े विवाद में घिर चुका है। वजह यह है कि इस ऐड में बाबा रामदेव दावा करते नजर आते हैं कि लोग च्यवनप्राश के नाम पर “धोखा खा रहे हैं” और असली, आयुर्वेदिक च्यवनप्राश सिर्फ पतंजलि का है। इस बयान और विज्ञापन को लेकर डाबर ने दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और मानहानि समेत अनफेयर कॉम्पिटिशन का आरोप लगाया।
मामला कोर्ट पहुंचा तो जस्टिस तेजस करिया की बेंच ने साफ कहा कि किसी दूसरे ब्रांड को “धोखा” या “फ्रॉड” कहना गलत है। कोर्ट ने पूछा—“अगर आपको अपना प्रोडक्ट बेहतर बताना है तो कीजिए, लेकिन बाकी सबको झूठा कैसे कह सकते हो? धोखा की जगह ‘लो क्वालिटी’ या ‘इन्फीरियर’ कह सकते हो, लेकिन फ्रॉड नहीं।” कोर्ट ने अभी विज्ञापन पर रोक लगाने का फैसला सुरक्षित रखा है, लेकिन पतंजलि को शब्दों की मर्यादा की सलाह जरूर दे दी।
क्या कहा डाबर ने?
डाबर इंडिया ने कोर्ट में दलील दी कि यह विज्ञापन सिर्फ पतंजलि को बढ़ावा देने तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे च्यवनप्राश उद्योग को बदनाम करता है। उनका कहना था कि बाबा रामदेव जैसे प्रभावशाली व्यक्ति जब “धोखा” शब्द इस्तेमाल करते हैं, तो लोगों में गलत संदेश जाता है कि बाकी सारे ब्रांड झूठ बोल रहे हैं और मिलावटी या नकली हैं। डाबर ने कहा कि वे 1949 से बाजार में हैं और 61% मार्केट शेयर रखते हैं, इसलिए उनकी विश्वसनीयता पर इस तरह का हमला अन्यायपूर्ण है।
पतंजलि का बचाव क्या है?
पतंजलि की ओर से कहा गया कि ये विज्ञापन सिर्फ “पफरी” यानी मार्केटिंग का एक बढ़ा-चढ़ा अंदाज़ है। उन्होंने कहा कि किसी ब्रांड का नाम नहीं लिया गया, सिर्फ यह कहा गया कि कई च्यवनप्राश प्रभावी नहीं हैं और पतंजलि बेहतर है। वकील राजीव नायर ने यह भी कहा कि डाबर थोड़ा ‘हाइपरसेंसिटिव’ हो रहा है और प्रतिस्पर्धा को सहने की क्षमता दिखानी चाहिए।
असल विवाद क्यों बढ़ा?
पहली वजह—“धोखा” शब्द का इस्तेमाल, जो सीधा आरोप जैसा लगता है।
दूसरी वजह—बाबा रामदेव का प्रभाव, जिससे बयान ज्यादा गंभीर लगने लगता है।
तीसरी वजह—2014 में सरकार ने च्यवनप्राश में ‘स्पेशल’ और हर्ब्स की संख्या जैसे दावे को भ्रामक बताया था, फिर भी पतंजलि वैसा दावा कर रहा है।
आगे क्या हो सकता है?
कोर्ट ने अभी विज्ञापन पर रोक नहीं लगाई, लेकिन संकेत दे दिए हैं कि शब्दों की सीमा पार नहीं करनी चाहिए। अगर पतंजलि शब्दावली नहीं बदलेगी, तो विज्ञापन पर रोक भी लग सकती है।