छत्तीसगढ़ में अब बिना ट्रेड लाइसेंस दुकान चलाना मुश्किल, गुमटी से लेकर मॉल तक नया नियम लागू

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छत्तीसगढ़ सरकार ने दुकानों पर बड़ा फैसला लेते हुए अब ट्रेड लाइसेंस को अनिवार्य बना दिया है। चाहे आपकी दुकान गुमटी में हो, मोहल्ले के छोटे बाजार में, सड़क किनारे हो, या फिर किसी मॉल के अंदर—हर तरह के व्यापारिक प्रतिष्ठान को अब नगर निगम, नगर पालिका या नगर पंचायत से ट्रेड लाइसेंस लेना ही होगा। शुक्रवार को इस नियम की अधिसूचना राजपत्र में प्रकाशित कर दी गई, यानी अब से बिना इस लाइसेंस के दुकान चलाना अवैध माना जाएगा। राज्य के कुल 192 नगरीय निकायों में यह नियम लागू कर दिया गया है।

दरअसल, पहले सिर्फ 45 निकायों में ट्रेड लाइसेंस की व्यवस्था थी और ज्यादातर दुकानदार श्रम विभाग से गुमाश्ता लेकर काम चला लेते थे। लेकिन अब गुमाश्ता के साथ-साथ या उसके बिना भी ट्रेड लाइसेंस जरूरी होगा। इसका मतलब यह है कि आपकी दुकान को अब आधिकारिक पहचान मिलेगी और सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज होगी। इससे बैंक से लोन लेना आसान होगा और व्यापार कानूनी रूप से सुरक्षित माना जाएगा।

नई व्यवस्था के तहत शहरों की सड़कों और बाजारों के आधार पर दुकानों को तीन श्रेणियों में बांटा गया है, और उसी के हिसाब से शुल्क तय किया गया है। मोहल्ला स्तर की दुकानों पर प्रति वर्ग फुट चार रुपए, मध्यम बाजारों में पांच रुपए और बड़े व मुख्य बाजारों के लिए छह रुपए प्रति वर्ग फुट सालाना शुल्क होगा। हालांकि नगर निगम सीमा में वार्षिक शुल्क की अधिकतम सीमा 30 हजार रुपए रखी गई है, नगर पालिका में 20 हजार और नगर पंचायत में 10 हजार से अधिक शुल्क नहीं लगेगा। यानी चाहे दुकान कितनी भी बड़ी क्यों न हो, आप इससे अधिक राशि नहीं देंगे।

ट्रेड लाइसेंस की अवधि कम से कम दो साल की होगी, लेकिन व्यापारी चाहें तो एक साथ दस साल तक का शुल्क जमा करके लाइसेंस ले सकते हैं। हर दो साल के बाद इसका नवीनीकरण जरूरी होगा। अगर लाइसेंस की अवधि खत्म होने के छह महीने के भीतर रिन्यू नहीं कराया गया, तो 15% जुर्माना देना पड़ेगा। इसके बाद देरी होने पर प्रति दिन दस रुपए का दंड लगेगा और एक साल बीतने पर दुकान को सील भी किया जा सकता है।

मॉल्स को भी इस दायरे में लाया गया है और हर दुकान को अलग-अलग लाइसेंस लेना होगा। साथ ही गुमटी, फेरीवालों और वाहन से दुकान लगाने वालों को भी लाइसेंस की जरूरत होगी। उदाहरण के लिए, नगर निगम क्षेत्र में गुमटी वालों को 250 रुपये प्रति वर्ष, नगर पालिका में 150 रुपये और नगर पंचायत में 100 रुपये शुल्क देना होगा। वहीं मिनी ट्रक, पिकअप वैन, जीप जैसे वाहनों पर चलने वाली दुकानों पर निगम में 400, पालिका में 300 और पंचायत में 200 रुपए सालाना शुल्क तय किया गया है।

अगर कोई दुकानदार कारोबार बंद कर देता है, तो उसे निकाय को सूचित कर लाइसेंस सरेंडर करना होगा। सरकार ने यह भी साफ किया है कि हर दो साल में शुल्क में पांच प्रतिशत की बढ़ोतरी भी होगी। इस कदम का उद्देश्य व्यापार को संगठित करना, राजस्व बढ़ाना और दुकानों को आधिकारिक पहचान देना है।

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